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प्रतीकात्मक तसवीर।फ़ोटो साभार: फ़ेसबुक/कश्मीर

5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर और कश्मीर के लोगों की विकट स्थिति है

पिछले एक वर्ष के दौरान कश्मीरी लोगों के साथ होने वाले विभिन्न कष्टों के मद्देनज़र, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि कश्मीर से राज्य का दर्जा लेकर और उसका विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करके, मोदी सरकार ने न केवल इसके इतिहास और भूगोल को बदल दिया है बल्कि यहाँ की आबादी के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी बदतर कर दिया है।
हारून रेशी

श्रीनगर की प्रसिद्ध डल झील के पानी पर 700 से अधिक हाउसबोट खड़े हैं। उनमें मुहम्मद यूसुफ़ चापरी के दो हाउसबोट शामिल हैं। करोड़ों रुपये के इन हाउसबोटों के रखरखाव पर चापरी को महीने में हज़ारों रुपये ख़र्च करने पड़ते हैं, लेकिन पिछले एक साल से कोई भी पर्यटक इन हाउसबोटों में नहीं रुका है। पिछले साल 2 अगस्त को दोनों हाउसबोट में पर्यटक ठहरे थे, जब राज्यपाल प्रशासन ने कश्मीर में पर्यटकों, अमरनाथ यात्रियों और छात्रों को तुरंत घाटी छोड़ने के लिए एक परिपत्र जारी किया। इस चौंकाने वाले आधिकारिक परिपत्र में, ग़ैर-कश्मीरियों को घाटी को छोड़ने के निर्देश का कोई कारण नहीं बताया गया। बाद में पुलिस अधिकारियों ने कहा कि घाटी में एक बड़े आतंकवादी हमले की ख़बरें हैं और यह भी है कि आतंकवादी अमरनाथ यात्रियों को भी निशाना बनाने वाले हैं। किसी को वास्तव में समझ नहीं आया कि क्या होने वाला है। अगले 24 घंटों तक सभी पर्यटक कश्मीर छोड़ चुके थे।

4 अगस्त की रात, जब लोग रात में घाटी में सोए, तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि अगले दिन का सूर्य उनके जीवन में दुख और पीड़ा की लंबी यात्रा की शुरुआत करेगा। 5 अगस्त को संसद में एक विधेयक पारित करके, संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करते हुए, न केवल कश्मीर को उसके विशेष संवैधानिक दर्जे से वंचित किया गया, बल्कि इसके ‘राज्य के दर्जे’ को समाप्त कर दिया गया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था।

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इसी समय, पूरी घाटी और जम्मू के कुछ हिस्सों में सबसे कठिन और लंबा कर्फ्यू लगाया गया था। दूरसंचार और इंटरनेट सेवा काट दी गई। हज़ारों नागरिकों और राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था और घाटी को वास्तव में एक सैन्य घेराबंदी में ले लिया गया था। यह स्थिति दिनों या हफ्तों तक नहीं बल्कि महीनों तक बनी रही। सात महीने बाद, जब सरकार ने लोगों के आने जाने पर प्रतिबंध उठाना शुरू किया, कुछ हफ्ते बाद, कोरोना वायरस ने कहर बरपाना शुरू कर दिया। दूसरे शब्दों में, कश्मीरी लोग पिछले एक साल से तालाबंदी और अन्य प्रतिबंधों के अधीन हैं। 

इस एक वर्ष की अवधि के दौरान, कश्मीरी लोगों का दैनिक जीवन बाधित होकर रह गया। वे आर्थिक रूप से कंगाल हो गए। उनके बच्चों का शैक्षिक कॅरियर दाँव पर लग गया। निजी कंपनियों में काम करने वाले लड़के-लड़कियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हर कोई, युवा और बूढ़े, पुरुष या महिला, इन विनाशकारी परिस्थितियों के कारण गंभीर मनोवैज्ञानिक संकट से पीड़ित होने लगे। गिरफ्तार हज़ारों लोगों के परिवार सख़्त तनाव में थे। यह प्रक्रिया आज भी जारी है। कोरोना लॉकडाउन ने रही सही कसर पूरी कर दी।

घाटी में इस ख़राब परिस्थितियों के उदाहरण हर गली और हर मोहल्ले में देखे जा सकते हैं। मुहम्मद यूसुफ़ चापरी कहते हैं, ‘मेरे दोनों हाउसबोट पिछले एक साल से खाली हैं और मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा हूँ।’

हाउसबोट ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल हमीद वांगनो का कहना है कि ‘डल और नागिन झीलों में खड़ी सैकड़ों हाउसबोट के मालिक एक साल से पर्यटकों की राह देख रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस अवधि में एक पैसा भी नहीं कमाया। उन्हें अपने हाउसबोट के रखरखाव पर हर महीने हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।’

