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बजट से मिडिल क्लास नाराज़ तो बाज़ार क्यों ख़ुश है?

सरकार की मंशा बिना किसी पर फालतू बोझ डाले ज़रूरी ख़र्च करने की है यह तो साफ़ दिखता है। लेकिन इस वक़्त बाज़ार में मांग पैदा हो इसके लिए ज़रूरी था कि लोगों की जेब में पैसा आए और उसे ख़र्च करने का हौसला भी। इस बजट से यह कैसे हो पाएगा? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि महंगाई पर इसका असर क्या होगा? 
आलोक जोशी

हिम्मत की ज़रूरत थी, हिम्मत तो दिखाई गई है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस अंदाज़ में बजट की शुरुआत की उससे ही साफ़ है कि सरकार कुछ कर गुज़रने के मूड में है। किस विकट परिस्थिति में हैं हम और कितनी बड़ी चुनौती है ऐसे में बजट बनाना, यह किसी से छिपा नहीं है। कोरोना के कहर और उससे पैदा हुए दर्द का ज़िक्र किया वित्तमंत्री ने। लेकिन साथ ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वो कविता भी सुनाई जिससे अंधेरा रहते हुए ही सुबह की रौशनी देखनेवाले परिंदे का ज़िक्र होता है।

अब वक़्त है वो रौशनी दिखाने का और उस रौशनी को कोने-कोने तक पहुँचाने का। आज का सबसे बड़ा अंधेरा है कोरोना का डर और सेहत की चिंता। स्वास्थ्य सुविधाओं पर 2.23 लाख करोड़ रुपए का ख़र्च इससे मुक़ाबले के लिए एक अहम एलान है। पिछले साल से 137% ज़्यादा। सरकार का कुल ख़र्च भी बढ़ाकर चौंतीस लाख तिरासी हज़ार करोड़ रुपए पहुँचाया जा रहा है और उसमें से भी 5.54 लाख करोड़ रुपए कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी नई संपत्ति बनाने पर ख़र्च होंगे यह ख़ुशख़बरी है।

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सात नए टेक्सटाइल पार्क बनाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर फ़ाइनेंस पाइपलाइन बनाने की ख़बर भी हौसला जगाती है कि अब रोजगार बढ़ेंगे, कमाई बढ़ेगी और ऐसी ही उम्मीद अफोर्डेबल हाउसिंग को दी गई छूट से भी मिलती है। लिस्ट देखते चलेंगे तो और भी उम्मीदें जगानेवाले एलान हैं।

लेकिन क्या ये सारी उम्मीदें असलियत में बदल पाएँगी, यह बड़ा सवाल है।

लेकिन सबसे बड़ा और गंभीर सवाल इस साल का सरकारी घाटा है। फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के साढ़े नौ परसेंट पर पहुँच जाना एक अभूतपूर्व घटना है। घाटा बढ़ेगा सबको पता था, लेकिन कितना बढ़ेगा और वित्तमंत्री कितना बताएंगी यह सवाल था। अलग-अलग विशेषज्ञ अंदाजा लगा रहे थे कि घाटा सात से साढ़े सात परसेंट के बीच रह सकता है। यह भी कम नहीं था। लेकिन साढ़े नौ परसेंट का घाटा, यह शायद ही किसी ने सोचा हो।

इस घाटे की भरपाई के लिए सरकार को अभी चालू साल में ही क़रीब अस्सी हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज और लेना पड़ेगा। और यह साढ़े नौ परसेंट का आँकड़ा भी अभी अनुमान ही है। असली घाटा कितना होगा यह अगले साल के बजट तक ही पता चल पाएगा। अगले साल के लिए भी बजट में सरकारी घाटे के लिए 6.8% का लक्ष्य रखा गया है। बाज़ार के जानकार कह रहे थे कि साढ़े पाँच परसेंट के ऊपर का आँकड़ा उन्हें निराश करेगा।

फिर भी बजट आने से पहले ही शेयर बाज़ार चढ़ना शुरू हो चुका था और बजट के बाद तो दो हज़ार पाइंट से ऊपर की जोरदार छलांग। इसकी क्या वजह हो सकती है? वजह एक नहीं अनेक हैं। सबसे बड़ी वजह तो है कि सरकार एक बड़ी सेल की तैयारी कर रही है।

