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प्रमोशन में आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नया पैमाना नहीं बना सकते

सरकारी नौकरियों में एससी और एसटी समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है। जस्टिस नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवाई की बेंच ने इस मामले में बीते साल 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हम कोई नया पैमाना नहीं बना सकते। अदालत ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे एससी एसटी के प्रतिनिधित्व को लेकर डाटा एकत्र करें।

अदालत ने कहा कि यह डाटा कैडर आधारित रिक्तियों के आधार पर इकट्ठा किया जाना चाहिए। अदालत ने इस मामले में रखी गई शर्तों में ढील देने से इनकार कर दिया।

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अदालत ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह सहित राज्य सरकारों और सरकारी कर्मचारियों की ओर से अदालत के सामने हाजिर हुए कई बड़े वकीलों की दलीलों को सुना।

केंद्र सरकार ने इस मामले में अदालत को बताया था कि आजादी के 75 साल बाद भी एससी और एसटी समुदाय के लोगों को अगड़े समुदाय के लोगों के बराबर नहीं लाया जा सका है।

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साल 2006 में एम. नागराज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 85 वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इस संविधान संशोधन के जरिए ही प्रमोशन में रिजर्वेशन दिया गया था। 

अदालत में इस मामले में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा ढेरों याचिका दायर की गई थी जिनमें मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई करे क्योंकि इस वजह से सरकारी नियुक्तियां अटकी पड़ी हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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