ग़ज़ा पीस समिट के लिए जब मिस्र के शर्म एल-शेख में डोनाल्ड ट्रंप, कीर स्टार्मर, इमैनुएल मैक्रों, एंटोनियो गुटेरेस जैसे वैश्विक नेता जुट रहे हैं तो वहाँ प्रधानमंत्री मोदी नहीं होंगे। ऐसा नहीं है कि इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री को निमंत्रण नहीं मिला था। निमंत्रण मिला तो विदेश राज्य मंत्री किर्ति वर्धन सिंह को भेजने का फ़ैसला लिया गया। तो क्या इतने बड़े वैश्विक नेताओं के बीच पीएम मोदी का नहीं जाना और इसकी जगह राज्य मंत्री को भेजना अवसर गँवाने जैसा है? कम से कम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने तो कुछ ऐसा ही कहा है।

दरअसल, मिस्र के शर्म एल-शेख में ग़ज़ा शांति शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस जैसे वैश्विक नेता जुटे हैं। भारत की ओर से विदेश राज्य मंत्री किर्ति वर्धन सिंह को विशेष दूत के रूप में भेजा गया है। उनके बीच भारत का प्रतिनिधित्व मात्र राज्य मंत्री स्तर पर होना एक बड़ा सवाल खड़ा कर गया है। इस फैसले पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तीखा सवाल उठाया- 'रणनीतिक संयम या गँवाया हुआ अवसर?' 

थरूर का बयान

सम्मेलन ग़ज़ा के पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिए अहम माना जा रहा है। इसमें पीएम मोदी की अनुपस्थिति के फ़ैसले को थरूर ने 'हैरान करने वाला' बताया। उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा, 'शर्म एल-शेख ग़ज़ा शांति शिखर सम्मेलन में भारत की मौजूदगी मात्र राज्य मंत्री स्तर पर होना, वहां इकट्ठा हुए राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में बहुत मामूली है। रणनीतिक संयम या खोया हुआ अवसर? यह किर्ति वर्धन सिंह की क्षमता पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन मौजूद 'महान हस्तियों' को देखते हुए भारत का चुनाव रणनीतिक दूरी का संकेत दे सकता है, जिसकी भरपाई हमारे बयानों से नहीं हो सकती। प्रोटोकॉल पहुंच के कारण ही, पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता पर भारत की आवाज अपेक्षाकृत कम वजन वाली हो सकती है। खुद को नया आकार दे रहे इस क्षेत्र में हमारी सापेक्षिक अनुपस्थिति हैरान करने वाली है।'

थरूर का यह बयान उनकी विदेश नीति विशेषज्ञता को दिखाता है। उन्होंने कहा कि भारत की आवाज़ वैश्विक मुद्दों पर मज़बूत हो सकती थी, खासकर जब क्षेत्रीय सुरक्षा और ऊर्जा बाजार प्रभावित हो रहे हैं। 

शर्म एल-शेख सम्मेलन कितना अहम? 

मिस्र के रेड सी रिसॉर्ट शहर शर्म एल-शेख में आयोजित यह शिखर सम्मेलन मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्तह अल-सीसी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सह-अध्यक्षता में हो रहा है। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य इसराइल-हमास युद्ध को ख़त्म करने के बाद ग़ज़ा के पुनर्निर्माण का ढांचा तैयार करना और मध्य पूर्व में क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करना है।

यह सम्मेलन 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इसराइल पर हमले के दो साल पूरे होने के कुछ दिनों बाद हो रहा है। उस हमले में 1200 इसराइली मारे गए थे। इसके जवाब में इसराइल की कार्रवाई से ग़ज़ा में 66 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए। 9 अक्टूबर 2025 को इसराइल और हमास के बीच युद्धविराम और बंधकों की अदला-बदली का समझौता होने के बाद यह सम्मेलन और भी महत्वपूर्ण हो गया। सोमवार को हमास ने 20 इसराइली बंधकों को रिहा किया, जबकि इसराइल ने वेस्ट बैंक से फिलिस्तीनी कैदियों को मुक्त किया। पीएम मोदी ने 9 अक्टूबर को ट्रंप से बात कर 'ऐतिहासिक ग़ज़ा शांति योजना' पर बधाई दी थी, लेकिन शिखर सम्मेलन में उनकी अनुपस्थिति ने सवाल खड़े कर दिए।
भारत को शनिवार को ट्रंप और अल-सीसी से अंतिम समय में निमंत्रण मिला था, जिसके बाद दिल्ली ने सतर्क रुख अपनाते हुए किर्ति वर्धन सिंह को भेजने का फ़ैसला किया। सूत्रों के अनुसार, यह फैसला क्षेत्रीय जटिलताओं और प्रोटोकॉल कारणों से लिया गया। सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदगी भी चर्चा का विषय बनी, जिससे कुछ विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि मोदी की अनुपस्थिति पाकिस्तान से बचने का प्रयास हो सकता है।

भारत की ग़ज़ा नीति

भारत ने हमेशा दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया है, लेकिन इसराइल के साथ रक्षा साझेदारी मज़बूत की है। 2023 के हमले के बाद पीएम मोदी ने इसराइल का समर्थन किया, लेकिन फिलिस्तीन के लिए मानवीय सहायता भेजी। ट्रंप के साथ मोदी के व्यक्तिगत संबंध मज़बूत हैं—फरवरी 2025 में व्हाइट हाउस बैठक में एफ-35 जेट्स और व्यापार मुद्दों पर चर्चा हुई। थरूर ने तब इसे उत्साहजनक बताया था। लेकिन ट्रंप के 50% टैरिफ लगाने के बाद संबंधों में तनाव आया, जिससे भारत ने 'आत्मनिर्भर' नीति तेज की।

भारत की भूमिका पर सवाल

यह घटना भारत की बहुपक्षीय कूटनीति पर सवाल खड़ी करती है। क्या मोदी की अनुपस्थिति रणनीतिक है या खोया हुआ अवसर? थरूर का सवाल बहस छेड़ रहा है। फिलहाल, किर्ति वर्धन सिंह सम्मेलन में भारत का पक्ष रखेंगे, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च स्तरीय प्रतिनिधित्व से भारत की आवाज मजबूत होती।