कर्नाटक में नये सिरे से जाति सर्वेक्षण शुरू हो गया। और इसके साथ बड़ा विवाद भी। कुछ जातियों को उप-जातियों में वर्गीकरण को लेकर आपत्ति है। विपक्षी दल बीजेपी और जनता दल सेक्युलर ने इसका विरोध किया है और इसे 'हिंदू समाज को बाँटने' वाला क़दम बताया है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक क़दम बताया है। 

राज्य की कांग्रेस सरकार के जाति सर्वेक्षण को सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कहा जा रहा है। यह सर्वेक्षण 22 सितंबर से 7 अक्टूबर 2025 तक चलेगा और इसमें राज्य के लगभग 2 करोड़ घरों के 7 करोड़ लोगों को शामिल करने का लक्ष्य है। कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा आयोजित इस सर्वेक्षण पर करीब 420 करोड़ रुपये ख़र्च आएँगे।

2015 वाले सर्वेक्षण को रद्द क्यों किया?

यह आयोग द्वारा आयोजित किया जा रहा दूसरा सामाजिक-शैक्षिक सर्वेक्षण है। पहले 2015 में एच कांथराज आयोग द्वारा जाति सर्वेक्षण हुआ था। तत्कालीन पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े द्वारा 29 फरवरी, 2024 को सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की गई थी। इसने जाति-वार जनसंख्या आंकड़ों में गड़बड़ियों को उजागर किया। इससे कर्नाटक के दो प्रमुख जाति समूहों- वोक्कालिगा और वीरशैव लिंगायत- में तीखी प्रतिक्रियाएँ हुईं। उन्होंने इसे अवैज्ञानिक करार दिया।

2015 के सर्वेक्षण की लीक हुई रिपोर्ट में लिंगायत समुदाय की आबादी 66.35 लाख और वोक्कालिगा समुदाय की 61.58 लाख बताई गई थी, जो इन समुदायों की पारंपरिक धारणाओं से कम थी। इन प्रभावशाली समुदायों ने इसे ग़लत और पक्षपातपूर्ण बताया। वोक्कालिगा समुदाय ने कुंचितिगा उप-समुदाय को अलग गिनने पर आपत्ति जताई, इसे अपने समुदाय के हितों के खिलाफ बताया। विवाद के बाद सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इस साल जून में एक नए सर्वेक्षण की घोषणा की।

अब नये सर्वे में कई बदलाव किए गए हैं और ख़ासकर नये सर्वे में जियो टैगिंग पर जोर दिया गया ताकि घर-घर जाकर सर्वे किए जाने की पुष्टि हो सके।

जाति सर्वेक्षण में क्या-क्या है?

  • कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम के तहत हर 10 साल में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति की समीक्षा को अनिवार्य मानते हुए यह सर्वेक्षण शुरू किया है। 
  • सर्वेक्षण 22 सितंबर से 7 अक्टूबर 2025 तक चलेगा। इसमें राज्य के सभी नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का आकलन किया जाएगा। यह 2 करोड़ घरों और 7 करोड़ लोगों को कवर करेगा।
  • सर्वेक्षण में 60 प्रश्नों वाली एक विस्तृत प्रश्नावली शामिल है। इसमें जाति, धर्म, आय, शिक्षा, और सामाजिक स्थिति जैसे पहलुओं पर जानकारी जुटाई जाएगी।
  • प्रत्येक घर को बिजली मीटर नंबर के आधार पर एक यूनिक हाउसहोल्ड आईडी दी जाएगी। आधार और राशन कार्ड को मोबाइल नंबर से जोड़ा जाएगा, और प्रत्येक घर का जियो-टैगिंग भी किया जाएगा।

सर्वेक्षण का मक़सद क्या?

सरकार का दावा है कि यह सर्वेक्षण सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का आकलन करेगा, जिसके आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए नीतियाँ बनाई जाएंगी। यह विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं को मजबूत करने में मदद करेगा।
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विपक्षी दलों का विरोध क्यों?

कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण को लेकर बीजेपी और जनता दल सेक्युलर ने कड़ा विरोध जताया है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार इस सर्वेक्षण के जरिए हिंदू समाज को जातियों में बांटने की कोशिश कर रही है। केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने हुबली में कहा, 'कांग्रेस हमेशा हिंदू विरोधी रही है और यह सर्वेक्षण हिंदू समाज को तोड़ने की साजिश है।'

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र ने सभी जातियों और वर्गों से अपील की कि वे सर्वेक्षण में अपने धर्म को 'हिंदू' के रूप में दर्ज करें, ताकि कांग्रेस की कथित साज़िश नाकाम हो। उन्होंने कहा, 'यह सर्वेक्षण हिंदू समाज को बांटने और धर्मांतरण को बढ़ावा देने का प्रयास है।' बीजेपी विधायक अरविंद बेल्लाड ने दावा किया कि यह सर्वेक्षण वामपंथी विचारधारा से प्रेरित है और इसका उद्देश्य विकास कार्यों से ध्यान भटकाना है।

सर्वेक्षण की वैधता पर सवाल

विपक्ष ने सर्वेक्षण की ज़रूरत पर सवाल उठाए, क्योंकि केंद्र सरकार ने 2028 में राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने की घोषणा की है। विजयेंद्र ने कहा, 'जब केंद्र पहले ही जाति जनगणना कराने जा रहा है, तो राज्य सरकार को जल्दबाजी में 420 करोड़ रुपये खर्च करने की क्या जरूरत है?'

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चेतावनी दी कि यह सर्वेक्षण सामाजिक अशांति, दूरगामी जटिलताएँ और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को नुक़सान पहुँचा सकता है।

कांग्रेस नेताओं का जवाब

सत्तारूढ़ कांग्रेस ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए सर्वेक्षण को सामाजिक न्याय की दिशा में एक ज़रूरी क़दम बताया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सर्वेक्षण का बचाव करते हुए कहा, 'यह सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण है, न कि केवल जाति जनगणना। इसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों की स्थिति को समझना और उनके लिए नीतियां बनाना है।' बीजेपी के हिंदू-विरोधी आरोपों पर उन्होंने कहा, 'क्रिश्चियन और मुस्लिम भी भारतीय नागरिक हैं। अगर कोई धर्म परिवर्तन कर चुका है तो केवल उसकी वर्तमान जाति मानी जाएगी। बीजेपी इसे राजनीतिक रंग दे रही है।' 

सिद्धारमैया ने यह भी साफ़ किया कि क्रिश्चियन उप-जातियों को दिखाने वाला कॉलम हटा दिया गया है और कैबिनेट में सर्वेक्षण का कोई विरोध नहीं हुआ। बता दें कि विवाद के बीच 20 सितंबर को सिद्धारमैया सरकार ने श्रेणियों की मुख्य सूची से 57 ईसाई उप-जातियों को हटाने की घोषणा की।

वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शिवकुमार ने सर्वेक्षण की प्रक्रिया को पारदर्शी बताया और कहा, 'हमारा ध्यान किसी एक समुदाय पर नहीं, बल्कि सभी समुदायों की सुरक्षा पर है। विपक्ष मीडिया के जरिए भ्रम फैला रहा है।' उन्होंने सर्वेक्षण की तैयारी में त्रुटियों के दावों को खारिज किया और कहा कि यह एक विस्तृत और वैज्ञानिक अभ्यास है। कर्नाटक सरकार के मुख्य सचेतक सलीम अहमद ने कहा, 'कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में जाति जनगणना का वादा किया था। यह री-सर्वे सामाजिक न्याय के लिए जरूरी है।'
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कांग्रेस हाईकमान

राहुल गांधी ने जाति जनगणना को सामाजिक न्याय का आधार बताते हुए कहा, 'यह सर्वेक्षण यह साफ करेगा कि दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वाली 90% आबादी को सत्ता और संसाधनों में कितनी हिस्सेदारी मिल रही है।'

कर्नाटक का जाति सर्वेक्षण सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम क़दम हो सकता है, लेकिन यह राजनीतिक और सामाजिक विवादों का केंद्र भी बन गया है। विपक्ष का आरोप है कि यह सर्वेक्षण हिंदू समाज को बाँटने और सत्तारूढ़ कांग्रेस को राजनीतिक लाभ पहुँचाने की साजिश है, जबकि कांग्रेस इसे पिछड़े वर्गों के उत्थान का आधार बता रही है। सर्वेक्षण के परिणाम और इसके कार्यान्वयन पर सभी की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह कर्नाटक की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने को लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है।