न जाने क्यों बीजेपी के नेता किसानों के आंदोलन के पीछे पड़ चुके हैं। अध्यादेश आने के बाद से ही किसान केंद्र सरकार तक संदेश पहुंचाते रहे कि अगर ये अध्यादेश क़ानून में तब्दील हुए तो वे तबाह हो जाएंगे। लेकिन केंद्र सरकार अपनी मर्जी पर अड़ी रही और बिना किसी एक किसान संगठन, बिना किसी संसदीय समिति से बात किए क़ानून बना दिए।