उन्होंने कहा कि डल झील में मेरे अपने दो हाउसबोट हैं और पिछले एक साल में मैंने उनकी सुरक्षा, सफाई और मरम्मत पर 300,000 रुपये खर्च किए हैं। उनका कहना है "गत वर्ष 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के बाद सरकार द्वारा लगाई गई तालाबंदी से हाउसबोट इंडस्ट्री को करोड़ों रुपए का नुक़सान हुआ और  हमने अगस्त-से दिसंबर तक पाँच महीने के घाटे का ब्योरा सरकार को प्रदान किया। लेकिन अभी तक हमें कोई पूछने वाला नहीं है।’

सब्जियाँ बेचने को मजबूर

डल और नागिन झीलों में तीन हज़ार शिकारे वाले भी काम कर रहे थे। वांगनो का कहना है कि इन शिकारे वालों में ज़्यादातर लोग अब अपने परिवार का पेट पलने के लिए अन्य छोटे काम करते हैं। उनमें से ज़्यादातर अब सड़कों पर सब्जियाँ बेचते नज़र आते हैं। ‘सत्य हिंदी’ से बात करते हुए, चापरी ने यहाँ तक कहा कि पिछले एक साल में कुछ शिकारे वाले अपने परिवारों को खिलाने के लिए गहने और घरेलू सामान भी बेच चुके हैं।

उल्लेखनीय है घाटी की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन उद्योग को रीढ़ की हड्डी माना जाता है। लाखों कश्मीरी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र से जुड़े हैं। श्रीनगर और घाटी के अन्य पर्यटन स्थलों में सैकड़ों होटल, हट, गेस्ट हाउस और रेस्तराँ के मालिक और उनके माध्यम से जीविकोपार्जन करने वाले अन्य लोग बेरोज़गार बैठे हैं। वर्तमान में, घाटी में पर्यटक सीजन के फिर से शुरू होने के संकेत दूर तक नहीं हैं।

परिवहन उद्योग की हालत

यही हाल कश्मीर के बाक़ी व्यापार क्षेत्रों और परिवहन उद्योग का है। अधिकांश ट्रांसपोर्टरों ने पिछले साल 4 अगस्त को ही घाटी की सड़कों पर अपने वाहन चलाए थे। तब से, एक ही स्थान पर बड़ी बसें, सूमो कार, टैक्सियाँ, लोड वाहक और ऑटो रिक्शा सहित लाखों यात्री वाहन जंग खा रहे हैं। और उनके मालिकान के लिए पेट भरना भी मुश्किल है। श्रीनगर के एक उपनगर में रहने वाले फारूक अहमद डार का उदाहरण लें। 

डार एक यात्री बस के मालिक हैं, जिसे उन्होंने आठ साल पहले अपने निवेश पर और बैंक ऋण पर खरीदा था। यह उनकी आय का एकमात्र स्रोत था, और उससे अपने परिवार का पेट पालते थे। बस के साथ काम करने वाले इसके कंडक्टर मुहम्मद सुल्तान का काम भी इससे जुड़ा हुआ था। डार कहते हैं,

मेरी गाड़ी पिछले एक साल से खड़ी है और नष्ट हो रही है, इस एक साल में मैंने एक पैसा भी नहीं कमाया। मेरी गाड़ी पर बैंक ऋण का बोझ बढ़ रहा है। लगातार बेरोज़गारी और क़र्ज़ ने मेरी कमर तोड़ दी है।


फारूक अहमद डार, एक बस का मालिक

घाटी में बागवानी उद्योग एक और सबसे बड़ा उद्योग है। पिछले 5 अगस्त से लगे कर्फ्यू ने लाखों कनाल फलों को नष्ट कर दिया। लॉकडाउन और कर्फ्यू के कारण, इन फलों को समय पर दिल्ली और पंजाब के बाज़ारों में पहुँचाना असंभव था।

बच्चों की शिक्षा ठप

नई दिल्ली के फ़ैसले के साथ, घाटी के सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय महीनों के लिए बंद कर दिए गए थे, और जब सरकार ने सात महीने बाद फिर से खोलने की घोषणा की, तो माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने से बचने लगे क्योंकि अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने के बाद पूरी घाटी में पैदा हुए आतंक के वातावरण का प्रभाव अभी तक ख़त्म नहीं हुआ। इसके साथ, सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हुईं और जब स्कूल के फिर से खुलने का समय आया, तो कोरोना महामारी फैलने लगी।

