संसद में सोमवार को वंदे मातरम पर बहस हुई। पीएम मोदी ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस पर हमला बोला। लेकिन उन्होंने इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किया। आरएसएस अपनी शाखा में इस गीत को क्यों नहीं गाता। संघ ने वंदे मातरम के मुकाबले दूसरा गीत क्यों बनाया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू के साथ
'वंदे मातरम्' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस पार्टी पर हमला किया। वंदे मातरम् को लेकर मोदी, बीजेपी और आरएसएस लगातार हमले कर रहे हैं। लेकिन तथ्यों की पड़ताल बताती है कि कहीं न कहीं मोदी और बीजेपी इतिहास को गलत तरह से पेश कर रहे हैं। जो इतिहास अब बदल नहीं सकता, उसे मोदी और बीजेपी नेता अपने भाषणों से बदलना चाहते हैं।
वंदे मातरम से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
कांग्रेस कार्य समिति की बैठक 26 अक्टूबर से 1 नवंबर 1937 को कोलकाता में हुई थी। उपस्थित लोगों में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सरोजिनी नायडू, जे.बी. कृपलानी, भूलाभाई देसाई, जमनालाल बजाज, नरेंद्र देव और अन्य शामिल थे। "द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी खंड 66, पृष्ठ 46 से पता चलता है कि 28 अक्टूबर 1937 को, CWC ने 'वंदे मातरम्' पर एक बयान जारी किया था, और इस बयान पर गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर और उनकी सलाह का गहरा प्रभाव था।"
1937 के CWC बयान में कहा गया था, "धीरे-धीरे (वंदे मातरम्) गीत के पहले दो पद अन्य प्रांतों में फैल गए और उनसे एक निश्चित राष्ट्रीय महत्व जुड़ने लगा। बाकी गीत का उपयोग बहुत कम किया गया और आज भी कुछ ही लोग इसे जानते हैं। ये दो पद मातृभूमि की सुंदरता और उसके उपहारों का नाज़ुक भाषा में वर्णन करते हैं।" उस बयान में आगे कहा गया- "'इन पदों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर कोई आपत्ति कर सके। गीत के अन्य पद कम ज्ञात हैं और शायद ही कभी गाए जाते हों। उनमें कुछ संकेत और एक धार्मिक विचारधारा शामिल है जो भारत में अन्य धार्मिक समूहों की विचारधारा के अनुरूप नहीं हो सकती है।"
कांग्रेस सीडब्लूसी के उस बयान में कहा गया था, "इसलिए सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, समिति सिफारिश करती है कि राष्ट्रीय समारोहों में जहाँ कहीं भी 'बंदे मातरम्' गाया जाता है, वहाँ केवल पहले दो पद ही गाए जाने चाहिए।" CWC ने 1937 में कहा था कि 'बंदे मातरम्' ने राष्ट्रीय जीवन में जो स्थान प्राप्त कर लिया है, उस पर कोई सवाल नहीं हो सकता, लेकिन यही बात अन्य गीतों के बारे में नहीं कही जा सकती।
कांग्रेस ने उप समिति बनाई
1937 के उस बयान में कांग्रेस ने कहा था- "इसलिए यह समिति मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और नरेंद्र देव की एक उप-समिति नियुक्त करती है, ताकि उसे भेजे गए सभी वर्तमान राष्ट्रीय गीतों की जांच की जा सके और जो ऐसा करने के इच्छुक हैं, उन्हें अपनी रचनाएँ इस उप-समिति को भेजने के लिए आमंत्रित किया जाता है।" CWC ने कहा था कि उप-समिति इस तरह प्राप्त गीतों में से उस संग्रह को कार्य समिति को प्रस्तुत करेगी जिसे वह राष्ट्रीय गीतों के संग्रह में स्थान पाने योग्य मानेगी। इसमें कहा गया था, "केवल वही गीत स्वीकार किए जाएंगे जो सरल हिंदुस्तानी में रचे गए हैं या उसमें ढाले जा सकते हैं, और जिनका उत्साहवर्धक और प्रेरणादायक स्वर हो। उप-समिति कवि रबींद्रनाथ टैगोर से परामर्श करेगी और उनकी सलाह लेगी।"
टैगोर का नेहरू का पत्र