सरकारी कंपनियों के शेयर बेचने का काम तो होगा ही। साथ साथ सरकारी विभागों के पास खाली पड़ी ज़मीनें बेचने के लिए एक अलग कंपनी बनेगी। बिजली की लाइनें, गैस पाइपलाइनें, एयरपोर्ट, और रेलवे के डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर भी बेचकर सरकार पैसे जुटाएगी। हालाँकि विनिवेश का लक्ष्य पौने दो लाख करोड़ रुपए ही रखा गया है। लेकिन इसमें यह सब कुछ तो शामिल हो नहीं सकता। इसलिए बाज़ार अपना गणित जोड़ रहा है। अपनी शॉपिंग लिस्ट बना रहा है और इसी हिसाब से झूमने लगा है। दो सरकारी बैंक और एक सरकारी इंश्योरेंस कंपनी भी बेची जाएगी यह सुनकर भी बाजार उत्साहित है। इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर 74 परसेंट किए जाने की ख़बर भी ऐसी ही है।

nirmala sitharaman budgets welcomed by market, middle class unhappy - Satya Hindi

बाज़ार को खुश करनेवाली कुछ ख़बरें टैक्स प्रस्तावों में भी हैं। ख़ासकर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए। छोटे निवेशक को भी कहने के लिए कुछ राहत मिली है। लेकिन बाज़ार इतना ख़ुश कब तक रहेगा इस सवाल का जवाब तो वक़्त ही देगा।

और नई नौकरियाँ कैसे मिलेंगी, जिनकी नौकरी चली गई है उन्हें कोई मदद मिलेगी? ग़रीबों, किसानों और शहरी ग़रीबों या मिडल क्लास की मदद के लिए क्या होगा? इन सवालों का कोई सीधा जवाब दिख नहीं रहा है। मिडिल क्लास या इनकम टैक्स भरनेवालों के लिए शायद राहत की बात यही है कि उनपर कोई नया टैक्स या सरचार्ज नहीं लगा। इनकम टैक्स में छूट या राहत के नाम पर सिर्फ़ बुजुर्गों को प्रणाम से ही काम चलाया गया है। व्यापारियों के लिए राहत की बात हो सकती है कि अब पुरानी टैक्स फ़ाइलें खोलने का काम सिर्फ़ तीन साल तक ही हो पाएगा। यानी उसके बाद इनकम टैक्स अफ़सर उन्हें परेशान नहीं कर पाएँगे।

यह बात सही है कि यह बजट बेहद विकट परिस्थितियों में बनाया गया है और वित्तमंत्री ने कई मोर्चों पर हिम्मत भी दिखाई है। लेकिन महंगाई और बेरोज़गारी को बुरी तरह टक्कर दिए बिना बाजा़र में मांग कैसे पैदा होगी?

पिछले साल भर में शेयर बाज़ार में बेतहाशा तेज़ी के बावजूद अगर सरकार अपना विनिवेश का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई तो अगले साल यह हो जाएगा इसकी क्या गारंटी है? घाटे और ख़र्च के जो अनुमान रखे गए हैं वो भी वहीं तक सीमित रहेंगे यह कहना भी मुश्किल है।

वीडियो में देखिए, स्वास्थ्य बजट घोषणा पर विवाद क्यों?

सरकार की मंशा बिना किसी पर फालतू बोझ डाले ज़रूरी ख़र्च करने की है यह तो साफ़ दिखता है। लेकिन इस वक़्त बाज़ार में मांग पैदा हो इसके लिए ज़रूरी था कि लोगों की जेब में पैसा आए और उसे ख़र्च करने का हौसला भी। इस बजट से यह कैसे हो पाएगा?

और सबसे बड़ा सवाल यह है कि महंगाई पर इसका असर क्या होगा? बजट में जो एग्रिकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट सेस लगाया गया है वो किस चीज़ पर कितना लगेगा, कैसे लगेगा यह पढ़ने के लिए बजट प्रस्ताव और क्षेपकों का बारीकी से अध्ययन करना पड़ेगा। अभी ऐसा बहुत कुछ है जो बजट की महीन इबारतों में छिपा हुआ है। जैसे-जैसे बाहर आएगा, उसका असर भी पता चलेगा।

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