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कंपनियों की मुनाफ़ाख़ोरी ने डुबाया यूरोप की अर्थव्यवस्था को: आईएमएफ

क्या यूरोप में आर्थिक तंगी की वजह बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और उनकी मुनाफाखोरी है? आईएमएफ़ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जो कारण बताया है वह बेहद चिंताजनक है। इसने मोटे तौर पर यह कहा है कि यूरोप में जो महंगाई बढ़ी है उसमें इन कंपनियों की मुनाफाखोरी का सीधा-सीधा हाथ है।

आईएमएफ़ ने कहा है कि पिछले दो वर्षों में यूरोप की महंगाई यानी मुद्रास्फीति में लगभग आधी वृद्धि के लिए कॉर्पोरेट मुनाफ़े का बढ़ना जिम्मेदार है। इसने कहा है कि इन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने आयातित ऊर्जा की लागत में वृद्धि की तुलना में बेचने वाली कीमतों में अधिक वृद्धि की है। अब जबकि कर्मचारी महंगाई से पार पाने के लिए वेतन बढ़ोतरी पर जोर दे रहे हैं और मुद्रास्फीति को 2025 में यूरोपीय सेंट्रल बैंक के 2 प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुँचना है तो कंपनियों को मुनाफा का एक छोटा हिस्सा ही लेना पड़ सकता है। 

आईएमएफ़ की यह रिपोर्ट तब आई है जब इसी महीने यूरोज़ोन के लिए बेहद बुरी ख़बर आई है। इस वर्ष की शुरुआत में ही यूरोज़ोन तकनीकी तौर पर आर्थिक मंदी में चला गया है। यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी के आँकड़ों से इसकी पुष्टि हुई।

यूरोज़ोन में यूरोपीय संघ के 20 सदस्य शामिल हैं, जो यूरो को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में उपयोग करते हैं। यूरोपीय संघ के 7 सदस्य (बुल्गारिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्वीडन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं। हालाँकि, भले ही कुछ देश यूरो का इस्तेमाल अपने देश में नहीं करते हैं, लेकिन माना जाता है कि यूरो में आर्थिक संकट आने से यूरोपीय यूनियन के सभी देश प्रभावित होंगे। 

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यूरोस्टेट ने 2022 की अंतिम तिमाही में 0 प्रतिशत वृद्धि और 2023 की पहली तिमाही में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान पहले लगाया था। लेकिन इन आँकड़ों को घटाकर अब दोनों अवधियों के लिए 0.1 प्रतिशत का सिकुड़न कर दिया है। इसका मतलब है कि नेगेटिव विकास दर की वजह से वहाँ की अर्थव्यवस्था इतनी सिकुड़ी है। यदि सकल घरेलू उत्पाद में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट नकारात्मक विकास दर हो यानी अर्थव्यवस्था सिकुड़े तो तकनीकी मंदी मान ली जाती है।
आईएमएफ़ ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि अक्टूबर 2022 में यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति 10.6 प्रतिशत पर पहुंच गई क्योंकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद आयात लागत बढ़ गई और कंपनियों ने लागत में इस प्रत्यक्ष वृद्धि से अधिक का भार उपभोक्ताओं पर डाला।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मई में मुद्रास्फीति घटकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन कोर मुद्रास्फीति अधिक स्थिर साबित हुई है। इससे हालिया ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दबाव बना हुआ है, भले ही यूरो क्षेत्र वर्ष की शुरुआत में मंदी में चला गया हो। नीति निर्माताओं ने जून में दरें बढ़ाकर 22 साल के उच्चतम स्तर 3.5 प्रतिशत पर पहुंचा दीं।

बता दें कि हाल ही में यूरोप और अमेरिका में आर्थिक तंगी की आ रही ख़बरों के बीच अमेरिका की तमाम बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों की छँटनी की है। इसी साल अप्रैल में ख़बर आई थी जिसमें कहा गया था कि मैकडॉनल्ड्स ने अमेरिका में अपने सभी कार्यालय फ़िलहाल अस्थायी रूप से बंद कर दिए हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने रिपोर्ट दी थी कि कंपनी ने अपने अमेरिकी कर्मचारियों को सोमवार से बुधवार तक घर से काम शुरू करने के लिए एक मेल भेजा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि मैकडॉनल्ड्स ने यह फ़ैसला इसलिए लिया ताकि वह कर्मचारियों को छँटनी के बारे में वर्चुअली ख़बर दे सके। 

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बढ़ती ब्याज दरों के कारण आर्थिक मंदी की चिंताओं की वजह से पूरे कॉर्पोरेट अमेरिका में बड़े पैमाने पर नौकरी में कटौती की गई। गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टेनली जैसे वॉल स्ट्रीट बैंकों से लेकर अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट सहित बड़ी टेक फर्मों तक ने छंटनी की है।

उससे पहले मार्क जुकरबर्ग के मेटा में भी छंटनी की ख़बर आई थी। तब इसने फिर से 10,000 कर्मचारियों को छंटनी करने का फ़ैसला किया था। तब द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कर्मचारियों को एक ईमेल में मेटा के सीईओ जुकरबर्ग ने कहा कि कंपनी आने वाले महीनों में नौकरी में कई दौर की कटौती करेगी। इसके साथ ही कुछ परियोजनाओं को कंपनी रद्द कर देगी और नयी भर्ती को कम कर देगी। रिपोर्ट में कहा गया कि 10,000 नौकरियों में कटौती के साथ-साथ, मेटा 5,000 खाली पदों को भी नहीं भरेगा।

ट्विटर ने भी बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों को बाहर निकाला है। रिपोर्ट तो यह है कि इसने 90 फ़ीसदी भारतीय कर्मचारियों को छुट्टी कर दी है और अब बस कुछ गिनती भर कर्मचारी रह गए हैं। कहा जा रहा है कि दुनिया भर में ट्विटर के क़रीब आधे कर्मचारियों की छंटनी की गई।

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क़मर वहीद नक़वी
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