प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी राजनैतिक फौज जिस तेजी से हमारी अर्थव्यवस्था को पाँच ट्रिलियन तक पहुँचने और भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावे कर रहे हैं, वह लक्ष्य लगातार दूर भागता लग रहा है। यह काम कोविड के पहले से किया जा रहा है और इसमें नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान को छुपाना और इसमें एक अपराधभाव से निपटना भी था। लेकिन कोविड ने और उस दौरान उठाए कदमों ने भी स्थिति बिगाड़ी और अब जबकि अर्थव्यवस्था के पटरी पर आ जाने का दावा किया जाने लगा है, तब फिर से जो आँकड़े सामने आ रहे हैं या जो भविष्यवाणियां की जा रही हैं, वे दुनिया में सबसे तेज विकास दर, पाँच ट्रिलियन के जीडीपी और विश्व गुरु बनने के दावों को शक के दायरे में ला रहे हैं।