loader

सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी संशोधन क़ानून की वैधता को मंजूरी दी 

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न निरोधी) क़ानून, 2018 को मंजूरी दे दी है। अदालत ने इस क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस मामले में अब शिकायत के बाद तुरंत एफ़आईआर भी होगी और गिरफ़्तारी भी। एससी-एसटी समुदाय के लोगों के उत्पीड़न के अभियुक्त को अब अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2018 में एससी/एसटी क़ानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए थे। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि एससी/एसटी अत्याचार निरोधक क़ानून यानी एससी/एसटी क़ानून में बिना जाँच के एफ़आईआर दर्ज नहीं होगी और एफ़आईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा। सात दिनों के भीतर शुरुआती जाँच ज़रूर पूरी हो जानी चाहिए। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति ज़रूरी होगी। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ़्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी। 

ताज़ा ख़बरें
कोर्ट के पहले के फ़ैसले के बाद एससी/एसटी क़ानून को कमज़ोर किए जाने का आरोप लगाया गया था। इस पर हंगामा, प्रदर्शन हुआ था और जमकर राजनीति भी हुई थी। लोकसभा चुनाव 2019 को नजदीक देखकर मोदी सरकार ने संसद में नया क़ानून बनाया था और सुप्रीम कोर्ट में फ़ैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका लगाई थी। इसके बाद कोर्ट ने अपने फ़ैसले को पलट दिया था। 

एससी/एसटी क़ानून के आलोचक इसके दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। समर्थक कहते हैं कि यह क़ानून दलितों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाले जातिसूचक शब्दों और हज़ारों सालों से चले आ रहे ज़ुल्म को रोकने में मदद करता है।

देश से और ख़बरें
दरअसल, एससी/एसटी क़ानून का यह मामला तब आया था जब सुप्रीम कोर्ट डॉक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और एएनआर मामले की सुनवाई कर रहा था। यह मामला महाराष्ट्र का है जहाँ अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ इस क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज कराया था। ग़ैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके ख़िलाफ़ टिप्पणी की थी। जब मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाज़त माँगी तो इजाज़त नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ़ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुँचा था।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें