बिहार SIR में अंतिम मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट को भी भ्रम है। अदालत ने चुनाव आयोग से साफ़ करने को कहा है कि क्या अंतिम सूची में जोड़े गए नए नाम वे ही हैं जो पहले ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बिहार की मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों के बीच आई है, जहां लाखों नामों की हटाने-जोड़ने की प्रक्रिया पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लग रहा है। दो दिन पहले ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने दावा किया है कि बिहार में मतदाता सूची पूरी तरह शुद्ध हो गई है और यह प्रक्रिया 22 साल बाद की गई है।

जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा, 'अंतिम सूची में जो नाम जोड़े गए हैं, वे पहले हटाए गए नामों के हैं या नहीं, इस पर स्पष्टता होनी चाहिए। पारदर्शिता के बिना यह प्रक्रिया संदेहास्पद बनी रहेगी।' हफ़्ते भर पहले चुनाव आयोग ने अंतिम मतदाता सूची जारी की थी जिसमें एसआईआर शुरू करने के बाद से इसने क़रीब 68.5 लाख मतदाता हटाए हैं, जबकि 21.5 लाख वोटर जोड़े हैं। अंतिम मतदाता सूची के अनुसार अब बिहार में कुल 7.42 करोड़ मतदाता हैं, जबकि एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने से पहले 24 जून 2025 तक 7.89 करोड़ मतदाता थे।
ताज़ा ख़बरें
जस्टिस बागची ने ECI के वकीलों को संबोधित करते हुए कहा, 'आपके पास प्रारंभिक सूची और अंतिम सूची है। हटाए गए नाम स्पष्ट हैं। बस उन्हें निकालकर हमें जानकारी दें।' खंडपीठ ने मामले को अगले गुरुवार यानी 9 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया और ईसीआई को ज़रूरी जानकारी जुटाने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ताओं की मांग

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर के परिणामस्वरूप महिलाओं, मुस्लिमों और अन्य समुदायों के मतदाताओं को असमान रूप से हटाया गया है। भूषण ने दावा किया कि मतदाता सूची को साफ करने के बजाय इस प्रक्रिया ने समस्याओं को और जटिल बना दिया है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने 3.66 लाख मतदाताओं को अतिरिक्त रूप से हटाए जाने का कारण नहीं बताया और न ही इन हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रकाशित की। साथ ही, अंतिम सूची में जोड़े गए 21 लाख मतदाताओं की सूची भी सार्वजनिक नहीं की गई।

जब खंडपीठ ने पूछा कि क्या हटाए गए मतदाताओं को अपील दायर करने का अवसर नहीं मिल सकता, तो वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. ए.एम. सिंहवी ने कहा कि बिना कारण बताए और बिना सूची प्रकाशित किए अपील दायर करना संभव नहीं है।

उन्होंने कहा, 'हटाए गए व्यक्तियों को कोई नोटिस नहीं दिया जाता कि उनके नाम हटाए गए हैं। उन्हें कारण नहीं बताया जाता। अपील का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि किसी को कुछ पता ही नहीं है। कम से कम ईसीआई को सूचित करना चाहिए।'

इसके जवाब में चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि हटाए गए मतदाताओं को आदेश दिए गए हैं। हालाँकि, जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, 'अगर कोई यह दिखा सकता है कि 3.66 लाख में से किन्हें आदेश नहीं मिले, तो हम चुनाव आयोग को निर्देश देंगे कि उन्हें आदेश दिए जाएँ। प्रत्येक व्यक्ति को अपील का अधिकार है।' भूषण ने मांग की कि हटाए गए मतदाताओं की सूची को चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए।
देश से और ख़बरें

