क्या केंद्र सरकार विश्व हिन्दू परिषद जैसे उग्र हिन्दुत्ववादी संगठनों के दबाव में आकर बीफ़ निर्यात के क्षेत्र में मुसलमानों को निशाने पर ले रही है? क्या निर्यात किए जाने वाले बीफ़ पैकेट पर 'हलाल' नहीं लिखे जाने के फ़ैसले के पीछे यह सोच है कि इससे मुसलमान निर्यातकों को मिलने वाला फ़ायदा नहीं मिलेगा? इसके साथ ही यह सवाल भी है कि क्या इससे बीफ़ निर्यात मे भारतीय कंपनियों को नुक़सान होगा?