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क्या व्यापार के मुद्दे पर मोदी को घेरने में कामयाब होंगे ट्रंप?

भारत और अमेरिका में इस पर सहमति बन गई है कि दोनों देश व्यापारिक रिश्तों में आई कड़वाहटों को दूर करने और असहमति के मुद्दों को सुलझाने के लिए जल्द ही बैठक करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के बीच हुई बातचीत में यह तय हुआ कि दोनों देश एक दूसरे के हितों का ध्यान रखेंगे। जापानी शहर ओसाका में जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दोनों नेताओं की बेहद अहम बैठक में यह साफ़ हुआ कि व्यापारिक रिश्तोें में आई खटास को दूर करने पर दोनों देश गंभीर है और जल्द से जल्द मामले को सुलटाना चाहते हैं। 
इस बैठक में ट्रंप और मोदी ने व्यापारिक रिश्तों, रक्षा मसलों और 5जी पर बातचीत की। बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, 'हम दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त बन गए हैं, भारत और अमेरिका एक दूसरे के इतने क़रीब पहले कभी नहीं थे। हम सुरक्षा समेत तमाम दूसरे मुद्दों पर बातचीत करेंगे और सहयोग करेंगे। आज हम व्यापारिक रिश्तों पर बातचीत करेंगे।' 
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ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को चुनाव में उनकी जीत पर बधाई दी। यह उनकी पहली मुलाक़ात थी। चुनाव जीतने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने फ़ोन कर मोदी को बधाई दी थी। इस मुलाक़ात में उन्होंने प्रधानमंत्री की जम कर तारीफ की। इसे अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार समझा जाता है। 

यह महान चुनाव था और उसमें आपकी बहुत बड़ी जीत हुई है। आप इसके हक़दार हैं। आपको और आपकी क़ाबिलियत की तारीफ़ की जानी चाहिए। आप सबको साथ लेकर चलने में सफल रहे हैं।


डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

इस बैठक के पहले अमेरिका ने यह साफ़ कर दिया था कि दोनों देशों के बीच दोतरफा व्यापार सम्बन्ध पहले की तरह नहीं रह सकते और इस बार भारत को पहल करनी होगी और रियायत देनी होगी। इसे गुरुवार को आए ट्रंप के बयान से समझा जा सकता है।

एस-400 पर दबाव

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस मुलाक़ात का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि दोनों देशो के बीच रिश्तों में आई खटास दूर हो गई या किसी मुद्दे पर कोई सहमति बन गई है। इस बैठक का महत्व यह है कि शीर्ष स्तर के नेताओं ने मतभेदों को दूर करने पर ज़ोर दिया है। अब व्यवहारिक बातचीत जल्द ही शुरू हो जाएगी। ट्रंप ने सुरक्षा के मुद्दे पर बैठक करने की बात कह कर यह संकेत दे ही दिया है कि वह सुरक्षा के मसले पर अड़े हुए हैं। 
दोनों देशों के बीच एस-400 एअर डिफेन्स सिस्टम को लेकर गहरे मतभेद हैं। भारत यह मिसाइल प्रणाली रूस से खरीदने जा रहा है और दोनों देशों के बीच इस पर क़रार तक हो चुका है। लेकिन अमेरिका इसके ख़िलाफ़ है। वह इसके बदले अपनी मिसाइल देेने को तैयार है।

5जी का पेच

इसी तरह, जानकारों का कहना है कि 5जी के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच के मतभेद बेहद गहरे हैं और वाशिंगटन भारत पर ज़बरदस्त दबाव डालने की नीति पर चल रहा है। दरअसल, इस मतभेद के केंद्र में चीन है। भारत चीनी 5जी प्रणाली के पक्ष में है और वह ह्वाबे को अपने यहाँ काम करने की अनुमति देना चाहता है। ह्वाबे सस्ता है। अमेरिका चाहता है कि नई दिल्ली ह्वाबे को अपने यहाँ नहीं घुसने दे और उसके बदले अमेरिकी कंपनी को तरजीह दे। दिक्क़त यह है कि ह्वाबे के आने से भारत की सुरक्षा प्रणाली में सेंध लगाया जा सकता है और उसकी सेना की गोपनीयता भंग हो सकती है। इसके जबाव मे ंचीन का कहना है कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि ह्वाबे ख़ुद को भारतीय सुरक्षा से बिल्कुल दूर रखे और किसी तरह की कोई जानकारी हासिल हो तो उसे वहीं नष्ट कर दे, वह चीनी सेना या सरकार को भी इसकी भनक न लगने दे। लेकिन भारत में कुछ लोगों का तर्क है कि इस आश्वासन पर भरोसा करना मुश्किल है। 

आयात का मसला

दोनों देशों के बीच आयात शुल्क का मामला तो है ही, जिसे दूर करने में काफ़ी माथापच्ची करनी होगी। दोनों ही देशों ने अपने-अपने तेवर कड़े कर रखे हैं। इसे इससे समझा जा सकता है कि एक दिन पहले यानी गुरुवार को ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने ट्वीट कर अपने अड़ियल रूख का संकेत दे दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत को अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क कम करना ही होगा। 

