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जीएसटी सिस्टम में यह छेद क्यों है? और अभी तक कैसे है?

जीएसटी के मामले में यह तथ्य है कि भारतीय जनता पार्टी इसका विरोध कर रही थी और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसे बिना-सोचे समझे लागू कर दिया गया। ‘मंदिर’ बनने से ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद करने वाले ‘राजा का बाजा’ बजाने लगे और इससे जो नुक़सान हुआ उसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

नतीजा जो होना था, हुआ। सामने है। नहीं दिखता हो तो कुछ नहीं किया जा सकता है। 28 जुलाई 2021 के अख़बारों में ख़बर छपी, ग़ाज़ियाबाद में 21 फर्जी फर्म के माध्यम से 17.58 करोड़ की टैक्स चोरी का खुलासा, दो आरोपी गिरफ्तार। इस ख़बर के अनुसार, सेंट्रल जीएसटी गाज़ियाबाद की टीम ने 115 करोड़ रुपये के लेन-देन के मामले में 21 फर्जी फर्म के माध्यम से 17.58 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का खुलासा किया है। सेंट्रल जीएसटी कमिश्नर (ग़ाज़ियाबाद) आलोक झा ने बताया कि 23 जुलाई को शमस्टार ग्लोबल बिज़नेस सॉल्यूशन लिमिटेड के नौ जगहों पर छापेमारी की गई।

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यह कंपनी मैनेजमेंट कंसलटैंट, बिजनेस सपोर्ट सर्विसेज और अन्य तरह की सेवायें देती है। लेकिन 21 फर्जी फर्म बनाकर इसके डायरेक्टर अनिल कुमार दुबे और प्रवीण कुमार राय ने 115 करोड़ रुपये के कर लगने वाली सेवाओं पर 17.58 करोड़ का फर्जी इनपुट क्रेडिट टैक्स ले लिया। जीएसटी इंटेलिजेंस की टीम को इसके लेन-देन के बारे में पता चला। फिर इसकी जानकारी ग़ाज़ियाबाद की टीम को दी गई। ग़ाज़ियाबाद की टीम ने इसके दिल्ली ऑफिस और इंदिरापुरम के एटीएस एडवांटेज सोसायटी पर नज़र रखना शुरू किया। जब साक्ष्य मिल गए, तो छापा मारा गया।

ज़ाहिर है, यह कोई पहला मामला नहीं होगा और सारे मामले पकड़ लिए जाएँ यह कोई ज़रूरी नहीं है पर यह ज़रूर है कि सिस्टम में छेद है जिसका फ़ायदा उठाया गया है। क्या यह सरकार का काम नहीं है कि इसे दुरुस्त करे? अभी तक क्या किया गया है। क्या सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि ऐसे और मामले नहीं हुए हैं? मुझे नहीं लगता है कि चुनाव जीतने के बाद तेवर ऐसे रह गए हैं।

ऐसे सिस्टम को लागू करने का फायदा क्या है? ख़ासकर तब जब इस कारण ढेरों छोटे-मोटे कारोबार बंद हो गए या उनपर भारी मुसीबत है। जीएसटी का यह झंझट ऐसा है कि छोटे कारोबारों के लिए भी सीए की सेवाएँ लेना ज़रूरी है और सीए देख रहा है कि कमाई नहीं हो रही है तो वह अपने पैसे कैसे निकाले और वर्षों के क्लाइंट को कैसे छोड़ दे। इसलिये आशंका है कि अपनी और क्लाइंट की कमाई के फेर में कुछ सीए भी ग़लत करें और बेशक ग़लत करने वाले गिरफ्तार भी हो सकते हैं।

इससे इनकार नहीं कर सकता कि जीएसटी से किसी का भला नहीं हुआ है, सरकार का भी नहीं। पर वह चल रहा है।

और मुझे याद है, केंद्र में मोदी जी की सरकार बनने के बाद, तीन राज्यों – राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विपक्ष की सरकार बनने से पहले तक नियम ऐसे थे कि किसी को कोई राहत या छूट नहीं थी। ना कोई सुनने वाला। बाद में गुजरात चुनाव के समय थोड़ी और ढील दी गई। मुझे नहीं लगता कि इस चोरी का ढील से कोई संबंध है बल्कि यह सख्त नियमों के कारण ही है।

