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विश्व बैंक ने भारत का आर्थिक विकास अनुमान घटाकर 7.5% किया

बढ़ती महंगाई ने भारत के आर्थिक विकास के पहिये पर ब्रेक लगाना शुरू कर दिया है। यह हाल में आए भारत सरकार के जीडीपी के आँकड़ों से भी पता चलता है और अब मौजूदा वित्त वर्ष के लिए विश्व बैंक के आर्थिक विकास के अनुमान से भी।

विश्व बैंक ने मंगलवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया है। यह दूसरी बार है जब विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद के विकास के अनुमान को संशोधित किया है। अप्रैल में इसने पूर्वानुमान को 8.7 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया था और अब यह 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। कहा जा रहा है कि यह पूर्वानुमान बढ़ती महंगाई, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट और भू-राजनीतिक तनाव से आर्थिक गतिविधियों के सुधार पर असर पड़ने की वजह से है। समझा जा रहा था कि कोरोना महामारी से उबर रही अर्थव्यवस्था तेज़ रफ़्तार पकड़ेगी, लेकिन बेकाबू होती महंगाई इस उम्मीद पर पानी फेरती नज़र आ रही है। 

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हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर तीसरी तिमाही से कम हो गयी है। सरकार ने कहा है कि बीते वित्त वर्ष में जीडीपी 8.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि जनवरी-मार्च तिमाही यानी चौथी तिमाही के लिए जीडीपी दर 4.1 प्रतिशत रही। चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर कम होती हुई दिखती है क्योंकि इससे पहले वाली यानी दिसंबर 2021 में समाप्त हुई तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5.4% रही थी। दूसरी तिमाही में यह 8.5% और पहली तिमाही में 20.3% रही थी।

चौथी तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि और धीमी होने के पीछे मुख्य वजह जनवरी में ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर लगाए गए प्रतिबंध, वैश्विक आपूर्ति की कमी और ऊँच लागत को बताया गया। 

जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट तब आती देखी जा रही है जब एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत ने कोरोना महामारी के बाद आई आर्थिक मंदी से उबरना शुरू ही किया था। जनवरी में ओमिक्रॉन के मामलों में वृद्धि हुई तो एक बार फिर से कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए और इस वजह से आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं। लेकिन ओमिक्रॉन का ख़तरा टला तो फ़रवरी महीने में एक अंतरराष्ट्रीय संकट ने आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर दिया।

फ़रवरी महीने में ही यूक्रेन में युद्ध ने इसके संकट को और बढ़ा दिया। इससे सामानों की क़ीमतें बढ़ गईं और आपूर्ति में और कमी आई। इन मुश्किलों के बीच ही अब महंगाई ने असर दिखाना शुरू कर दिया है।

खुदरा महंगाई 8 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है तो थोक महंगाई भी क़रीब तीन दशक में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गयी है। अप्रैल में थोक महंगाई 15.08% हो गई है। 

थोक महंगाई सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति अब लगातार तेरहवें महीने दोहरे अंकों में रही है। वास्तव में थोक मूल्य मुद्रास्फीति एक साल में दोगुनी हो गई है। मार्च 2021 में यह सिर्फ़ 7.89 प्रतिशत थी। पिछले हफ्ते जारी आँकड़ों के मुताबिक, खुदरा महंगाई भी अप्रैल में 8 साल के उच्च स्तर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई है। 

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यह लगातार चौथा महीना है जब महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा से ऊपर है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई की दर लगातार चौथे महीने ख़तरे के निशान के पार है और लगातार बढ़ रही है।

बढ़ती महंगाई ने सरकार की परेशानी भी बढ़ा दी है। इसीलिए रिजर्व बैंक ने हाल ही में अचानक रेपो दर बढ़ाने का फ़ैसला कर लिया। आम तौर पर रेपो रेट बढ़ाने का मतलब होता है कि बैंकों को रिजर्व बैंक अब कर्ज ज़्यादा ब्याज पर देगा। यानी इसका एक मतलब यह भी होता है कि अर्थव्यवस्था में पैसे की कमी की जाए और इससे लोग ख़र्च कम करना शुरू करेंगे और महंगाई काबू में आएगी। आरबीआई के जून तक रेपो दर को 50 आधार अंक बढ़ाकर 4.9% करने की संभावना है।

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इसी बीच अब विश्व बैंक का अनुमान आया है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक ने कहा है कि भारत में वित्त वर्ष 2022/23 में विकास दर 7.5 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है। इसने कहा है कि बढ़ती मुद्रास्फीति, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, भू-राजनीतिक तनाव और महामारी से सेवाओं की खपत सुचारू होने में परेशानी की वजह से अनुमान को घटाया गया है।

बैंक ने यह भी कहा है, '2023-24 में 7.1 प्रतिशत तक धीमी गति से विकास होने की उम्मीद है।'

विश्व बैंक के आकलन से पहले वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को घटा दिया था। पिछले महीने मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने उच्च मुद्रास्फीति का हवाला देते हुए 2022 के लिए जीडीपी अनुमान को 9.1 प्रतिशत से घटाकर 8.8 प्रतिशत कर दिया था। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भी 2022-23 के लिए भारत के विकास अनुमान को 7.8 प्रतिशत से घटाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया था। इसमें भी बढ़ती महंगाई और रूस-यूक्रेन संघर्ष को कारण बताया गया है।

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क़मर वहीद नक़वी
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