सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) से एसआईआर के खिलाफ केरल सरकार की याचिका पर जवाब मांगा है। एसआईआर पर अब विपक्ष शासित राज्य खुलकर सामने आ गए हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी रोज़ाना ईसीआई को या तो पत्र लिख रही हैं या फिर बयान दे रही हैं। यूपी में नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने शुक्रवार को एसआईआर के खिलाफ चुनाव आयोग को पत्र लिखा और तमाम व्यवहारिक परेशानियां बताईं। डीएमके ने भी सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर के खिलाफ याचिका दायर की है। यूपी में भी एसआईआर हो रहा है लेकिन वहां से बीएलए के खिलाफ पक्षपातपूर्ण एसआईआर की खबरें हैं। 
एसआईआर अधिसूचना को चुनौती नहींः लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल सरकार द्वारा दायर याचिका पर भारत के चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों के पूरा होने तक केरल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को स्थगित करने की मांग की गई है। केरल सरकार की याचिका में एसआईआर अधिसूचना को चुनौती नहीं दी गई है। सिर्फ प्रक्रिया को स्थगित करने की मांग की गई है। राज्य ने शुरू में स्थानीय निकाय चुनावों तक एसआईआर प्रक्रिया को स्थगित करने की मांग करते हुए केरल हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। हाईकोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया और सुझाव दिया कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए, जो एसआईआर से संबंधित मामलों पर विचार कर रहा है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंत ने इस मामले में अगली सुनवाई 26 नवंबर को करने का फैसला किया है। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए।

केरल से कई याचिकाएंः केरल सरकार की याचिका के अलावा बेंच ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के महासचिव पीके कुन्हालीकुट्टी, केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सनी जोसेफ और माकपा सचिव एमवी गोविंदन मास्टर द्वारा दायर याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया। माकपा सचिव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और आईयूएमएल की ओर से अधिवक्ता हारिस बीरन पेश हुए। 
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4 राज्यों में 5 बीएलओ की मौतें

बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ( SIR) के दूसरे चरण के साथ ही बूथ-स्तरीय अधिकारियों (BLOs) की मौतें और उन पर कार्रवाई की घटनाएँ सामने आई हैं। बुधवार और गुरुवार की दरमियानी रात को, गुजरात के कापडवंज तालुका के नवापुरा गाँव में एक सरकारी स्कूल के 50 वर्षीय शिक्षक रमेशभाई परमार की जामबुडी गाँव स्थित उनके आवास पर दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। परमार को हाल ही में BLO का का सौंपा गया था। उनके भाई नरेंद्र परमार ने पत्रकारों को बताया, "BLO के तौर पर अपना काम खत्म करके वह बुधवार को शाम करीब 7.30 बजे घर लौटे और तरोताज़ा होने के बाद एक बार फिर कागजी कार्रवाई में लग गए।" उन्होंने कहा, “चूंकि गाँव में मोबाइल नेटवर्क की समस्या है। उन्होंने रात 11.30 बजे तक काम किया। इसके बाद उन्होंने खाना खाया और सोने चले गए। लेकिन जब वह सुबह नहीं उठे, तो हम उन्हें पास के अस्पताल ले गए, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हमारा मानना है कि अत्यधिक काम के दबाव के कारण उन्हें दिल का दौरा पड़ा।" परमार की बेटी शिल्पा ने भी कहा कि उनके पिता BLO से संबंधित काम के कारण "दबाव में" थे।

  • जब से SIR शुरू हुआ है, तब से पाँच BLOs की मृत्यु हो चुकी है। जिनमें से दो पश्चिम बंगाल में और एक-एक केरल, राजस्थान और गुजरात में हुई है। जिनकी मौत हुई है, उनके परिवारों ने दावा किया कि उनकी मौतें SIR के कारण अत्यधिक काम के दबाव से जुड़ी हुई हैं।

SIR से 31 मौतों का आरोप

राज्यसभा सांसद और टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने आरोप लगाया है कि 24 दिनों में पश्चिम बंगाल में एसआईआर की वजह से 31 मौतें हो चुकी हैं। टीएमसी सांसद ने कहा कि मीडिया इन मौतों पर ध्यान नहीं दे रहा है। उन्होंने मरने वालों के नामों की सूची भी जारी की है।

ममता बनर्जी ने आयोग को फिर पत्र लिखा

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में चल रही विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर फौरन हस्तक्षेप करने की अपील की है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखे अपने पत्र को एक्स (X) पर साझा करते हुए बनर्जी ने SIR अभियान को “अव्यवस्थित और खतरनाक” बताया। उन्होंने प्रशिक्षण में कमी, जरूरी दस्तावेजों को लेकर स्पष्टता की कमी और लोगों के कामकाज के समय में मतदाताओं से मिल पाने की असंभव स्थिति पर जोर दिया।
उन्होंने एक्स पर कहा, “मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखा अपना नवीनतम पत्र यहां साझा कर रही हूं, जिसमें SIR के संबंध में मेरी गंभीर चिंताओं को स्पष्ट किया गया है....।” इससे एक दिन पहले गुरुवार को ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर कहा था कि “प्रशिक्षण में गंभीर खामियां, अनिवार्य दस्तावेजों को लेकर स्पष्टता की कमी और लोगों के आजीविका के व्यस्त कार्यक्रमों के बीच मतदाताओं से मिलने की लगभग असंभव स्थिति ने इस अभियान को कमजोर बना दिया है।”

