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अर्थव्यवस्था में तेज़ी, उम्मीद की किरण या मृगतृष्णा? 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में आशावादिता से भरा बयान आमजन को सुकून पहुँचा सकता है। उनका कहना है कि आँकड़े बता रहे हैं कि इसमें सुधार के बहुत लक्षण हैं। पीएमआई या ग्रामीण भारत से जो आँकड़े आ रहे हैं या फिर ऑटोमोबाइल उद्योग ने जो छलांग लगाई है या फिर जीएसटी के जो आँकड़े हैं अथवा निर्यात में जो बढ़ोतरी हुई है, वे सभी इस बात की पुष्टि करते हैं कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद की किरण दिख रही है।  

दरअसल, पिछली तिमाही यानी वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में जिस तरह से जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की ऐतिहासिक गिरावट आई उसके बाद यह बदलाव खुशनुमा है। इससे लग रहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार हैं। वित्त मंत्री का यह बयान एक भरोसा दिलाता है। लेकिन साथ ही कई सवालों को जन्म भी देता है। 

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त्योहारी ख़रीदारी?

पहला सवाल यह है कि क्या बड़े त्योहारों की वज़ह से ही यह ख़रीदारी हो रही है और क्या यह लंबे समय तक बना रहने वाला है? महीनों से घरों में बंद लोग इस समय बाज़ारों में भीड़ लगाये हुए हैं और ख़रीदारी कर रहे हैं। यह भविष्य का कोई संकेत है? या फिर अगले महीने से वैसे ही निराशाजनक माहौल हो जाएगा?
हालांकि यह बात वित्त मंत्री भी कह रही हैं, लेकिन वे भी थोड़ी सतर्कता बरत रही हैं। फिर भी यह बहस का विषय हो सकता है और जैसा कि उद्योगपति राजीव बजाज ने कहा कि जब त्योहार ख़त्म हो जाएंगे तो क्या होगा। दिसंबर महीने से सन्नाटा छा जाएगा और - 3 विकास दर का आँकड़े तकलीफदेह होगा। 

आँकड़े बता रहे हैं कि खुदरा बिक्री अभी तक सामान्य नहीं हो पाई है। अभी तो वही बिक्री हो रही है जो ज़रूरी है या फिर कई महीनों से रुकी पड़ी है। बाज़ार में इस बात के संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं कि लोगों की ख़रीदारी बहुत ज़्यादा हो रही है।

पटरी पर अर्थव्यवस्था

इस समय खाने-पीने की चीजों ने भी ख़रीदारी के सेंटिमेंट पर ताला जड़ दिया है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात है कि इस समय न तो कारखाने पूरी रफ़्तार से काम कर रहे हैं और न ही जिंदगी सामान्य हो पाई है। 

जहाँ तक ऑटो सेक्टर  में बढ़ी हुई बिक्री की बात है, तो आँकड़े कुछ और भी बोलते हैं। हमने देखा कि पिछले साल कारों की बिक्री में 2018 में 2017 की तुलना में सिर्फ 9.70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जबकि 2019 में तो 11.43 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
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उस समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि नई पीढ़ी में कारों के प्रति कोई लगाव नहीं है और उसकी बजाय वे महंगे गैजेट ख़रीदना चाहते हैं। इसलिए अगर इस साल उनकी बिक्री  में बढ़ोतरी हो रही है तो वह पिछले दो साल के आँकड़ों की तुलना में ही है।

निर्यात

जहाँ तक निर्यात की बात है, तो इसमें भी अक्टूबर में 5.4 प्रतिशत गिरावट ही आई है। चीन से आयात में भारी कमी आई है, उसके बावजूद अक्टूबर में व्यापार घाटा 8.78 अरब डॉलर का रहा। इस समय अमेरिका को चमड़ा, आभूषण और जवाहरात के निर्यात को काफी धक्का पहुँचा है।
इसके सामान्य होने के लिए ज़रूरी है कि वाशिंगटन में नई सरकार भारत समर्थक हो तथा कोरोना वायरस का कारगर टीका दिसंबर-जनवरी में बाज़ार में आ जाए। ध्यान रहे कि अमेरिका निर्यात की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण देश है, क्योंकि वहाँ हमारा निर्यात कहीं ज़्यादा और  आयात कम है। इस बात से ही डोनल्ड ट्रंप नाराज़ होते रहते थे। अब अगर अमेरिका को हमारा निर्यात बढ़ता है तो हमारा व्यापार घाटा घटेगा, नहीं तो यह बढ़ेगा।  

