Content Removal from X: एक्स ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले पर गहरी चिंता जताई है जिसमें पुलिस को कंटेंट हटाने के लिए सहयोग पोर्टल का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। सहयोग पोर्टल केंद्रीय गृह मंत्रालय चलाता है। फैसले को बड़ी अदालत में चुनौती दी जाएगी।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले पर गहरी चिंता जताई है, जिसमें पुलिस को सामग्री हटाने के लिए सहयोग पोर्टल का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। हाईकोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार के आदेशों को बरकरार रखा, जिसके बाद एक्स ने घोषणा की है कि वह इस आदेश को चुनौती देने के लिए अपील करेगा। कंपनी का कहना है कि यह फैसला भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा झटका है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने फैसले में सहयोग पोर्टल को "सार्वजनिक हित का साधन" और "सहयोग का प्रतीक" करार दिया। अदालत ने कहा कि साइबर अपराध से निपटने के लिए यह पोर्टल सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 79(3)(ब) और 2021 के आईटी नियमों के नियम 3(डी) के तहत बनाया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया सामग्री को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनियमित नहीं छोड़ा जा सकता।
एक्स ने अपनी याचिका में दावा किया था कि सहयोग पोर्टल पुलिस अधिकारियों को लाखों की संख्या में मनमाने ढंग से सामग्री हटाने के आदेश जारी करने की अनुमति देता है। यह काम बिना किसी न्यायिक निगरानी या उचित प्रक्रिया के किया जाता है। कंपनी का तर्क था कि इस पोर्टल ने आईटी अधिनियम की धारा 69ए को दरकिनार कर दिया है। जबकि इससे सामग्री ब्लॉकिंग के लिए समीक्षा समिति, लिखित आदेश और सुनवाई जैसी प्रक्रियाओं का प्रावधान होता है। एक्स ने सुप्रीम कोर्ट के श्रेया सिंघल मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
हालांकि, अदालत ने एक्स के तर्कों को खारिज कर दिया। जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, न कि नेवाडा (अमेरिका) में पंजीकृत विदेशी कंपनी एक्स को। अदालत ने श्रेया सिंघल फैसले को पुराने आईटी नियमों से जोड़ते हुए कहा कि यह 2021 के नए नियमों पर लागू नहीं होता।
हाईकोर्ट का फैसला संवैधानिक अधिकारों का हननः एक्स
एक्स ने एक बयान में कहा, "हम अदालत के फैसले से गहरी चिंता में हैं, जिसमें हमारी याचिका को खारिज कर दिया गया है। यह आदेश कानून पर आधारित नहीं है, इसने धारा 69ए को दरकिनार कर दिया है। हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन है और भारतीय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है।" कंपनी ने आगे कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपील करेगी, भले ही वह विदेशी इकाई हो, लेकिन भारत के सार्वजनिक विमर्श में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।क्या है सहयोग पोर्टल
यह पोर्टल सरकार द्वारा शुरू किया गया एक मंच है, जो कथित हानिकारक सामग्री के खिलाफ फौरी कार्रवाई के लिए कंटेंट हटाने का अनुरोध जारी करने की सुविधा देता है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और टेलीग्राम समेत 38 अन्य मध्यस्थों ने इसका समर्थन किया है, जबकि एक्स प्रमुख टेक कंपनियों में से एक है जो इसका विरोध कर रही है। पोर्टल धारा 69ए की प्रक्रियात्मक सुरक्षा के बिना काम करता है, जिससे पुलिस को सीधे अनुरोध जारी करने की शक्ति मिलती है।
यह फैसला सोशल मीडिया नियमन पर सरकार की बढ़ती पकड़ को मजबूत करने वाला है और मध्यस्थों की जिम्मेदारी पर भविष्य के मामलों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। एक्स की अपील से इस पोर्टल की संवैधानिक वैधता पर और जांच हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारत में डिजिटल अधिकारों और साइबर सुरक्षा के बीच संतुलन की बहस को तेज करेगा।