टीएमसी की 24 को बैठक

टीएमसी 24 नवंबर को एक आंतरिक बैठक की अध्यक्षता करेगी। इस बैठक की अध्यक्षता पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी करेंगे। इस बैठक का उद्देश्य एसआईआर से संबंधित समीक्षा, कई स्थानों और जिलों में सुधार और यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी नाम छूट न जाए। अभिषेक करीब 10 लाख टीएमसी कार्यकर्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करेंगे।

सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी उठाया मामला

यूपी में नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एसआईआर के संबंध में व्यवहारिक दिक्कतें बताई हैं और इसे रोकने की मांग की है। आजाद ने अपने पत्र सात प्वाइंट्स खासतौर पर रखे हैं। उन्होंने लिखा है कि मतदाता सूची में नाम के लिए 2003 की वोटरलिस्ट को आधार बनाया गया है और लोगों से 22 साल पुराने रेकॉर्ड मांगे जा रहे हैं। यह पूरी तरह से अव्यवहारिक और असंभव है। बीएलओ खुद उस लिस्ट में मौजूदा लोगों के नाम और इपिक नंबर खोज नहीं पा रहे हैं। गांवों में आज से 22 साल पहले इंटरनेट, प्रिंटर, मोबाइल आदि नहीं थे। इसलिए पुराने रेकॉर्ड मिलना असंभव है। एसआईआर का शिकार ज्यादातर गांव के लोग और उनमें भी बुजुर्ग लोग बन रहे हैं। आजाद ने टीचरों और आंगनवाड़ी महिला कार्यकर्ताओं की अतिरिक्त 6-6 घंटे की ड्यूटी और मानसिक दबाव का मामला भी उठाया। काम के दबाव की वजह से कई राज्यों में बीएलओ को खुदकुशी तक करना पड़ी।

सांसद ने खासतौर से गांवों की समस्या उठाते हुए लिखा है कि वहां नेटवर्क कमज़ोर है और सस्ते मोबाइल पर डेटा अपलोड करने में काफी दिक्कत हो रही है। इससे संबंधित ऐप बार-बार हैंग हो जाती है। 




चंद्रशेखर आजाद ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में ज़मीनी हक़ीक़त भी बताई है। उन्होंने चुनाव आयोग को लिखा है कि अलीगढ़, आगरा, लखनऊ, आंबेडकर नगर सहित कई जिलों से शिकायत आई है कि बीएलए फॉर्म लेकर पहुंचे ही नहीं हैं। कुछ जगहों पर फॉर्म बांटे गए लेकिन लोगों को मालूम ही नहीं कि फॉर्म को कैसे भरा जाएगा। बताने की जिम्मेदारी बीएलए पर है। बीएलए फोन नहीं उठा रहे हैं। आम लोगों ने यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी यानी सीईओ को सीधे शिकायत भी की है। सासंद चंद्रशेखर आजाद ने लिखा है कि 96.22 फीसदी फॉर्म बांटने का दावा फर्जी है। जमीनी हकीकत कुछ और है।

नगीना के सांसद ने कहा है कि अंतिम तारीख 4 दिसंबर को बढ़ाया जाए। यह समय बहुत कम है। इससे जनता और कर्मचारियों पर बेवजह का दबाव बन रहा है। उनकी मांग है कि पुराने रेकॉर्ड मांगने की अनिवार्यता खत्म की जाए।
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ECI की जल्दबाजी पर सवाल

चुनाव आयोग द्वारा SIR को एक महीने के भीतर कराने की जल्दबाजी पर विपक्ष सवाल उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि इतने कम समय में इतनी बड़ी प्रक्रिया को पूरा करना अव्यावहारिक है और इससे गलतियां हो सकती हैं। विपक्षी दल (कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, वाम दल) SIR को एक 'साजिश' बता रहे हैं। उनका सबसे बड़ा आरोप यह है कि इस प्रक्रिया को जानबूझकर कुछ लक्षित वर्गों (मुस्लिम, दलित, आदिवासी) के नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसे वे "वोट चोरी" कह रहे हैं। ECI ने हालांकि इसे नियमित संवैधानिक प्रक्रिया बताया है। सबसे महत्वपूर्ण तो यूपी का उदाहरण है। यूपी में 2027 में चुनाव है। लेकिन वहां भी एक महीने यानी 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक एसआईआर प्रक्रिया पूरा करने को कहा गया है।