पीएमआई

एक सुकून देने वाली बात यह है कि परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के आँकड़े बहुत अच्छे दिख रहे हैं। सितंबर के बाद अक्टूबर महीने में पीएमआई 58.9 अंक तक पहुँच गया जो एक दशक से भी ज़्यादा समय का उच्चतम है। 

मैनेजरों का कहना है कि कोविड-19 के बाद हटे प्रतिबंधों के कारण और ख़रीदारों की भारी माँग के कारण ऐसा हुआ है। एक और बात यह रही कि लागत मूल्य में बढ़ोतरी के बावजूद उत्पादों की कीमतों में तेज़ी नहीं आई, जिससे बिक्री पर बुरा असर नहीं पड़ा।

मध्य वर्ग

ऐसा माना जा रहा है कि यह ट्रेंड बना रहेगा, क्योंकि कंपनियों ने इसकी तैयारी कर रखी है।
लेकिन एक सवाल खड़ा होता है कि क्या हमारे मध्य वर्ग के पास इतना पैसा है कि वह दो साल पहले की तरह लगातार खर्च कर सके? इस समय इस वर्ग के लाखों लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं और उनके सामने जीवन-यापन का प्रश्न खड़ा है।
इस परिस्थिति ने उन लोगों को भी हतोत्साहित कर दिया है जो नौकरियों में तो हैं, लेकिन भविष्य में अनिष्ट की आशंका से हैरान-परेशान हैं। इसका असर लग्जरी गुड्स और फाइन डाइनिंग के कारोबार पर पड़ता दिख रहा है।  

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निर्मला सीतारमण का यह बयान कि मध्य वर्ग एक कैटगरी नहीं है, विश्वास करने योग्य नहीं है। सारी दुनिया की कंपनियाँ भारत के 25 करोड़ मध्य वर्ग की दीवानी हैं और सामान बेचने के लिए भारत ही आती हैं। लेकिन भारी छंटनी तथा नौकरियों के मामलों में सन्नाटा देखकर यह वर्ग कहीं दुबक सा गया है।

बेशक मध्य वर्ग त्योहारों के नाम पर ख़रीदारी कर रहा है, लेकिन यह तभी जारी रह सकता है जब जॉब मार्केट में हरियाली आए या फिर सरकार उनके लिए भी कोई राहत पैकेज लेकर आए।

इन्फ़्रास्ट्रक्चर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह कहना सही है कि इन्फ्रास्ट्रक्टर पर खर्च बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में जान आएगी। यह ऐसा जरिया है जिससे धन का प्रवाह-प्रसार होगा और यह कई हाथों में जाएगा। इसके लिए विदेशी निवेशकों को बुलाना एक उचित तथा दूरगामी परिणाम देने वाला कदम होगा।
लेकिन इसके साथ ही अगर सरकार रियल एस्टेट को मंदी से बाहर निकालने के लिए प्रयास करे तो बढ़िया रहेगा, क्योंकि यह सेक्टर कृषि के बाद सबसे ज़्यादा लोगों को रोज़गार देता है और इस समय देश के जीडीपी में इसका योगदान महज 6 प्रतिशत या उससे भी कम है। इसमें इतनी क्षमता है कि यह सहारा मिलने पर यह 13 प्रतिशत तक का योगदान दे सकता है और करोड़ से भी ज्यादा लोगों को रोज़गार दे सकता है। 

पर्यटन

लेकिन जब तक कोविड-19 का टीका बाज़ार में पूरी तरह से उपलब्ध नहीं होता, देश की अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण सेक्टर टूरिज्म में जान नहीं आ सकती। 2019 में इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में 194 अरब डॉलर यानी जीडीपी में 6.8 प्रतिशत का योगदान किया।
यह दुनिया के 10 शीर्ष ट्रैवेल-टूरिज्म वाले देशों में है और यहाँ सारी दुनिया से पर्यटक आते हैं। लेकिन इस महामारी के कारण देसी-विदेशी पर्यटक फ़िलहाल नहीं आ रहे हैं। इसे ठीक होने में कम से कम एक साल लगेगा। 

अक्टूबर के आँकड़ों को देखकर खुशी तो हो सकती है, लेकिन हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो सकते। इसे जारी रखने के लिए सरकार को कई और राहत पैकेज लाना ही होगा। अगर अर्थव्यवस्था ने रफ़्तार दिखाई है तो इसे बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है और यह बातों से नहीं धन से ही होगा।
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मधुरेंद्र सिन्हा
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