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क्या इस बजट में इनकम टैक्स कम या स्लैब में भारी फेरबदल होगा?

बजट की तैयारी शुरू हो गई है। यूँ सरकार के भीतर की तैयारी तो साल भर ही चलती रहती है, लेकिन पिछले सोमवार से वित्तमंत्री ने सरकार के बाहर के आर्थिक विशेषज्ञों और तमाम ऐसे तबकों के साथ बजट बैठकें शुरू कर दीं जिनपर बजट का असर पड़ता है। इन बैठकों में ये लोग बजट से अपनी उम्मीदें और मांगें सामने रखते हैं। यही नहीं, कुछ ऐसे सुझाव भी आते हैं जो उनकी समझ से देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर दिशा दे सकते हैं।

बजट का नाम सुनते ही मिडिल क्लास के मन में फिर उठने लगा है सवाल टैक्स का। हालाँकि, पिछले कई साल से ऐसी आदत सी पड़ी हुई है कि बजट का मानो इनकम टैक्स से कोई खास नाता नहीं रह गया है। अर्थशास्त्रियों, उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों को छोड़ दें तो कुछ साल पहले तक आम आदमी दो ही चीजें समझने के लिए बजट देखा या पढ़ा करता था। एक तो यह कि क्या महंगा और क्या सस्ता हुआ। और दूसरा इनकम टैक्स में क्या घटा और क्या बढ़ा। जीएसटी लागू होने के साथ ही महंगे सस्ते का खेल तो क़रीब क़रीब बंद ही हो चुका है। लेकिन अभी इनकम टैक्स के मामले में उम्मीद और आशंका के दरवाज़े खुले हुए हैं। 

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इस सरकार के आने के बाद से यानी 2019 में नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद से बजट में इनकम टैक्स के मोर्चे पर एक ही बड़ा एलान हुआ है। 2020 के बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स स्लैब में बदलाव के साथ ही एक नई टैक्स प्रणाली की शुरुआत भी की थी। इसके तहत जो लोग किसी भी तरह की टैक्स छूट नहीं मांगेंगे उनके लिए टैक्स की दरें कम कर दी गईं। यही नहीं, 30 परसेंट टैक्स की स्लैब जो बरसों से दस लाख पर अटकी पड़ी थी, उसे भी बढ़ाकर पंद्रह लाख पर कर दिया गया। लेकिन इसके साथ ही जिन चीज़ों पर इनकम टैक्स से छूट ली जा सकती थी उसकी लिस्ट में से सत्तर आइटम भी हटाए गए। इसके साथ एक बड़ा बदलाव इसी बजट में यह भी हुआ कि कंपनियों पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स हटा दिया गया। अब डिविडेंड पर टैक्स भरने की ज़िम्मेदारी वापस उन शेयरधारकों की हो गई जिनके खाते में यह डिविडेंड जाता है।

इसके बाद के दो बजट इनकम टैक्स के मोर्चे पर लगभग खामोश ही रहे, खासकर टैक्स रेट और स्लैब के मामले में। 

हालाँकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का आख़िरी बजट पेश करते हुए 2019 में कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने मध्यवर्ग को खुश करने का इंतजाम किया था। उन्होंने इनकम टैक्स में स्टैंडर्ड डिडक्शन को चालीस से बढ़ाकर पचास हज़ार किया और साथ ही यह इंतजाम किया कि पांच लाख रुपए तक कमानेवाले को टैक्स न देना पड़े। यही नहीं, उन्होंने एक खाली पड़े मकान के संभावित किराए पर लगनेवाले टैक्स को भी ख़त्म किया और बैंक खातों के इंटरेस्ट पर टीडीएस की सीमा भी दस हज़ार से बढ़ाकर चालीस हज़ार कर दी। 
इस तरह से देखें तो अब अगर इनकम टैक्स में राहत की उम्मीद शुरू होना ग़लत भी नहीं है। इस सरकार से पहले भी न जाने कितनी सरकारें चुनाव से पहले वाले बजट में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को खुश करने का इंतज़ाम करती रही हैं।

परंपरा से कहा भी जाता है कि चुनाव जीतने के बाद सरकार पहले इकोनॉमी को मज़बूत करने के लिए कठोर फ़ैसले करती है और चुनाव नज़दीक आने पर फिर लोक लुभावन बजट पेश करती है। इसीलिए चुनाव से पहले के सालों में उम्मीदें बढ़नी शुरू हो जाती हैं।

