क्या दुनिया की अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर से गुज़र रही है? कम से कम विश्व बैंक ने तो ऐसी ही चेतावनी दी है। विश्व बैंक ने अपनी ताजा 'ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स' रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2025 में धीमी वृद्धि के संकेत दिख रहे हैं। वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर को जनवरी में अनुमानित 2.7% से घटाकर अब 2.3% कर दिया गया है। यह 2008 की मंदी के बाद सबसे कम वृद्धि दर है। दशक की वृद्धि दर के मामले में इससे भी बड़े ख़तरनाक हालात के संकेत मिले हैं।

रिपोर्ट है कि वैश्विक जीडीपी वृद्धि 2020 के दशक में 2027 तक औसतन केवल 2.5% रहने की संभावना है। यह 1960 के दशक के बाद से किसी भी दशक की सबसे धीमी गति है। तो सवाल है कि ऐसी बदतर स्थिति किन वजहों से हो रही है? क्या ऐसी धीमी वृद्धि का एक प्रमुख कारण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ नीतियाँ व व्यापार नीतियाँ हैं? क्या ऐसे वैश्विक हालात का असर भारत पर नहीं पड़ेगा?
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भारत पर इसके असर को समझने से पहले यह जान लें कि आख़िर विश्व बैंक ने क्या चेतावनी दी है और अर्थव्यवस्था की हालत कैसी रहने वाली है। विश्व बैंक ने बताया कि क़रीब 70% अर्थव्यवस्थाओं के लिए विकास अनुमान को कम किया गया है, जिसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल हैं।

विश्व बैंक ने कहा है कि बढ़ते व्यापार तनाव और नीतिगत अनिश्चितता के कारण इस साल वैश्विक विकास की गति 2008 के बाद से सबसे धीमी होने की संभावना है। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमित गिल ने अपने सहकर्मी का एक ब्लॉग पोस्ट साझा किया है जिसमें लिखा है, 'केवल इस साल हमारे अनुमान बताते हैं कि इस उथल-पुथल से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में क़रीब आधा प्रतिशत अंक की कटौती होगी, जो साल की शुरुआत में अपेक्षित थी और यह 2.3% तक कम हो जाएगी।' इसमें कहा गया है, 'यह पिछले 17 सालों में सबसे कमजोर प्रदर्शन है। वैश्विक जीडीपी वृद्धि 2020 के दशक में 2027 तक औसतन केवल 2.5% रहने की संभावना है। यह 1960 के दशक के बाद से किसी भी दशक की सबसे धीमी गति है।'
यह रिपोर्ट तब आई है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार और टैरिफ़ नीतियों की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल का दौर है। दरअसल, ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत लागू किए गए टैरिफ़ और व्यापार प्रतिबंध वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने चीन, कनाडा और मैक्सिको सहित कई देशों पर भारी आयात शुल्क लगाए हैं। 

विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि अमेरिकी टैरिफ़ के कारण चीन की विकास दर 2025 में 4.5% तक गिर सकती है, जो पहले के अनुमानों से कम है।

ट्रंप की नीतियों ने वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित किया है। आयात शुल्क बढ़ने से सामान की क़ीमतें बढ़ रही हैं, जिससे वैश्विक मांग में कमी आ रही है। यह उन देशों को ज़्यादा प्रभावित कर रहा है जो निर्यात पर निर्भर हैं।

ट्रंप की नीतियाँ अक्सर अप्रत्याशित रही हैं। इस कारण निवेशक और कंपनियां निवेश करने में हिचक रही हैं। यह अनिश्चितता वैश्विक निवेश को कम कर रही है। इस वजह से आर्थिक विकास और धीमा हो रहा है।

विश्व बैंक ने कहा है कि ट्रंप की टैरिफ़ नीतियाँ अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेंगी, जहां विकास दर 2025 में आधे से कम होकर 1.2% तक रहने का अनुमान है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाक़ी अर्थव्यवस्था इससे जुड़ी हुई हैं।
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भारत की अर्थव्यवस्था पर असर

विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.7% से घटाकर 6.3% कर दिया है। यह कमी मुख्य रूप से कमजोर निर्यात और निवेश में कमी के कारण है। इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा और रसायन जैसे क्षेत्रों में भारत के सामान का निर्यात अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक मांग में कमी से प्रभावित हो सकते हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। यदि अमेरिका में आयात शुल्क बढ़ता है तो भारतीय उत्पादों की मांग कम हो सकती है, जिससे निर्यात और कम होगा।

हालाँकि, डिजिटल और आईटी वाले सेवा क्षेत्र में निर्यात मजबूत है। वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में सेवा निर्यात में 11.6% की वृद्धि हुई। यह भारत के लिए एक सकारात्मक पहलू है।

निवेश पर असर

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ़डीआई 2024-25 में 96.5% घटकर 0.4 बिलियन डॉलर रह गया, जो पिछले साल 10.1 बिलियन डॉलर था। वैश्विक नीतिगत अनिश्चितता और ट्रंप की नीतियों ने निवेशकों का भरोसा कम किया है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है। ट्रंप की नीतियाँ अमेरिकी कंपनियों को अमेरिका में ही निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, जिससे भारत जैसे देशों में निवेश कम हो सकता है।

ट्रंप की नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार में कमी से भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है। अगर निर्यात कम होता है तो भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ सकता है, जो वित्त वर्ष 2026-27 में जीडीपी के 1-1.6% के बीच रहने का अनुमान है। हालाँकि, मजबूत सेवा क्षेत्र में निर्यात और प्रवासियों द्वारा भेजा गया पैसा इस घाटे को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
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इसमें एक सकारात्मक पहलू भी है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। वित्त वर्ष 2027 में विकास दर 6.5% और 2028 में 6.7% तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था और सेवा क्षेत्र की मजबूती इसे वैश्विक मंदी के प्रभाव से कुछ हद तक बचा सकती है।

सरकार की आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं घरेलू उत्पादन और निवेश को बढ़ावा दे सकती हैं, जो वैश्विक व्यापार की अनिश्चितताओं को कम करने में मदद करेगा।

आर्थिक जानकारों का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ़ नीतियाँ अल्पकालिक रूप से भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन लंबे समय में भारत नए व्यापारिक अवसर तलाश सकता है। भारत को यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे वैकल्पिक निर्यात बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार को बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना चाहिए।

विश्व बैंक की रिपोर्ट और ट्रंप की आर्थिक नीतियाँ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी हैं। ट्रंप की टैरिफ़ नीतियों ने वैश्विक व्यापार और निवेश को प्रभावित किया है, जिसका असर भारत जैसे निर्यात-निर्भर देशों पर भी पड़ रहा है।