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मणिपुर पर यूएस की प्रतिक्रिया फिर आई, आदिवासी समूह भी सक्रिय

अमेरिका ने मणिपुर में वायरल वीडियो की घटना पर फिर प्रतिक्रिया दी है। अमेरिका में रह रहे मणिपुरी लोगों ने भी इस मामले को उठाया है। बाइडन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि मणिपुर में दो महिलाओं पर हुए हमले के वीडियो से अमेरिका "स्तब्ध और भयभीत" है। अमेरिका इस बारे में आरोपियों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन करता है। 4 मई को मणिपुर के थौबल जिले में कुछ महिलाओं की नग्न परेड कराई गई थी। इसमें एक भीड़ शामिल था। कुछ लोगों ने कुकी आदिवासी महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया और एक महिला के साथ गैंगरेप किया गया था। यह वीडियो 19 जुलाई को वायरल हुआ और पूरी दुनिया में इसकी निन्दा अब तक जारी है। भारतीय संसद में भी यह खास मुद्दा बना हुआ है।
पीटीआई के मुताबिक अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा, "मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हुई घटना से हम स्तब्ध और भयभीत हैं। हम जेंडर आधारित हिंसा के इस कृत्य से बचे लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं और उनके लिए इंसाफ पाने के भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन करते हैं।" अमेरिकी अधिकारी का यह बयान मंगलवार देर रात आया था। वेदांत पटेल एक पाकिस्तानी पत्रकार द्वारा मणिपुर में हुई हिंसा पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे।

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पटेल ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा कि किसी भी सभ्य समाज में महिलाओं के खिलाफ ऐसी हिंसा शर्मनाक है।और जैसा कि हमने पहले कहा है, हम मणिपुर में हिंसा के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देते हैं। हम मणिपुर में सभी समूहों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के पक्ष में हैं।"
मणिपुर की स्थिति पर अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में संसद के बाहर प्रधानमंत्री मोदी ने 20 जुलाई को वायरल वीडियो की घटना पर दुख और गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा कि इसने 140 करोड़ भारतीयों को शर्मसार किया है और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। कांग्रेस ने पीएम मोदी की टिप्पणी को बहुत देरी से दी गई मामूली प्रतिक्रिया बताया था। कांग्रेस इस बात पर नाराज नजर आई कि पीएम मोदी ने उसी बयान में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का नाम लेकर घटना का राजनीतिकरण कर दिया था। उसी समय से विपक्ष पीएम मोदी से संसद में आकर बयान देने को कह रहा है।
मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 160 से अधिक लोगों की जान चली गई है। कई घायल हुए हैं। यह सब तब शुरू हुआ जब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की कोशिश का वहां के आदिवासी समुदाय ने विरोध किया। मणिपुर के पहाड़ी जिलों में 3 मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया। उसी दौरान हिंसा शुरू हो गई थी।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।  
इस बीच, यूएसए में छोटे से मणिपुरी समूह ने हिंसा को तत्काल समाप्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। समूह ने कहा कि मणिपुर में कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए राष्ट्रपति शासन जरूरी है।
नॉर्थ मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन की अध्यक्ष फ्लोरेंस लोव ने पीटीआई से कहा- “मैं इस मुद्दे पर बात करते-करते बहुत थक गई हूँ।... हम क्या कर सकते हैं? हम ऐसा क्यों होने दे रहे हैं? भारत में ही इसका एक बहुत ही सरल उपाय है, राष्ट्रपति शासन। लेकिन भारत सरकार ने अपने स्वयं के कारणों से, इस बारे में कुछ भी नहीं करने या कहने का फैसला किया है।

डलास में टेक्सास विश्वविद्यालय में डिजिटल प्रोडक्शन मैनेजमेंट की सहायक प्रोफेसर, फ्लोरेंस उत्तर प्रदेश कैडर के पूर्व भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी की बेटी हैं। मणिपुर में जन्मी लोव ने अपना अधिकांश बचपन उत्तर प्रदेश में बिताया। मई में, उन्होंने अपने राज्य के पहाड़ी जनजाति के लोगों को उनके मूल राज्य में हिंसा के खिलाफ विरोध करने के लिए एक मंच के बैनर तले लाने के लिए उत्तरी अमेरिकी मणिपुर आदिवासी संघ का गठन किया।

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लोव ने कहा- "वे आग को जलने दे रहे हैं। कम से कम अमेरिका में, हम जो करने की कोशिश कर रहे हैं वह हमारे कांग्रेस के लोगों और हमारे सीनेटरों और विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त) आदि जैसे विश्व संगठनों के साथ जागरूकता बढ़ाना है।"
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क़मर वहीद नक़वी
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