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एक फॉर्मूले के लिए दाँव पर लगी खाद्य नीति

पाँच महीने पहले बैसाखी के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के श्री अन्नपूर्णा धाम ट्रस्ट के हॉस्टल का उद्घाटन किया था। दिल्ली से किए गए इस वर्चुअल उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि दुनिया इस समय खाद्यान्न संकट से गुजर रही है। मैंने इस बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति से बात की और उन्हें कहा कि डब्ल्यूटीओ इजाजत दे तो भारत कल से ही पूरी दुनिया की खाद्यान्न ज़रूरत को पूरा कर सकता है।

पूरी दुनिया का पेट भरने के इस दावे के ठीक एक महीने बाद ही सरकार ने भारत से गेंहू के निर्यात पर रोक लगा दी। किसानों को फ़सल की अधिक क़ीमत मिलने के दावे के साथ तीन कृषि कानून लाने वाली सरकार ने निर्यात पर उस समय रोक लगाई जब विश्व बाजार में उन्हें ज्यादा कीमत मिलने की संभावना दिखाई देने लगी थी। पांच महीने बाद उस फैसले को याद करने की वजह यह है कि अब सरकार ने टुकड़ा चावल के निर्यात पर भी पूरी तरह रोक लगा दी है। हालाँकि इसके पहले सरकार चावल और धान के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए उस पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगा चुकी है।

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ये दोनों ही कदम उस समय उठाए गए हैं जब एक तरफ तो मानसून की अराजकता की वजह से खरीफ की उपज छह से 20 फीसदी तक कम होने की आशंका जताई जा रही है, तो दूसरी तरफ खुदरा महंगाई की दर सात फीसदी के आँकड़े को पार कर गई है। फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया के सामने जो खाद्यान्न संकट खड़ा हुआ है उसमें कोई कमी नहीं आई है। लेकिन टुकड़ा चावल के निर्यात पर पाबंदी का कारण न तो महंगाई की दर है और न ही उपज में कमी की आशंका बल्कि कुछ और ही है।

टुकड़ा चावल का इस्तेमाल आमतौर पर पशुओं का चारा और पॉल्ट्री फीड में होता है। इसीलिए चीन जैसे देश इसे बड़े पैमाने पर आयात करते रहे हैं। भारत में टुकड़ा चावल का इस्तेमाल भोजन में भी होता है लेकिन ज्यादा इस्तेमाल चारा वगैरह तैयार करने में ही होता है। अब इसके एक नए इस्तेमाल की तैयारी चल रही है। सरकार इससे एथेनॉल बनाना चाहती है। 

केंद्र सरकार यह तय कर चुकी है कि साल 2025 तक पेट्रोल को 20 फीसदी एथेनॉल मिलाकर बेचा जाएगा। यह साफ़ हो चुका है कि इसके लिए जितने एथेनॉल की जरूरत होगी उतना उत्पादन सिर्फ चीनी मिलों से निकले शीरे से नहीं हो सकेगा। अब टुकड़ा चावल को इसके संसाधन के रूप में इस्तेमाल किए जाने की योजना है।

पेट्रोल में एथेनॉल मिलाकर विदेशी मुद्रा को बचाने का फॉर्मूला संघ परिवार पिछले कई दशकों से देता रहा है। एक जमाने में भारतीय जनसंघ के सांसद भाई महावीर इस मसले को अक्सर ही उठाते रहते थे।

देश के बहुत सारी जटिल समस्याओं के लिए संघ परिवार के पास जो सरल समाधान थे उनमें से यह भी एक फॉर्मूला था। ऐसा ही एक और फार्मूला काले धन से निपटने का था। संघ के कई थिंक टैंक यह बताया करते थे कि कैसे बड़े नोटों का चलन बंद करके काले धन को ख़त्म किया जा सकता है। इसी सोच के कारण हुए नोटबंदी और उसके असर को हम देख चुके हैं।

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अब सारा ध्यान 20 फीसदी एथेनॉल की परियोजना पर दिया जा रहा है। तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे कम से कम 20 फीसदी विदेशी मुद्रा तो बचेगी ही। इस परियोजना को आगे लागू करने में क्या जटिलताएँ आएँगी, हम यह अभी पूरी तरह नहीं जानते लेकिन फिलहाल का सच यही है कि टुकड़ा चावल के निर्यात से हासिल होने वाली विदेशी मुद्रा से भारत हाथ धो बैठा है।

ठीक यहीं पर दो दशक पहले के उस दौर को याद करना जरूरी है जब अमेरिका और पश्चिम के कुछ अन्य देशों को लगने लगा था कि दुनिया में जो उपलब्ध पेट्रोलियम है वह भविष्य की उनकी जरूरत पूरी नहीं कर पाएगा। अचानक ही सब जगह बायो डीज़ल पर जोर दिया जाने लगा था। बायो डीज़ल के हिसाब से ही तिलहन की खेती शुरू हो गई थी। नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया में खाद्य तेल का संकट पैदा हो गया था। यह संकट इतना बड़ा हो गया था कि बायो डीज़ल की कोशिशों को रोकना पड़ा। इस संकट का एक ही संदेश था- खाद्य संतुलन से कोई भी छेड़खानी महंगी पड़ सकती है। यह संदेश सभी को याद रखना होगा।

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हरजिंदर
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