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बिहार के औरंगाबाद ज़िले के खैरा गांव में चहल-पहल कम हो गई है। यहाँ आम तौर पर 5-7 लोग नज़र आते थे।

कोरोना के कहर से गांवों में परिवार के परिवार तबाह हो गए!

गाँवों में एकाएक मौत के मामले बढ़ गए हैं। गंगा में सैकड़ों लाशें तैरती मिल रही हैं। हज़ारों लाशों को गंगा किनारे रेत में दफ़न करने की ख़बरें हैं। हर गाँवों में बड़ी संख्या में बुखार से पीड़ित होने की रिपोर्ट है। तो क्या कोरोना वायरस शहरों को तबाह करने के बाद अब गाँवों में कहर ढा रहा है? इसका सीधा या आसान जवाब संभव नहीं है। ऐसा इसलिए कि गाँवों में तो लोगों के पास कोरोना जाँच की सुविधा नहीं है या फिर लोग जाँच करा नहीं रहे हैं। लेकिन गाँवों में इस तरह न तो कभी बुखार वाली बीमारी आई थी और न ही नयी पीढ़ी ने इतनी संख्या में मौतें देखी थीं।  

ये हालात उत्तर प्रदेश के गाँवों के हैं और ऐसे ही हालात बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी। गाँवों में बुखार जैसी बीमारी फैली है। अधिकतर लोगों को सामान्य इलाज से ही बीमारी ठीक हो जा रही है। कई लोगों को साँस लेने में दिक्कतें आ रही हैं। समय पर अस्पताल पहुँच जाने और अस्पताल बेड मिलने में कुछ ज़िंदगियाँ बच रही हैं और जाँच में अधिकतर लोगों में कोरोना की पुष्ट भी हो रही है। लेकिन कई ऐसे मरीज़ हैं जिनकी रास्ते में ही या घर पर ही मौत हो जा रही है और उनका कोरोना टेस्ट भी नहीं हो पा रहा है।

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ऐसा ही मामला बिहार के डेहरी प्रखंड के दरिहट में आया है। दरिहट में एक महीने में क़रीब 80 लोगों की मौत की स्थानीय मीडिया में ख़बर छपी तो प्रशासनिक अमला व स्वास्थ्य महकमा पहुँचा। इसने गाँव का जायजा लेने के बाद कहा कि वह ख़बर अफवाह है। एसडीएम सुनील कुमार सिंह ने कहा कि ऐसी 'ग़लत ख़बर' चलाने पर क़ानूनी कार्रवाई होगी। हालाँकि टीम ने कहा कि गाँव में 24 लोगों की मौत हुई है और इसमें तीन लोगों की मौत कोरोना से हुई है और बाक़ी लोगों की मौत अन्य कारणों से हुई है। 

हरियाणा के बापोड़ा में पिछले 2 हफ्तों में 30 लोगों की जान चली गई है। इतनी मौतों के बाद भी क़रीब 20 हज़ार की आबादी वाले इस गाँव में कई लोग कोरोना टेस्ट करवाने को राजी नहीं हैं। यह केंद्रीय मंत्री वीके सिंह का पैतृक गाँव है। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ बापोड़ा के सरपंच नरेश कुमार ने बताया कि दो हफ्ते में 30 लोगों की मौत से गांव में चिंता बढ़ने लगी है। उन्होंने कहा कि जिनकी मौत हुई है उनको खांसी, बुखार जैसे कुछ लक्षण थे, पर किसी ने कोरोना की जाँच नहीं करवाई। अब जाहिर है जाँच नहीं होने से मौत का कारण स्पष्ट नहीं है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि मृतकों में अधिकतर संख्या बुजुर्गों की थी। नरेश कुमार ने कहा कि अभी तक कई लोगों में कोविड के लक्षण भी देखने को मिले हैं, लेकिन तीन लोग ही कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं। 

ऐसे ही हालात हरियाणा के दूसरे गाँवों के भी हैं। क़रीब दो हफ़्ते पहले रोहतक ज़िले के टिटोली गाँव में 28 लोगों की जान जा चुकी थी। 'नवभारत टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार तब रोहतक ज़िला प्रशासन ने इस पूरे क्षेत्र को कंटेनमेंट ज़ोन में बदल दिया था। जाँच में क़रीब 25 फ़ीसदी लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे। 

देश की राजधानी दिल्ली से क़रीब डेढ़ घंटे की दूरी पर बसी गाँव में भी कई मौतें हुई हैं। क़रीब 5400 की आबादी वाले इस गाँव में पिछले तीन हफ़्ते में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है।

'द इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, किसान समुदाय के नवनिर्वाचित प्रमुख संजीव कुमार ने कहा, 'गाँव में ज़्यादातर मौतें इसलिए हुई हैं क्योंकि ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी।' उन्होंने कहा, 'बीमारों को ज़िला मुख्यालय ले जाया जा रहा है और उन बेहद बीमार मरीजों को लगभग चार घंटे की दूरी तय करनी पड़ती है।' उन्होंने कहा कि कई लोग  समय पर नहीं पहुँच पाते हैं।

