वनतारा मामले में 25 अगस्त को एसआईटी से जाँच का आदेश। 12 सितंबर को एसआईटी रिपोर्ट जमा। और 15 सितंबर को फ़ैसला। वनतारा में कुछ भी गड़बड़ी नहीं। केस बंद। और एसआईटी रिपोर्ट को सीलबंद रखने का ही आदेश। सबकुछ बहुत तेज़ी से हुआ और साफ़-साफ़। सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट तो मिल गई, लेकिन इस फ़ैसले में तेज़ी और सीलबंद लिफाफा को लेकर काफी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने भी कुछ इसी तरह की टिप्पणी की है।

जयराम रमेश ने इसे न्यायिक प्रणाली की रहस्यमय प्रथा करार देते हुए कहा कि अगर सभी मामले इतनी तेजी से निपटाए जाते तो बेहतर होता। उन्होंने कहा, "लंबे विलंब के लिए जाने जानी वाली भारतीय न्यायिक व्यवस्था जब चाहे तब अत्यंत तीव्र गति से कार्य करती है। 25 अगस्त 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय ने जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन द्वारा स्थापित वन्यजीव बचाव एवं पुनर्वास केंद्र वनतारा के मामलों की एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) द्वारा जाँच का आदेश दिया। चार प्रतिष्ठित सदस्यों वाली एसआईटी को 12 सितंबर, 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट एक 'सीलबंद लिफाफे' में प्रस्तुत की और 15 सितंबर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 2025 को दायर एक जनहित याचिका से शुरू हुए मामले को बंद कर दिया।"
जयराम रमेश ने कहा, "काश, सभी मामलों को इतनी तेज़ी और सफाई से निपटाया जाता- बेशक इस रहस्यमय 'सीलबंद लिफाफे' के चक्कर के बिना!"

यह मामला 7 अगस्त 2025 को दायर एक जनहित याचिका यानी पीआईएल से शुरू हुआ था। इसमें वनतारा पर जानवरों की अवैध खरीद-फरोख्त, तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और वन्यजीव संरक्षण कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए थे। याचिका में विशेष रूप से हाथियों सहित विदेशों से जानवरों की खरीद और उनके रखरखाव पर सवाल उठाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त 2025 को इसकी सुनवाई करते हुए चार सदस्यीय एसआईटी गठित की थी। इसके प्रमुख पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर थे। अन्य सदस्यों में वन्यजीव विशेषज्ञ, वन अधिकारी और एक वित्तीय विशेषज्ञ शामिल थे। कोर्ट ने एसआईटी को 12 सितंबर 2025 तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था।
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एसआईटी ने काम कैसे किया?

एसआईटी ने निर्धारित समयसीमा के अनुरूप 12 सितंबर को अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के सामने पेश कर दी। इसमें अन्य दस्तावेज और एक पेन ड्राइव भी शामिल था। जांच के दौरान एसआईटी ने वनतारा का तीन दिनों तक भौतिक निरीक्षण किया, वित्तीय लेन-देन, अंतरराज्यीय जानवरों के स्थानांतरण और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुपालन पर प्रश्नावली बाँटी गई। इसमें वन्यजीव, वन और वित्तीय विभाग जैसी 16 विभिन्न एजेंसियों का सहयोग लिया गया। वन और वन्यजीव विभागों के अधिकारियों को हाथियों और अन्य जानवरों के जामनगर स्थानांतरण पर सफ़ाई के लिए बुलाया गया।

15 सितंबर 2025 को जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस पी.बी. वराले की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने रिपोर्ट को पढ़ा और एसआईटी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने कहा कि वनतारा में जानवरों की खरीद नियमों के दायरे में है और कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। बेंच ने टिप्पणी की, 'अगर कोई व्यक्ति सभी नियमों का पालन करते हुए हाथी रखना चाहता है, तो इसमें क्या गलत है?' कोर्ट ने वनतारा के पशु चिकित्सा देखभाल, कल्याण और पशुपालन मानकों को ऊँच दर्जे का पाया, जो अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क से बेहतर हैं। साथ ही, कोर्ट ने भविष्य में इन आरोपों पर कोई शिकायत या कार्यवाही को प्रतिबंधित कर दिया, ताकि 'अनावश्यक विवाद' न हो। 

वनतारा को किसी भी भ्रामक प्रकाशन या मानहानि के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की छूट दी गई। कोर्ट ने एसआईटी की त्वरित जांच की सराहना करते हुए उसके सदस्यों को मानदेय देने को भी कहा।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ आईं। एक्स पर अनुमा आचार्य ने लिखा, "अंबानी के वनतारा की जांच के लिए- SIT बनी: 25 अगस्त को। SIT की रिपोर्ट आयी: 12 सितंबर को। सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट: 15 सितंबर को। और इस तरह 20 दिनों के अंदर बुलेट ट्रेन की रफ्तार से जांच, फैसला सब कुछ आ गया। और हां! सरकार ने कोर्ट में कहा कि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए।"
संवैधानिक मामलों के जानकार गौतम भाटिया ने कोर्ट के फ़ैसले को साझा करते हुए लिखा, 'वनतारा एसआईटी मामले में सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों, विशेष रूप से (vi) पर मैं अपनी आँखें मल रहा हूँ।'
एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज ने एक्स पर लिखा, 'यह बेहद चौंकाने वाला और निराशाजनक है कि जस्टिस चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने वनतारा पर अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफ़ाफ़े में सौंपी! ये वही जज हैं जिन्होंने पारदर्शिता की कमी के चलते सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया था।'
राजा तिवारी नाम के एक यूज़र ने लिखा, 'सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि वनतारा के ख़िलाफ़ कोई भी शिकायत भविष्य में नहीं की जा सकेगी! सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी ने वनतारा को क्लीन चिट देते हुए फ़ैसला दिया कि जिन लोगों ने वनतारा के खिलाफ दुष्प्रचार किया वनतारा के मालिक चाहें तो उनके ख़िलाफ़ मानहानि की कार्यवाही कर सकते हैं।'
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वनतारा का बयान

वनतारा ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया और कहा कि आरोप 'बिना आधार के' थे। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वनतारा की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट में पक्ष रखा। साल्वे ने व्यावसायिक गोपनीयता का हवाला देते हुए पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक न करने की अपील की, जिस पर जस्टिस मित्तल ने कहा, 'हम इसे अनुमति नहीं देंगे।'

यह फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट की 'सीलबंद कवर' प्रथा पर बहस को हवा दे रहा है, जो पहले भी आधार, राफेल और अन्य मामलों में विवादास्पद रही। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पारदर्शिता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। वनतारा अब पूरी तरह क्लीन चिट के साथ अपने संचालन जारी रखेगा। लेकिन सवाल बाकी हैं: क्या न्याय की यह गति सभी के लिए समान होगी?