दूसरे शब्दों में, कश्मीर पूरे देश में एकमात्र स्थान है जहाँ शैक्षणिक गतिविधियों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है और कश्मीरी छात्रों का भविष्य दाँव पर है।

चूँकि सरकार ने इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी थी और यह लगातार सात महीने बंद रही और जब बहाल हुई तो भी मात्र 2जी की गति पर। दूसरे शब्दों में, कश्मीर पूरे देश में एकमात्र स्थान है जहाँ छात्रों को ऑनलाइन अध्ययन करने के पर्याप्त अवसरों से भी वंचित रखा गया है।

फेहमीदा अख्तर श्रीनगर के एक निजी स्कूल की प्रिंसिपल हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं न केवल एक शिक्षक हूँ, बल्कि दो बच्चों की माँ भी हूँ। न केवल मेरे छात्र बल्कि मेरे अपने बच्चे भी अब एक साल से स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। मैं अपने बच्चों को घर पर पढ़ाती हूँ और अपने छात्रों के माता-पिता से अपने बच्चों को घर पर पढ़ाने का आग्रह करती हूँ लेकिन मैं जानती हूँ कि बच्चों के प्रशिक्षण और अनुशासन के लिए स्कूलों का अपना महत्व है। दुर्भाग्य से, हमारे बच्चे स्कूल से बाहर हैं और हमें नहीं पता कि हमें स्कूल के माहौल से कब तक दूर रहना होगा।’

प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष जी एन वार ने इस विषय पर ‘सत्य हिंदी’ से बात करते हुए कहा, 

घाटी में कक्षा 1 से कक्षा 12वीं तक के छात्रों की संख्या 25 लाख है। 4जी इंटरनेट सेवा की कमी के कारण, अन्य राज्यों की तरह न तो हमारे बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध है और न ही हम अन्य राज्यों की तरह शिक्षकों को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित कर पा रहे हैं।


जी एन वार, अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, कश्मीर

इस संबंध में एक अन्य पहलू की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘केवल इतना ही नहीं, अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने और यहाँ बनाई गई परिस्थिति यानी, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, लगातार कर्फ्यू और भय और आतंक के माहौल के कारण, हमारे बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान हैं।’ इसके साथ उनके माता-पिता को लगता है कि यहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाएगी और बाहरी लोग यहाँ आकर बस जाएँगे और यहाँ उनके बच्चों का भविष्य दाँव पर है।”

कश्मीरी असुरक्षित!

भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त के बाद कश्मीरी लोग असुरक्षित हैं और उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण आबादी का एक बड़ा हिस्सा मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित हुआ है। मनोचिकित्सक डॉ. मुश्ताक अहमद मरग़ूब ने ‘सत्य हिंदी’ के साथ विस्तृत बातचीत में कहा कि बड़ी संख्या में कश्मीरी विभिन्न मानसिक बीमारियों और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हैं। वह कहते हैं, ‘पिछले साल जो हुआ, उसने न केवल यहाँ के लोगों को भयभीत किया है, बल्कि उन्हें यह भी एहसास कराया है कि सामूहिक रूप से उनका भविष्य अंधकार में चला गया है। 5 अगस्त के बाद से मैंने अपने क्लिनिक में आने वाले रोगियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, लोग अपने भविष्य को लेकर डरे हुए और भयभीत हैं। सभी उम्र और लिंग के लोग गंभीर तनाव और अवसाद से पीड़ित हैं। यह एक भयानक स्थिति है। जिस तरह युद्धग्रस्त क्षेत्र में लोगों की स्थिति होती है।’

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दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के समय कहा था कि यह जम्मू और कश्मीर के विकास के नए युग की शुरुआत करेगा। लेकिन एक साल बाद, कश्मीर के ज़मीनी हालात पर एक नज़र डालने पर पता चलता है कि न केवल बड़ी संख्या में लोग जेलों में बंद हैं, बल्कि कश्मीर चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष शेख आशिक के अनुसार पिछले एक साल में 40000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है। उन्होंने कहा, ‘निजी क्षेत्र में चार लाख युवाओं ने पिछले साल 5 अगस्त को सरकारी तालाबंदी के बाद प्रारंभिक कुछ महीनों में अपनी नौकरी खो दी है। 

पिछले एक वर्ष के दौरान कश्मीरी लोगों के साथ होने वाले विभिन्न कष्टों के मद्देनज़र, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि कश्मीर से राज्य का दर्जा लेकर और उसका विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करके, मोदी सरकार ने न केवल इसके इतिहास और भूगोल को बदल दिया है बल्कि यहाँ की आबादी के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी बदतर कर दिया है।

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