दर्ज इतिहास के मुताबिक "वंदे मातरम्" का एक छोटा संस्करण, जिसमें केवल मूल छह छंदों में से पहले दो छंद रखे गए थे, को एक पैनल द्वारा इसे अपनाने की सिफारिश के बाद 1937 में कांग्रेस द्वारा राष्ट्रगीत के रूप में चुना गया था। दो छंदों को अपनाने की सलाह रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी। इसे अपनाने की सिफारिश के बाद 1937 में कांग्रेस ने इसे राष्ट्रगीत के रूप में चुना था। इस सिलसिले में एक पत्र को भी इतिहास ने दर्ज किया है। नेहरू को लिखे एक पत्र में, टैगोर ने लिखा, "मेरे लिए, इसके पहले भाग में व्यक्त की गई कोमलता और भक्ति की भावना, हमारी मातृभूमि के सुंदर और परोपकारी पहलुओं पर दिए गए जोर ने एक विशेष अपील की, इतना अधिक कि मुझे इसे कविता के बाकी हिस्सों और किताब के उन हिस्सों से अलग करने में कोई कठिनाई नहीं हुई।"
वंदे मातरम और आरएसएस
- नागपुर में 27 सितंबर 1925 को आरएसएस की स्थापना हुई
- 1930 में बंकिम चंद्र के वंदे मातरम की चर्चा देश भर में होने लगी थी।
- आरएसएस ने 1940 में दैनिक प्रार्थना के रूप में 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे' गीत को अपनाया। यह 1940 में रचित संस्कृत भजन है, जो मातृभूमि को नमन करता है और राष्ट्र-भक्ति पर जोर देता है।
- सवाल है: वंदे मातरम जब इतना बड़ा राष्ट्रभक्ति गीत है तो संघ की शाखा में वंदे मातरम क्यों नहीं गाया जाता है?
(कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में कहा कि आरएसएस-भाजपा वंदे मातरम को मुद्दा बनाते हैं, लेकिन अपनी शाखाओं में न तो इसे गाते हैं और न ही जन गण मन को। इसके बजाय, वे अपनी प्रार्थना को प्राथमिकता देते हैं।)
आरएसएस ने वंदे मातरम की जगह नया गीत क्यों अपनाया
आरएसएस ने वंदे मातरम को क्यों नजरअंदाज किया? इतिहासकारों का मानना है कि 1930-40 के दशक में, जब कांग्रेस ने इसे अपनाया, आरएसएस ने अपनी अलग हिंदुत्व-आधारित पहचान बनाई। वे इसे 'कांग्रेस का गीत' मानते थे, जो मुस्लिम-विरोधी विवादों से जुड़ा था।
मोदी से जयराम रमेश के सवाल
कांग्रेस के महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने एक बयान जारी कर पीएम मोदी को 'मास्टर डिस्टोरियन' कहा। उन्होंने कहा, "मास्टर डिस्टोरियन ने आज (8 दिसंबर) संसद में फिर से गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का अपमान दोहराया है। प्रधानमंत्री के इस मास्टर डिस्टोरियन को माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने हमारे संस्थापक पिताओं का, और सबसे ऊपर टैगोर जी का अपमान किया है।" जयराम रमेश ने 1994 में विश्व भारती द्वारा प्रकाशित प्रभात कुमार मुखोपाध्याय की पुस्तक 'रवींद्र-जीवननी' (खंड 4, पृष्ठ 110-112) के अंश साझा किए। नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाने के जवाब में उन्होंने सवाल उठाए: "नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन क्या पीएम मास्टर डिस्टोरियन जवाब देंगे: 1. 1940 के दशक में बंगाल में किस भारतीय नेता ने लाहौर में मार्च 1940 में पाकिस्तान प्रस्ताव पेश करने वाले व्यक्ति के साथ गठबंधन किया? यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।
जयराम रमेश ने आगे पूछा है- 2. जून 2005 में कराची में किस भारतीय नेता ने जिन्ना की तारीफ की? यह लालकृष्ण अडवाणी थे। 3. 2009 में किस भारतीय नेता ने अपनी किताब में जिन्ना की प्रशंसा की? यह जसवंत सिंह थे।" कांग्रेस का कहना है कि भाजपा से जुड़े नेताओं के जिन्ना से संबंधों पर भी सवाल उठना चाहिए। यहां पर इतिहास के एक और तथ्य का जिक्र जरूरी है। अंग्रेजों के समय अविभाजित बंगाल में जिन्ना ने अपनी मुस्लिम लीग का श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पार्टी से समझौता कर सरकार चलाई थी। इसी तरह हिन्दू महासभा ने जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया था।
हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुगता बोस ने एक कार्यक्रम में बताया कि किस तरह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस वंदे मातरम के मुद्दे को सुलझाने के लिए एक साथ आए थे। प्रोस बोस ने भी यही कहा कि वंदे मातरम के पहले दो पैराग्राफ ही शानदार कविता है। उनका वीडियो ऊपर लगा हुआ है।