अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तांबे पर 50% और फार्मास्यूटिकल्स पर 200% टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है। इस घोषणा ने वैश्विक व्यापार और विशेष रूप से भारत जैसे देशों के लिए आर्थिक चिंताएं बढ़ा दी हैं, जो अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध रखते हैं। यह कदम भारत के तांबा और फार्मा उद्योगों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

कॉपर पर टैरिफ और भारत

भारत विश्व के प्रमुख कॉपर निर्यातकों में से एक है, और अमेरिका इसका एक महत्वपूर्ण बाजार है। ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तावित 50% टैरिफ भारतीय कॉपर निर्यात को महंगा कर सकता है, जिससे इसकी मुकाबले की क्षमता कम हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारतीय तांबा उद्योग, विशेष रूप से स्मेल्टिंग और रिफाइनिंग क्षेत्र, पर दबाव बढ़ेगा।
हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड और वेदांता जैसे प्रमुख भारतीय तांबा उत्पादकों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि टैरिफ लागू होने पर भारत का तांबा निर्यात 20-30% तक कम हो सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा आय पर असर पड़ेगा। इसके अलावा, घरेलू कीमतों में वृद्धि और सप्लाई चेन में रुकावट की आशंका भी जताई जा रही है, क्योंकि तांबा इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है।
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फार्मा उद्योग पर 200% टैरिफ का खतरा

भारत, जिसे "विश्व की फार्मेसी" के रूप में जाना जाता है, अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का एक बड़ा हिस्सा निर्यात करता है। ट्रंप की 200% टैरिफ की चेतावनी भारतीय फार्मा कंपनियों जैसे सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज़, और सिप्ला के लिए एक बड़ा झटका हो सकती है। अमेरिका भारत से लगभग 40% जेनेरिक दवाएं आयात करता है, और इस टैरिफ से दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के साथ-साथ भारतीय निर्यातकों को भी नुकसान होगा।
फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (फार्मेक्सिल) ने चेतावनी दी है कि इस तरह के टैरिफ से भारत का $25 बिलियन का फार्मा निर्यात बाजार खतरे में पड़ सकता है। इससे न केवल निर्यात आय प्रभावित होगी, बल्कि लाखों नौकरियों पर भी संकट मंडरा सकता है। इसके अलावा, भारतीय कंपनियों को वैकल्पिक बाजार तलाशने की आवश्यकता होगी, जो समय और संसाधनों की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने इस चेतावनी पर सतर्क रुख अपनाया है। वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ बातचीत करेगा और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का हवाला देकर इसका विरोध कर सकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को मजबूत करना चाहिए।

आर्थिक और ग्लोबल प्रभाव

ट्रंप की नीति का उद्देश्य अमेरिकी घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना है, लेकिन इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और मुद्रास्फीति का खतरा बढ़ सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होगी, क्योंकि वे पहले से ही वैश्विक आर्थिक मंदी और भू-राजनीतिक तनावों से जूझ रहे हैं।
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भारतीय उद्योग और सरकार को इस संकट से निपटने के लिए रणनीतिक कदम उठाने होंगे। तांबा उद्योग को नई तकनीकों और लागत में कमी पर ध्यान देना होगा, जबकि फार्मा क्षेत्र को यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी होगी। साथ ही, भारत को अपनी व्यापार नीतियों को और अधिक लचीला बनाना होगा ताकि वह इस तरह के वैश्विक झटकों का सामना कर सके।