अगर सख्त नियमों के कारण चोरी हो ही रही है तो सभी के (नया कारोबार शुरू करने वालों और एमएसएमई पोर्टल पर पंजीकरण करने वालों के लिए भी) पंजीकरण क्यों ज़रूरी है। अभी स्थिति यह है कि आप नया कारोबार या बैंक में चालू खाता, एमएसएमई पोर्टल पर पंजीकरण जीएसटी के बिना शुरू नहीं कर सकते हैं। इस चक्कर में कम पैसे में कोई कम कारोबार वाला काम शुरू ही नहीं कर सकता है। दूसरी ओर, सख़्त नियमों के कारण कर चोरी हो ही रही है। पर सरकार किसी की सुनेगी नहीं।

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ऐसे पकड़ी गई चोरी

जीएसटी अधिकारी बताते हैं कि जब इस कंपनी के जीएसटी पोर्टल को देखा गया तो यह जो इनपुट क्रेडिट टैक्स ले रही थी, वह लोहा, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान की खरीद पर ले रही थी जबकि यह कंपनी सेवा देने का काम करती थी। जैसे किसी को लोन दिलवाना और अन्य तरह की सेवा देना। यह कंपनी 21 फर्जी फर्मों के माध्यम से टैक्स चोरी करती थी। जाँच में पता चला कि 21 फर्म वास्तविक रूप से हैं ही नहीं। केवल इनका रजिस्ट्रेशन करवाया गया था। 

सवाल उठता है कि आप बिना पंजीकरण काम नहीं करने देंगे और पंजीकरण के बाद कमाई की गारंटी न हो, खर्च बढ़ जाए तो कारोबारी क्या करे?

इनपुट क्रेडिट टैक्स

जीएसटी का यह प्रचार रहा है कि पक्के बिल से जो माल खरीदा जाता है, उस पर जो टैक्स देय होता है, वह पहले की तरह कई बार नहीं लगता है। और कच्चे माल पर चुकाया गया कर वापस हो जाता है और उसी को वापस लेने में भ्रष्टाचार तथा मिलीभगत है। जीएसटी रिटर्न भरने पर इनपुट क्रेडिट टैक्स मिलता है। इसको ऐसे समझिए कि किसी निर्माता ने अपने उत्पाद बनाने के लिये 100 रुपये का कच्चा माल खरीदा। इस पर उसने 12 फ़ीसदी का जीएसटी दिया। इसके लिए उसे 112 रुपये ख़र्च करना पड़ा। अब उत्पादक जो माल तैयार करेगा। उसकी क़ीमत है 120 रुपये, इस पर 18 फ़ीसदी जीएसटी है। इसलिए उसे इस पर अब केवल 6 फ़ीसदी ही जीएसटी देना पड़ेगा क्योंकि 12 फ़ीसदी वह पहले कच्चे माल को खरीदते समय दे चुका है। फर्जी फर्म बनाकर लोग केवल कागजों में इनपुट क्रेडिट टैक्स के माध्यम से टैक्स चोरी करने का काम करते हैं।

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यह प्रावधान अगर चोरी की गुंजाइश छोड़ता है तो इस पर पहले ही विचार होना चाहिए था। अगर नहीं हुआ तो अब तक रुक जाना चाहिए था। दोनों नहीं हुआ तो अच्छा कैसे है? अगर सब कुछ अफसरों की जाँच के भरोसे ही है तो कुछ लोगों को बिना पंजीकरण काम करने क्यों नहीं दिया जा रहा है। कम से कम बेरोज़गार तो नहीं रहेंगे, भूखे मरने या कर्ज लेकर जीने को तो मजबूर नहीं ही होंगे। चोरी करने की ज़रूरत भी शायद नहीं पड़े। मुझे लगता है कि ऐसी चोरी पकड़ने के लिए बाबुओं को लगाने से बेहतर है कि लोगों को खुलकर कमाने दिया जाए और जो कमाई पर टैक्स नहीं दे उसे पकड़ा जाए।
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संजय कुमार सिंह
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