अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रूस के व्यापारिक साझेदारों पर 500% टैरिफ़ लगाने की धमकी के बीच भारत का जून में रूसी तेल आयात 11 महीने के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया। यह ख़बर तब आई है जब अमेरिकी सीनेट में एक नया बिल भारत जैसे देशों के लिए चिंता का सबब बन रहा है, जो रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी कर रहे हैं। क्या भारत की यह रणनीति ट्रंप के टैरिफ़ तूफ़ान का सामना कर पाएगी या देश को महंगे तेल और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ेगा? 

इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि भारत के तेल आयात को लेकर स्थिति क्या है। भारत ने जून महीने में रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चा तेल खरीदा। यह पिछले 11 महीनों में सबसे ज़्यादा है। केपलर नाम की एक कंपनी के आंकड़ों के मुताबिक़, जून में भारत ने रूस से हर दिन 20.8 लाख बैरल तेल आयात किया। यह भारत के कुल तेल आयात का 43% हिस्सा है। यानी इस आँकड़े के हिसाब से रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश है। यह इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से भी ज़्यादा तेल दे रहा है। 
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रूस से तेल खरीद क्यों बढ़ी?

भारत ने जून में रूस से जो प्रतिदिन 20.8 लाख बैरल तेल आयात किया, वह मई की तुलना में 12% ज़्यादा है। रूस सस्ते दाम पर तेल बेच रहा है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। भारत ने इस मौक़े का फायदा उठाया और सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया। भारत को अपने तेल का 88% हिस्सा बाहर से खरीदना पड़ता है, और रूस अब उसका सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। 

रूसी तेल की हिस्सेदारी 2022 से पहले 1% से भी कम थी, लेकिन अब यह भारत के तेल आयात में एक प्रमुख हिस्सा बन गई है। जून में रूस से आयात इराक (12 लाख बैरल), सऊदी अरब (6.15 लाख बैरल) और यूएई (4.9 लाख बैरल) से भी ज़्यादा था।

रूस से आयात बढ़ने के पीछे एक और कारण मध्य पूर्व में लगातार बना रहा तनाव है। इसराइल और ईरान के बीच तनाव के कारण सऊदी अरब और इराक जैसे देशों से तेल की आपूर्ति में दिक्कत हो सकती है। इसलिए भारत ने रूस जैसे देशों से ज़्यादा तेल खरीदा।

अमेरिकी बिल से ख़तरा

अमेरिका में एक बिल पर चर्चा हो रही है, जिसे सैंक्शनिंग रूस एक्ट कहा जाता है। इसे सीनेटर लिंडसे ग्राहम और रिचर्ड ब्लूमेंथल ने पेश किया है। इस बिल में रूस से तेल, गैस या अन्य चीजें खरीदने वाले देशों पर 500% टैक्स लगाने की बात है। अगर यह बिल पास हो गया, तो भारत को रूस से सस्ता तेल खरीदना मुश्किल हो सकता है। इससे भारत को अमेरिका, नाइजीरिया या ब्राजील जैसे देशों से महंगा तेल खरीदना पड़ सकता है, जिससे पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें बढ़ सकती हैं।
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इसके अलावा भारत दवाइयाँ, कपड़े और ऑटो पार्ट्स जैसे जो सामान अमेरिका को बेचता है, उन पर भी भारी टैक्स लग सकता है। भारत और रूस का व्यापार पिछले साल 68.7 बिलियन डॉलर तक पहुँचा था और दोनों देश इसे 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक ले जाना चाहते हैं। लेकिन यह बिल भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।

भारत का जवाब

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका में कहा कि भारत ने इस बिल को लेकर अपनी चिंताओं को सीनेटर ग्राहम के सामने रखा है। उन्होंने कहा, 'हम अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और राष्ट्रीय हितों को देखते हुए तेल खरीदते हैं। हम सस्ता और अच्छा तेल लेते हैं, जो नियमों के खिलाफ नहीं है।' भारत का कहना है कि रूसी तेल पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है और वह 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा के तहत तेल खरीद रहा है।

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तेल उद्योग पर असर

रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी भारत की कंपनियाँ रूस से बहुत सारा तेल खरीद रही हैं। अगर अमेरिकी बिल पास होता है तो उन्हें महंगा तेल खरीदना पड़ सकता है, जिससे पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें बढ़ सकती हैं। जानकारों का कहना है कि सस्ता रूसी तेल भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने में मदद करता है। अगर यह बंद हुआ तो महंगाई बढ़ सकती है।

भारत की आगे की रणनीति क्या?

भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया है, लेकिन अमेरिकी बिल इस रणनीति को मुश्किल बना सकता है। भारत अब अमेरिका और नाइजीरिया जैसे अन्य देशों से तेल खरीदने की योजना बना रहा है। भारत के पास 9-10 दिनों का तेल भंडार भी है, जो किसी भी कमी को संभाल सकता है। लेकिन अगर मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा तो रूस और अन्य देशों से तेल खरीद और बढ़ सकती है। ट्रंप भले ही 500 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन अभी भी भारत के साथ व्यापार वार्ता चल रही है। अब यह सब इस वार्ता पर निर्भर करेगा।