सुप्रीम कोर्ट परिसर में डॉग दिखने की तस्वीर हाल ही में वायरल हो गई थी।
जीव-जंतुओं से मेरा बचपन से ही असाधारण किस्म का लगाव रहा है। पेड़ से गिरा गिलहरी का बच्चा, खरगोश, कछुआ और बिल्लियां। ये सब कभी ना कभी मेरे बचपन के पालूत रहे हैं। स्ट्रे डॉग के साथ श्वान साहचर्य प्रारंभ हुआ और लेब्राडोर तक पहुंचा।
महानगरीय जीवन में आने के बाद ये सब कुछ बंद हो गया। फिर भी गली मुहल्ले और ऑफिस के बाहर वाले कुत्तों से रोज का हैलो-हाय है। मेरा छोटा बेटा जिस क्रिकेट एकेडमी में जाता था, वहाँ एक कुत्ता था, जिसकी शक्ल देखकर लगता था कि इसे घर निकाला मिला हुआ है। वो मेरा पास पीठ टिकाकर बैठता था और पंजों के इशारे से कहता था “चचा थोड़ी फोकट वाली चंपी हो जाये।“
ऐसा माना जाता है कि कुत्ते ये भांप लेते हैं कि कौन उन्हें पसंद करता है और कौन नहीं। कुत्तों के साथ मेरी जितनी स्वभाविक दोस्ती है, मेरी पत्नी को लगभग उनसे एलर्जी है। अपने आसपास कुत्ते को देखकर वो घबरा जाती हैं। मुझे लगता है कि हम दोनों अपनी-अपनी जगह ठीक है।
कुत्तों को पसंद करना जितना स्वभाविक है, उन्हें पसंद ना करने वालों की निजी इच्छा का सम्मान भी उतना ही जरूरी है। घरों में पिटबुल और रॉट विलर जैसे नस्ल के कुत्ते रखने वाले तक कई बार इतने जज्बाती होते हैं कि उन्हें ये लगता है कि उनका पोष्य पुत्र जगत पुत्र क्यों नहीं है। बाबा नागार्जुन की लाइनें याद आती हैं-- कुत्तों ने भी पाले कुत्ते बड़े-बड़े...।
मेरे पड़ोस में एक भद्र महिला रहती हैं, जिनके पास गोल्डन रिट्रीवर है। आकार में बड़ा और प्लेफुल होता है। उसकी हरकतों से कई लोग डर जाते हैं। नाखून या पंजा लगा देने या बच्चों गिरा देने की छोटी-मोटी शिकायतें भी आती रहती हैं।
मुझे वो लिफ्ट में मिली। औपचारिकता में मैंने उनके `बेटे’ को पुचकार दिया। इस पर उन्होंने अंग्रेजी में मेरे सभ्य और संवेदनशील होने की सराहना की और बाकी पड़ोसियों को मोटी-मोटी गालियां दीं। स्ट्रे डॉग्स के प्रेमियों की एक बिरादरी उसी तरह आक्रमक और नैतिक श्रेष्ठता ग्रंथि से पीड़ित है, जिस तरह कई वीगन लोग होते हैं। वो मीट इटर्स को नरभक्षी से कम नहीं मानते।
सड़क के कुत्तों का मामला थोड़ा सा जटिल है। वे मानव समाज के सदियों पुराने साथी हैं। उनके साथ रिश्ता थोड़ा ऊपर नीचे होता रहता है लेकिन उन्हें पूरी तरह मिटा देने या निकाल बाहर करने का आइडिया अच्छा नहीं है।
कम्युनिटी डॉग और स्ट्रे डॉग्स में थोड़ा अंतर है। जो कुत्ते शहर से थोड़ा दूर सुनसान इलाकों में रहते हैं, उनके भीतर की मूल शिकारी प्रवृति जाग जाती है। झुंड में रहना और मौका देखकर किसी पशु और इंसान पर हमला करने की घटनाएं अपवाद नहीं बल्कि प्रचुर मात्रा में मिल जाएंगी। आपको विचलित करने वाले कई ऐसे वीडियो मिलेंगे जहां कुत्ते मार्चरी से डेड बॉडी खींच ले गये या किसी छोटे बच्चे को ही उठा लिया।
कुत्ते अपनी जगह हैं और जहां हैं, वहीं से इंसानों से सवाल पूछते हैं कि भाई तुम क्या हो जरा ये भी तो बता दो। हमारे पर्यावरण में चीटीं से लेकर चिड़िया तक सबकी तयशुदा भूमिका है। होमो सीपियंस का काम इन सारी प्रजातियों को बचाकर रखना है और टकराव की स्थिति में संतुलन का रास्ता खोजना है।
सुप्रीम कोर्ट के एक जज साहब ने अपना फरमान सुनाया तो ऐसा लगा कि मनुष्य के सामूहिक विवेक पर कोई कुत्ता टांग उठा गया है। शुक्र है, बड़े जज साहेबान का उन्होंने फैसला बदलकर कम्युनिटी डॉग्स का घर छिनने और उन्हें और ज्यादा हिंसक होने से बचा लिया।
रेवीज के टीके और नसबंदी अभियान को बड़े स्तर पर चलाया जाना चाहिए, उसकी मॉनीटरिंग होनी चाहिए और इस मामले में नगर निगमों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। पड़ोस के प्यारे पपी को याद रखिये लेकिन यू ट्यूब पर जाकर रेबीज से दम तोड़ते किसी मरीज का वीडियो भी एक बार देख लीजिये।
(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक पेज से साभार)