Delhi Riots 2020 Umar Khalid: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 19 सितंबर को उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत अर्जी की सुनवाई दूसरी बात टाल दी। जस्टिस मनमोहन के सुनवाई से अलग होने के बाद यह स्थिति बनी। जज साहब क्यों अलग हुए, जानिएः
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार 19 सितंबर को उमर खालिद, शरजील इमाम आदि को फिर तारीख मिली। दिल्ली दंगा 2020 में कथित साजिश के मामले में आरोपी राजनीतिक कैदी और जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, शरजील इमाम और तीन अन्य लोगों की जमानत याचिकाओं पर यह सुनवाई लगातार दूसरी बार स्थगित हुई है। इस बार जस्टिस मनमोहन ने खुद को इस केस से अलग कर लिया।
यह मामला जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच में शुक्रवार को सुनवाई के लिए लिस्ट था। कपिल सिब्बल की ओर से पेश होने वाले वकील ने बेंच को सूचित किया कि कपिल सिब्बल इस मामले में बहस का नेतृत्व कर रहे हैं। इस पर जस्टिस मनमोहन ने खुद को इस केस से अलग कर लिया। सिब्बल जस्टिस मनमोहन के सामने पेश नहीं होते। क्योंकि जस्टिस मनमोहन ने अपने कानूनी करियर की शुरुआत सिब्बल के चैंबर में जूनियर के रूप में की थी। बहरहाल अब कोर्ट ने उमर खालिद, शरजील इमाम आदिक को 22 सितंबर की तारीख दे दी। यानी अब अगली सुनवाई 22 सितंबर के लिए टाल दी गई।
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि 22 सितंबर को जमानत याचिकाओं पर सुनवाई वास्तव में होगी या नहीं, क्योंकि रोस्टर के अनुसार उस दिन भी जस्टिस कुमार और मनमोहन की ही बेंच होगी। जब तक जस्टिस मनमोहन की जगह दूसरा जज नहीं लाया जाता, तब तक सुनवाई नहीं हो सकती। बहुत मुमकिन है कि कोर्ट रजिस्ट्रार अगली सुनवाई तक रोस्टर में दूसरे जज को ले आए।
पिछली बार की वजह फाइलों का रात में देर से आना था
पिछले हफ्ते 12 सितंबर को जस्टिस अरविन्द कुमार की बेंच के सामने यह मामला आया था। तब उन्होंने कहा था कि भारी-भरकम केस रिकॉर्ड आधी रात के बाद उनके आवास पर पहुंचे थे, जिसे समय पर जांचा नहीं जा सका। इसलिए इसमें तारीख दी जा रही है। वो नई तारीख 19 सितंबर थी। अब 19 सितंबर को भी तारीख मिल गई।दिल्ली हाई कोर्ट ने कई सुनवाई के बाद 2 सितंबर को याचिकां खारिज कीं थी
बेंच के सामने याचिकाकर्ता इमाम, खालिद, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान उन नौ आरोपियों में शामिल हैं, जिनकी जमानत याचिकाएं दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 सितंबर को खारिज कर दी थीं। हाई कोर्ट ने उनकी भूमिका को "पहली नज़र में गंभीर" बताया था, जबकि उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत अपनी चुनौती को खारिज किया था।वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी शरजील इमाम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल खालिद के लिए पेश होते हैं। दोनों की याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि लंबी हिरासत इमाम जनवरी 2020 से और खालिद सितंबर 2020 से बिना ट्रायल के सजा के समान है, खासकर जब ट्रायल अभी भी दूर है और कई पूरक चार्जशीट और दर्जनों गवाहों की जांच बाकी है।
अब यह मामला भारत के चीफ जस्टिस के सामने नए सिरे से लिस्ट करने के लिए रखा जाएगा। 2 सितंबर को, हाई कोर्ट की जस्टिस नवीन चावला और शालिंदर कौर (अब सेवानिवृत्त) की बेंच ने नौ accused की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें जांचकर्ताओं द्वारा वर्णित समन्वित षड्यंत्र पर भरोसा किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दंगे हुए, जिसमें 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।
हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए उल्लेख किया था कि इमाम और खालिद ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद व्हाट्सएप समूहों, पर्चों और कथित तौर पर भाषणों के जरिए विरोध प्रदर्शनों को सबसे पहले संगठित किया था। दिल्ली पुलिस, जिसका प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने किया, ने उन्हें षड्यंत्र के "बौद्धिक सूत्रधार" के रूप में बताया था।
उमर खालिद के मामले में हाईकोर्ट का तर्क
हालांकि इमाम 28 जनवरी, 2020 से हिरासत में थे और दंगों के दौरान उमर खालिद दिल्ली में मौजूद नहीं थे। हाई कोर्ट ने माना कि दंगे के स्थल पर उनकी अनुपस्थिति अप्रासंगिक थी। क्योंकि संगठन और योजना पहले ही की जा चुकी थी। हाई कोर्ट ने कहा, "दंगों से कुछ हफ्ते या दिन पहले की अनुपस्थिति उनकी भूमिका को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती।"दिल्ली पुलिस ने पहले तर्क दिया था कि इमाम ने अलीगढ़, आसनसोल और चकंद में भड़काऊ भाषण दिए, जबकि खालिद ने 17 फरवरी, 2020 को अमरावती में भाषण दिया, जिसमें 24 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान विरोध का आह्वान किया गया था।
हालांकि, उमर खालिद ने हाई कोर्ट के सामने तर्क दिया कि उनकी किसी भी बैठक में हिंसा की योजना नहीं बनाई गई थी, और उनकी लंबी हिरासत ने जमानत को नियम और जेल को अपवाद के सिद्धांत का उल्लंघन किया है। उन्होंने सह-छात्र कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें भी उसी आधार पर जमानत मिलना चाहिए। उन लोगों को 2021 में जमानत मिली थी।
इमाम ने जोर दिया कि वह जनवरी 2020 से हिरासत में हैं, जो दंगों से हफ्तों पहले की बात है। उनके भाषणों का हिंसा से कोई संबंध नहीं था। खालिद ने कहा कि 17 फरवरी, 2020 को अमरावती में उनके भाषण में ट्रम्प की यात्रा का सिर्फ उल्लेख था और एक हफ्ते बाद शुरू हुई हिंसा से असंबंधित था।
हालांकि, हाई कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इस केस में जिन सह आरोपियों को जमानत मिली थी, उनकी सीमित भूमिका के विपरीत, इमाम और खालिद की भागीदारी पहली नज़र में ज्यादा गंभीर है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि विरोध का अधिकार सुरक्षित है, लेकिन प्रदर्शनों की आड़ में षड्यंत्रकारी हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती।