कोरोना काल में आत्मनिर्भर हुए एक सज्जन लखनऊ के पश्चिमी (चुनाव के लिहाज से पूर्वी) मोहल्लों में साइकिल पर फेरी लगा लगाकर समोसे, नमक पारे और बालूशाही जैसी चीजें बेचते हैं। हलवाई की दुकान में नौकरी करते थे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए और उसके बाद घर पर ये चीजें बनाकर साइकिल पर बेचने का फॉर्मूला उन्हें रास आ गया। स्वाद और क्वालिटी दोनों अच्छे हैं इसलिए काम चल पड़ा है। सुबह सुबह मुलाक़ात हो गई। कुछ नहीं लूंगा यह तो मान गए मगर अचानक बहुत ज़ोर से कहा - तेल का हाल देख रहे हैं। आग लग गई है।

उद्योग जगत दोहरी परेशानी में है। जिन्होंने रूस को माल भेजा हुआ है या जिनका पैसा रूस में किसी कारोबार में लगा हुआ है उनकी चिंता तो यही है कि पैसा कैसे हासिल किया जाए। लेकिन बाक़ी सबके लिए परेशानी की वजह है इस लड़ाई का असर।
और यह तेल पेट्रोल या डीजल नहीं खाने का तेल है, जो समोसे और मिठाई बनाने में काम आता है। अगर आप अपने घर में रोजमर्रा की ज़रूरत का सामान खुद नहीं खरीदते हैं तो खरीदनेवाली से पता कीजिए कि खाने के तेल और वनस्पति का भाव कहां पहुंच चुका है।