इस बार यह उम्मीद या मांग बढ़ने की और भी वजहें हैं कि सरकार को टैक्स फ्री आमदनी की सीमा बढ़ानी चाहिए और टैक्स स्लैब भी ऊपर उठाने चाहिए। सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कोरोना काल में जहाँ देश की इकोनॉमी और उद्योग-व्यापार को झटका लगा वहीं आम आदमी की जेब और परिवार के बजट को भी इससे कम चोट नहीं पहुँची थी। सरकार ने उद्योगों को, व्यापारियों को, ग़रीबों को, यहाँ तक कि ईएमआई भरनेवालों और किराए पर रहनेवालों तक को भी कुछ न कुछ राहत देने की कोशिश की। लेकिन जो लोग मध्यवर्ग में आते हैं। पूरा टैक्स चुकाते हैं। अपने मकान में रहते हैं और शायद एक और मकान से किराया पाते हैं। जिनपर किसी भी तरह का कोई कर्ज नहीं है। उन्हें तभी से लगातार लग रहा है कि सरकार ने बाकी सबको तो कुछ न कुछ दिया, लेकिन इस वर्ग को बेसहारा छोड़ दिया। पिछले दो साल तो उन्होंने सब्र कर लिया कि सरकारी खजाने की हालत पतली है ऐसे में कैसे कुछ मिलेगा। लेकिन इस साल जब महीने दर महीने रिकॉर्ड तोड़ टैक्स वसूली की ख़बरें आ रही हैं, उन्हें लगता है कि अब सरकार इस हाल में है कि उनकी भी सुध ले।

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और यह सोचनेवाले सिर्फ़ मध्यवर्ग के लोग ही नहीं हैं। भारत के सबसे तेज़तर्रार और धनी उद्योगपतियों का संगठन सीआईआई भी वित्तमंत्री से अपनी बजट चर्चा में सलाह दे आया है कि सरकार इनकम टैक्स में कटौती और स्लैब में बदलाव पर विचार करे। उसका कहना है कि बाज़ार में मांग बढ़ाने के लिए यह ज़रूरी है। उद्योग और व्यापार के विशेषज्ञ लंबे समय से मानते रहे हैं कि जब भी इनकम टैक्स में छूट या राहत दी जाती है तो यह बाज़ार में खपत बढ़ाने में मददगार होती है। विद्वानों का मानना है कि इस तरह खपत या मांग बढ़ने का असर होता है कि कारखानों की क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत पड़ने लगती है और उसकी वजह से कंपनियाँ कारोबार में नया पैसा लगाती हैं। यानी फिर बैंकों से कर्ज की मांग भी बढ़ती है और रोजगार का रास्ता भी खुलता है।

सीआईआई के अध्यक्ष संजीव बजाज ने कहा है कि सरकार को आर्थिक सुधारों के अगले कदम के तौर पर अब पर्सनल इनकम टैक्स कम करने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि इससे लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए कुछ पैसा बचेगा और बाज़ार में मांग का चक्र फिर घूमने की संभावना बढ़ेगी। 

एक नया वितंडा खड़ा हो चुका है ईडब्लूएस या आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को आरक्षण के फ़ैसले से। इसमें कहा गया है कि ईडब्लूएस आरक्षण के लिए वही लोग पात्र माने जाएँगे जिनकी आमदनी आठ लाख रुपए से कम हो।

इसके साथ लोग पूछने लगे हैं कि एक तरफ़ तो ढाई लाख से ऊपर की कमाई पर इनकम टैक्स और दूसरी तरफ़ आठ लाख से कम कमाने वाला आर्थिक रूप से कमज़ोर या ग़रीब। यह उलटबाँसी कैसे चलेगी? बात सिर्फ़ चर्चा तक ही नहीं है। मद्रास हाइकोर्ट में बाकायदा याचिका दायर कर मांग की गई है कि आठ लाख रुपए तक की आमदनी को टैक्स फ्री किया जाए। अदालत ने इसपर सरकार को नोटिस भेजे हैं और सुनवाई के लिए अगले महीने की तारीख़ दी है।

कुल मिलाकर हालात ऐसे बनते दिख रहे हैं कि वित्तमंत्री इस बार मिडिल क्लास को, खासकर नौकरीपेशा लोगों को, खुशखबरी सुना दें। लेकिन यहाँ भी एक पेंच बाकी है। और उसे देखकर विद्वानों का मानना है कि इस बजट में इनकम टैक्स कटौती की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। 

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कारण है महंगाई। महंगाई का आँकड़ा लगातार दस महीने से रिजर्व बैंक के काबू से बाहर चल रहा है। और इस बात के आसार बहुत कम हैं कि अगले दो महीने में उस मोर्चे पर कोई बड़ी फतह हो पाएगी। इसीलिए आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि वित्तमंत्री ऐसे आड़े वक़्त पर रिजर्व बैंक के रास्ते में कोई और अड़चन खड़ी नहीं करना चाहेंगी। इस वक़्त महंगाई पर काबू पाना सिर्फ रिजर्व बैंक के लिए ही नहीं भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती है और अगर इनकम टैक्स की छूट मिली तो मामला उलटा हो सकता है।

एक वजह और है जो सीधे राजनीति से जुड़ी है। यह बजट लोकसभा चुनाव के पहले का आखिरी बजट नहीं है। चुनाव से पहले 2024 में वित्तमंत्री के पास एक और मौका होगा। हो सकता है कि सरकार अपनी लोकलुभावन योजनाएं और घोषणाएं उस वक्त के लिए ही सुरक्षित रखना चाहे। इसलिए आज यह कहना मुश्किल है कि तमाम मांग और सिफारिश के बावजूद इनकम टैक्स कम होने या स्लैब में भारी फेरबदल जैसी खबरें इस बजट में आ ही जाएंगी।

(हिंदुस्तान से साभार)

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आलोक जोशी
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