भारत ने पहले से ही अमेरिकी उत्पादों पर काफ़ी ज़्यादा टैक्स लगा रखा है, उसने हाल फिलहाल इसे और बढ़ा दिया है। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते। इसे हर हालत में वापस लेना ही होगा।


डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

भारत का रुख कड़ा

ट्रंप की प्रतिक्रिया के पीछे भारत का वह फ़ैसला है, जिसके तहत 28 अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया था। यह फैसला बीते कुछ दिन पहले ही लिया गया। इसके पीछे अमेरिकी प्रशासन का कदम है। वाशिंगटन ने भारत को जीपीएस से बाहर कर दिया। भारत के विकासशील अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिका ने इसे जीपीएस की सूची में रखा था। भारत के उत्पादों पर बहुत ही कम कर लगता था। 
लेकिन भारत किसी तरह की रियायत देने के मूड में नहीं है। प्रतिनिधिमंडल में ओसाका गए एक भारतीय अधिकारी ने मोदी-ट्रंप की बैठक के थोड़ी देर पहले ही इसका संकेत दे दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिका पर जो आयात शुल्क लगाया है, वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल ही है, उससे ज़्यादा नहीं है।
इससे यह साफ़ है कि भारत इस मुद्दे पर तुरन्त कोई समझौता नहीं करने वाला, यदि उसने कोई रियायत दी तो उसके बदले वाशिंगटन से भी उसी तरह की रियायत की माँग करेगा। 

इस हाथ दे, उस हाथ ले

अमेरिका का कहना है कि अब वह किसी भी देश के साथ बराबरी के आधार पर ही व्यापार सम्बन्ध रखेगा। वह किसी देश को रियायत तब ही देगा जब उसे उस देश से भी रियायत मिलेगी। इसके तहत वाशिंगटन चाहता है कि भारत उसे अपने यहाँ कम आयात शुल्क पर सामान बेचने दे, तो वह भी भारत को जीपीएस की सुविधा देगा। इसी के तहत ट्रंप प्रशासन ने भारत को जीपीएस से बाहर कर दिया। भारत ने इसके जवाब में 28 अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया। 
भारत-अमेरिकी रिश्तों में गर्माहट पिछले दस साल में बढ़ी है। इसकी शुरुआत मनमोहन सिंह सरकार के समय ही हो गई थी जब दोनों देशों के बीच परमाणु संधि हुई थी। इसके बाद व्यापारिक रिश्तों में भी सक्रियता बढ़ी और अमेरिकी बाज़ार में भारत की पहुँच बढ़ी।

स्वार्थों का टकराव

नरेंद्र मोदी सरकार के आते-आते दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों में स्वार्थों का टकराव शुरू हो गया था। अमेरिका यह चाहता है कि भारत अपना वित्तीय बाज़ार खोले, उसे ई-कॉमर्स में छूट दे और अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों और रीटेल कंपनियों को रियायत दे। अमेरिका वॉलमार्ट जैसी कंपनियों के लिए भारत का बाज़ार खुलवाना चाहता है। भारत ऐसा नहीं कर पा रहा है। 

भारत की प्रथामिकता में चीन अमेरिका से ऊपर है। चीन से उसके व्यापारिक रिश्ते पहले से काफ़ी बेहतर हुए हैं। इसकी कई वजहें हैं। एक तो चीनी उत्पाद अमेरिकी उत्पादों की तुलना में सस्ते हैं, दूसरे टेलीकॉम, स्टील और बिजली जैसे क्षेत्रों में अमेरिका से बहुत आगे चीन है, अमेरिकी कंपनियाँ चीनी कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकतीं।

चीन के पास उसकी खपत से बहुत अधिक मात्रा में अतिरिक्त उत्पाद हैं, जिन्हें वह सस्ते में बेचने को तैयार है। अमेरिका को यह नागवार गुजरता है। वाशिंगटन यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है कि भारत रियायत उससे ले और चीन को तरजीह दे, जबकि चीन और अमेरिका में घोषित तौर पर व्यापार युद्ध छिड़ा हुआ है। दोनों ने एक-दूसरे पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है, जिससे दोनों को नुक़सान होना तय है। 

दोनों नेताओं के बीच पहले दौर की बातचीत हो गई है। लेकिन सवाल यह है कि अब वहीं होने वाली बैठकों में क्या किसी बिन्दु पर सहमति बन पाएगी। यह सवाल अहम इसलिए है कि दोनों ही एक किस्म का उग्र राष्ट्रवाद अपने-अपने देश में चला रहे हैं। दोनों ही अपने लोगों को यह समझाना चाहते हैं कि उनके लिए देश सबसे ऊपर है और वे इस पर कोई समझौता नहीं कर सकते। अमेरिका में अगले साल ही राष्ट्रपति चुनाव की प्राइमरी शुरु हो जाएगी। ऐसे में ट्रंप के लिए यह ज़रूरी है कि वह सख़्त रवैया अपनाएँ। मोदी से किसी रियायत की उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती कि उन्होंने राष्ट्रवाद को जिस ऊंचाई पर पहुँचा दिया है, उससे तुरन्त नीचे उतरना मुश्किल है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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