ऐसे हालात इसलिए हैं कि गाँवों में कोई अस्पताल नहीं है। न कोई डॉक्टर है और न ही ऑक्सीज़न की व्यवस्था। दिल्ली, पटना जैसे शहरों की तरह गाँवों में ट्विटर-फ़ेसबुक से किसी तरह के सहयोग की गुंजाइश भी नहीं है। एक तो गाँवों में अधिकतर लोगों को ट्विटर के बारे में पता नहीं है और फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर भी किसी सहायता मिलने की उन्हें जानकारी नहीं है। यदि कोई सोशल मीडिया पर ऐसी सहायता माँगे भी तो उस मैसेज का शायद उतना प्रसार नहीं हो पाए और यदि मैसेज का प्रसार हो भी तो छोटे क़स्बों और शहरों में उस तरह से कोई सहायता नहीं मिल पाए। 

villagers getting infected with covid after devastating biggest cities - Satya Hindi
फ़ोटो साभार: ट्विटर/वीडियो ग्रैब

ग्राम प्रधान चुनने के लिए हाल ही में हुए चुनाव के दौरान 59 वर्षीय कुमारसैन नैन सहित कई लोग संक्रमित हो गए। 'द इकोनॉमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, नैन और उनके 31 वर्षीय बेटे भी संक्रमित थे। नैन के एक दूसरे बेटे प्रवीण कुमार ने कहा कि चलने में असमर्थ और सांस के लिए हांफने के कारण उन्हें पिछले महीने पास के एक अस्पताल में पहुँचाया, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट वाली एम्बुलेंस नहीं मिली थी।

कुमार ने कहा, 'जब हम अस्पताल पहुँचे तो डॉक्टरों ने कहा कि उनकी मौत हो गई है। लेकिन कोविड -19 को मौत का कारण दर्ज करने के बजाय उन्होंने कार्डियक अरेस्ट दर्ज किया।' उन्होंने कहा, 'डॉक्टर ने हमें बताया कि मेरे पिता कोविड -19 पॉजिटिव थे या नहीं, यह जांचने की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वह पहले ही मर चुके थे।'

उनके भाई की जल्द ही क़रीब 30 मिनट की दूरी पर एक अन्य क्लिनिक में मौत हो गई और लगभग उसी समय छह अन्य मरीज भी जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। कुमार ने कहा, 'मुझे संदेह है कि अस्पताल में ऑक्सीजन ख़त्म हो गई, जिसके कारण मौतें हुईं।' उन्होंने पूछा, 'जब सरकार को पता था कि मामले बढ़ रहे हैं और संक्रमण फैल रहा है, तो चुनाव कराना एक आपराधिक कृत्य है।'

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जलालपुर में भी मौतें

क़रीब एक हफ़्ते पहले ख़बर आई थी कि दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के जलालपुर गांव में बीते 14 दिनों में 18 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन टेस्टिंग न होने के कारण पता नहीं चल पाता कि मौत होने का कारण कोरोना था या कुछ। इसके आसपास के गांवों में भी मौतें हो रही हैं। गांव के रहने वाले अतर सिंह के दो दिन में दो बेटों की मौत हो गई। गाँव के ग्रामीणों ने इंडिया टुडे को बताया कि बीते कुछ दिनों में कम से कम 18 लोगों की मौत हो चुकी है, इनमें 6 महिलाएँ भी शामिल थीं। 

'हिंदुस्तान' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ग्रेटर नोएडा वेस्ट के गांव खैरपुर गुर्जर, जलालपुर, मिलक लच्छी और सैनी में क़रीब 20 दिन में 65 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और इनमें अधिकांश बुजुर्ग हैं। इन गांवों में दर्जनों लोग बुखार से पीड़ित थे।

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ऐसे हालातों के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्टों में देश में संक्रमण के मामले लगातार कम होते जा रहे हैं। पहले जहाँ एक दिन में 4 लाख 14 हज़ार केस आ गए थे वे अब तीन लाख से भी कम हो गए हैं। बीते 24 घंटों में भारत में कोरोना संक्रमण के 2,63,533 मामले सामने आए। रविवार को संक्रमण के 2,81,386 नए मामले सामने आए थे। तो सवाल है कि जो आँकड़े स्वास्थ्य विभाग ने जारी किए हैं वे क्या गाँवों में भी संक्रमण कम होने की ओर इशारा करते हैं? यह कहना मुश्किल है क्योंकि गाँवों में तो कोरोना की जाँच ही न के बराबर हो रही है। हालाँकि फिर भी कई गाँवों में अधिकतर लोग ठीक हो गए हैं और अब कुछ लोग ही बीमार हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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