श्रीनगर की गुपकार रोड से दिल्ली के लोक कल्याण मार्ग तक के सफ़र को मंज़िल तक पहुंचने में 22 महीने का वक्त लग गया, लेकिन यदि अब भी दिल्ली दरबार के दरवाज़े कश्मीर के लोगों की आवाज़ सुनने के लिए खुले हैं तो कह सकते हैं कि देर आयद दुरस्त आयद। जम्हूरियत में आगे बढ़ने और मंज़िल को हासिल करने का एक ही रास्ता है जनता के नुमाइंदों से बातचीत और उनके मन की बात सुनने की कोशिश।
केंद्र सरकार और कश्मीरी नेताओं के रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघलेगी?

इस पहली बैठक में ही सब कुछ तय हो जाएगा, इसकी उम्मीद तो नहीं की जानी चाहिए लेकिन यह बैठक अगली बातचीत के दरवाजे खोलेगी तो फिर जम्मू-कश्मीर की हवा में केसर सी महक जाग उठेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आज कश्मीरी नेताओं के साथ होने वाली बैठक जम्मू-कश्मीर के लिए अरसे से बंद दरवाजों को खोलने में मदद कर सकती है।