केवल NGO, राजनेता उठा रहे मुद्दा: ECI

चुनाव आयोग के वकील द्विवेदी ने तर्क दिया कि कोई भी प्रभावित मतदाता सीधे कोर्ट में नहीं आया है और यह मुद्दा केवल दिल्ली में बैठे राजनेता और एनजीओ उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 27 सितंबर को प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची को चुनौती नहीं दी है। उन्होंने कहा कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद अदालतें हस्तक्षेप से बचती हैं, क्योंकि ईसीआई ने पहले ही बिहार में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है।

नए और हटाए गए मतदाताओं पर भ्रम

सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित न होने के कारण यह पता लगाना असंभव है कि कौन से नाम हटाए गए और कौन से जोड़े गए। प्रारंभिक सूची के बाद 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए थे और अंतिम सूची में ECI ने 21 लाख मतदाताओं को जोड़ा। सिंघवी ने कहा कि यह साफ़ नहीं है कि ये जोड़े गए 21 लाख मतदाता पहले हटाए गए लोगों में से हैं या पूरी तरह से नए मतदाता हैं। इसके अलावा, अंतिम सूची में उन 3.66 लाख मतदाताओं को अतिरिक्त रूप से हटा दिया गया जिन्हें ड्राफ्ट सूची में जगह मिली थी।

जस्टिस बागची ने भी इस भ्रम पर चिंता जताई और कहा, 'अंतिम सूची संख्याओं का एक संग्रह लगता है। यह साफ़ नहीं है कि जोड़े गए नाम पहले हटाए गए मतदाताओं में से हैं या पूरी तरह से नए हैं। कुछ नए नाम भी होंगे।'

चुनाव आयोग के वकील द्विवेदी ने कहा कि जोड़े गए अधिकांश मतदाता नए हैं। जस्टिस बागची ने स्पष्टता की मांग करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए है, ताकि जनता का चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बढ़े।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि अगर कोई प्रभावित व्यक्ति कोर्ट में आता है तो अदालत कुछ निर्देश पारित कर सकती है। भूषण ने जवाब दिया कि वह सैकड़ों प्रभावित लोगों को ला सकते हैं। उन्होंने कहा, 'मैं 100 लोगों को ला सकता हूँ...आप कितने चाहते हैं? मैंने पहले ही एक उदाहरण दिया है। कितने लोग सामने आएंगे? यह बड़े पैमाने पर उल्लंघन है।' भूषण ने एक ऐसे व्यक्ति का हलफनामा सौंपा, जिसका नाम कथित तौर पर हटाया गया था।

जब भूषण ने चुनाव आयोग से नई हटाई गई और जोड़ी गई सूचियों को प्रकाशित करने की मांग की, तो जस्टिस कांत ने कहा कि अगर प्रथम दृष्टया कोई मामला बनता है, तो कोर्ट निर्देश देगा। भूषण ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
सर्वाधिक पढ़ी गयी ख़बरें

ECI की आपत्ति

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दस्तावेज सीधे खंडपीठ को सौंपने पर आपत्ति जताई और कहा कि उन्हें उचित प्रक्रिया के तहत हलफनामा दाखिल करना चाहिए। भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग एक बटन दबाकर हटाए गए और जोड़े गए मतदाताओं की सूची उपलब्ध करा सकता है।

जस्टिस सूर्य कांत ने टिप्पणी की, 'जब कुछ वास्तविक लोग होंगे, तभी इतनी जांच का सवाल उठेगा। कुछ अवैध प्रवासी भी हैं जो नहीं चाहते कि उनकी पहचान उजागर हो। हमें 100-200 लोगों की सूची दीजिए जो कहें कि हम अपील करना चाहते हैं, लेकिन हमें आदेश नहीं मिला।'

आख़िरकार खंडपीठ ने मामले को अगले गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया और चुनाव आयोग को ज़रूरी जानकारी जुटाने का निर्देश दिया। जस्टिस बागची ने चुनाव आयोग के वकीलों को संबोधित करते हुए कहा, 'आपके पास प्रारंभिक सूची और अंतिम सूची है। हटाए गए नाम स्पष्ट हैं। बस उन्हें निकालकर हमें जानकारी दें।'