कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ओबीसी के लिए 75% आरक्षण और निजी क्षेत्र में कोटा की मांग उठाकर सियासी तूफान खड़ा कर दिया है! दरअसल, 15 जुलाई 2025 को बेंगलुरु में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ओबीसी सलाहकार परिषद की बैठक में सिद्धारमैया ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए इस आरक्षण और निजी क्षेत्र में कोटा लागू करने की वकालत की। तो सवाल है कि सिद्धारमैया का यह फ़ैसला क्यों? क्या इसका बिहार चुनाव से संबंध है या फिर कर्नाटक की स्थानीय राजनीति की मजबूरी? क्या यह राहुल गांधी द्वारा जाति जनगणना व सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाए जाने से जुड़ा है?

सिद्धारमैया ने कांग्रेस द्वारा गठित ओबीसी सलाहकार परिषद से आह्वान किया कि वह केंद्र सरकार पर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक जाति जनगणना को पूरा करने के लिए दबाव बनाए। उन्होंने कहा कि ओबीसी के लिए 75% आरक्षण या जाति जनगणना के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग की जानी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने निजी क्षेत्र में नौकरियों, सरकारी प्रोन्नति, ठेकों और वित्तीय सहायता योजनाओं में आरक्षण की वकालत की। सिद्धारमैया ने इसे सामाजिक एकीकरण और ओबीसी समुदाय की चेतना को मजबूत करने का एक अवसर बताया।
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उन्होंने कहा, 'हमें राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग करनी चाहिए ताकि पिछड़े वर्गों की आवाज सभी निर्णय लेने वाली संस्थाओं में सुनाई दे।' द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने मंगलवार को कहा कि ओबीसी सलाहकार परिषद को एक संवैधानिक ज़रूरत के रूप में जाति जनगणना कराने के लिए रणनीति बनानी चाहिए, न कि इसे केवल राजनीतिक बहस तक सीमित रखना चाहिए।

बेंगलुरु घोषणा के प्रमुख प्रस्ताव

परिषद ने 'बेंगलुरु घोषणा' को सर्वसम्मति से पारित किया, जिसमें तीन प्रमुख प्रस्ताव शामिल थे:

  • राष्ट्रीय जाति जनगणना
  • 50% आरक्षण की सीमा तोड़ना
  • निजी शैक्षिक संस्थानों में OBC कोटा

भारत के जनगणना आयोग द्वारा सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, और राजनीतिक पहलुओं को शामिल करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की मांग की गई। तेलंगाना के जाति सर्वेक्षण को इसका मॉडल बताया गया। इसके साथ ही ओबीसी के लिए शिक्षा, सेवा, और राजनीति में उपयुक्त आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए 50% की आरक्षण सीमा को हटाने की मांग की गई। संविधान के अनुच्छेद 15(4) के तहत निजी शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने की वकालत की गई।

इसके साथ ही परिषद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 'न्याय योद्धा' के रूप में सराहा, जिन्होंने सामाजिक न्याय और ओबीसी सशक्तिकरण के लिए लगातार आवाज उठाई है। 

सिद्धारमैया ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि वह ओबीसी को केवल प्रतीक के रूप में देखती है, जबकि कांग्रेस उन्हें समानता का दर्जा देना चाहती है।

सिद्धारमैया की रणनीति

सिद्धारमैया की यह मांग कांग्रेस की ओबीसी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। ओबीसी सलाहकार परिषद का गठन कांग्रेस द्वारा देशभर में ओबीसी राजनीति को मजबूत करने और इस समुदाय को कांग्रेस के पक्ष में लाने के लिए किया गया है। कर्नाटक में 2015 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है। इस सर्वेक्षण के अनुसार, ओबीसी और दलित समुदाय कर्नाटक की आबादी का बड़ा हिस्सा हैं, जबकि परंपरागत रूप से प्रभावशाली लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों की आबादी अपेक्षाकृत कम है।

सिद्धारमैया का यह बयान बिहार जैसे राज्यों में आगामी चुनावों को देखते हुए भी अहम है, जहां ओबीसी और ईबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। एक्स पर कुछ पोस्टों में इस कदम को बीजेपी के लिए चुनौती के रूप में देखा गया।
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कर्नाटक में ओबीसी की स्थिति

75% आरक्षण और निजी क्षेत्र में कोटा लागू करना ओबीसी समुदायों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ा सकता है। कर्नाटक में ओबीसी की आबादी लगभग 70% होने का अनुमान है, और इसे आधार बनाकर 51% आरक्षण की सिफारिश पहले ही की जा चुकी है। यदि इसे लागू किया गया, तो कुल आरक्षण 85% तक पहुंच सकता है, जिसमें एससी/एसटी और ईडब्ल्यूएस के लिए मौजूदा कोटा भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के इंद्रा साहनी मामले में आरक्षण की सीमा 50% निर्धारित की थी। इस सीमा को तोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधन की ज़रूरत होगी, जो केंद्र सरकार की सहमति के बिना संभव नहीं है। बिहार में 2023 में 75% आरक्षण लागू किया गया, लेकिन इसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कर्नाटक में भी ऐसा ही जोखिम है।
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निजी क्षेत्र में आरक्षण

निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करना एक जटिल मुद्दा है। हरियाणा में 2021 में निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75% स्थानीय कोटा लागू करने का कानून पारित किया गया था, लेकिन 2023 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया। सिद्धारमैया की मांग को लागू करने के लिए मजबूत कानूनी और राजनीतिक समर्थन की जरूरत होगी।

सिद्धारमैया की 75% ओबीसी आरक्षण और निजी क्षेत्र में कोटा की मांग सामाजिक न्याय की दिशा में एक साहसिक कदम है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा। कानूनी बाधाएं हैं। 50% आरक्षण की सीमा और निजी क्षेत्र में कोटा लागू करने की जटिलताएँ, इस प्रस्ताव के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। इसके साथ ही यह क़दम कर्नाटक और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। कांग्रेस इसे ओबीसी सशक्तिकरण के लिए एक अवसर के रूप में देख रही है, लेकिन इसका सफल होना केंद्र सरकार के रवैये और कानूनी प्रक्रियाओं पर निर्भर करेगा।