गृह मंत्रालय (एमएचए) ने जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील की है, जिसमें पीओके भेजी गई महिला को वापस लाने का निर्देश दिया गया था। 62 साल की महिला को, पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान भेज दिया गया था। गृह मंत्रालय ने अपील में कहा है कि "न्यायपालिका को विदेशी नागरिक को बाहर निकालने के कार्यकारी (एग्जेक्यूटिव) आदेश को रद्द नहीं करना चाहिए।"
गृह मंत्रालय ने अपनी अपील में तर्क दिया कि हाईकोर्ट का आदेश संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है। क्योंकि यह भारत की संप्रभु सीमा से परे पाकिस्तान में न्यायिक रिट लागू करने का निर्देश देता है, जहां महिला को देशनिकाला कर भेजा गया था। मंत्रालय ने कहा, "भारत और पाकिस्तान के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि, कानूनी माध्यम या अंतरराष्ट्रीय दायित्व नहीं है, जो पाकिस्तान को उसे भारत वापस करने के लिए बाध्य करता हो। भारत सरकार मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी संप्रभु राष्ट्र को गैर-नागरिक को सौंपने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।"
मंत्रालय ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट का आदेश "राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों, विशेष रूप से शत्रुतापूर्ण देश के नागरिकों से निपटने में न्यायिक संयम के सिद्धांतों के विपरीत है।" इसने यह भी स्पष्ट किया कि "किसी भारतीय नागरिक से विवाह के आधार पर ही कोई विदेशी नागरिक भारत में निवास का अधिकार या भारतीय राष्ट्रीयता प्राप्त नहीं कर लेता।"
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गृह मंत्रालय ने चेतावनी दी कि इस तरह का आदेश एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है, जिसका इस्तेमाल विदेशी नागरिक अनुच्छेद 226 के तहत व्यक्तिगत प्रत्यावर्तन के लिए कर सकते हैं। 
यह मामला उस समय सामने आया जब पहलगाम हमला हुआ। पाकिस्तानी लोगों को जम्मू कश्मीर में खोजा जाने लगा। रक्शंदा राशिद नाम की 62 वर्षीय महिला, जो लगभग चार दशकों तक भारत में दीर्घकालिक वीजा (एलटीवी) पर रह रही थी, को पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई के तहत निर्वासित कर दिया गया। उनके परिवार का कहना है कि जनवरी में एलटीवी विस्तार के लिए आवेदन किया गया था, लेकिन 29 अप्रैल को उन्हें अटारी सीमा चौकी के माध्यम से पाकिस्तान में भेज दिया गया।
हाईकोर्ट ने 6 जून 2025 को अपने आदेश में कहा था कि "मानवाधिकार मानव जीवन का सबसे पवित्र हिस्सा हैं, और इसलिए ऐसी परिस्थितियां होती हैं जब संवैधानिक न्यायालय को मामले के गुण-दोष की परवाह किए बिना तत्काल हस्तक्षेप करना पड़ता है।"
गृह मंत्रालय ने इस आदेश को "कानूनी रूप से अप्रवर्तनीय और कूटनीतिक रूप से असंभव" बताते हुए इसका विरोध किया है। यह मामला अब राष्ट्रीय सुरक्षा, आप्रवासन नीति और न्यायिक हस्तक्षेप के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस का विषय बन गया है।