Siddaramaiah vs DK Shivkumar: कांग्रेस ने कर्नाटक में नेतृत्व का मसला सुलझा लिया है। क्योंकि डीके शिवकुमार ने भी सीएम सिद्धारमैया का समर्थन किया है। लेकिन क्या यह इतना आसान है।
कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान फिलहाल शांत होती नजर आ रही है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हटाने की अपनी कोशिशों से पीछे हटने का फैसला किया है। यह निर्णय पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला की मध्यस्थता के बाद लिया गया, जिन्हें कांग्रेस आलाकमान ने बेंगलुरु भेजा था ताकि दोनों नेताओं के बीच तनाव को कम किया जा सके।
मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रणदीप सुरजेवाला ने साफ किया कि कांग्रेस का सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद से हटाने का कोई इरादा नहीं है। इस दौरान डीके शिवकुमार उनके बगल में मौजूद थे, हालांकि वह चुपचाप बैठे रहे। सुरजेवाला ने कहा, "हमारी पार्टी में कोई नेतृत्व परिवर्तन की योजना नहीं है। हमारा ध्यान कर्नाटक में मजबूत शासन और संगठन को बेहतर बनाने पर है।"
डीके समर्थकों के दावे
डीके शिवकुमार के समर्थकों ने दावा किया था कि उनके पास कांग्रेस के 138 विधायकों में से अधिकांश का समर्थन है। उनके करीबी विधायक इकबाल हुसैन ने कहा था कि करीब 100 विधायक मुख्यमंत्री बदलने के पक्ष में हैं और अगर ऐसा नहीं हुआ तो 2028 के चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद एक कथित पावर-शेयरिंग समझौते की बात भी सामने आई थी, जिसमें सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करने की चर्चा थी, हालांकि इसे पार्टी ने कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया।
सिद्धारमैया ने कहा: 'मैं ही रहूंगा मुख्यमंत्री'
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि उनकी सरकार "पांच साल तक चट्टान की तरह मजबूत रहेगी।" मैसूर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने डीके शिवकुमार का हाथ पकड़कर एकजुटता का प्रदर्शन किया और कहा, "हम दोनों के बीच कोई मतभेद नहीं है। हमारी सरकार स्थिर है।" सिद्धारमैया ने बुधवार को स्पष्ट किया, "हां, मैं ही पांच साल तक मुख्यमंत्री रहूंगा। इसमें कोई शक नहीं है।"
शिवकुमार ने कहा- मेरे पास कोई विकल्प नहीं है
डीके शिवकुमार ने बुधवार को कहा कि वह सिद्धारमैया का समर्थन करेंगे और पार्टी आलाकमान के फैसले का पालन करेंगे। उन्होंने कहा, "मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मुझे मुख्यमंत्री का समर्थन करना होगा। लाखों कार्यकर्ताओं ने पार्टी के लिए मेहनत की है, यह सिर्फ मेरी बात नहीं है।" हालांकि, उनकी टिप्पणियों में अनिच्छा साफ झलक रही थी। शिवकुमार ने यह भी कहा कि वह अभी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं और उनका ध्यान 2028 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूत करने पर है।
हालांकि कर्नाटक में यह विवाद फिलहाल थम गया है लेकिन इसके देर सवेर जोर पकड़ने की संभावना है। क्योंकि डीके शिवकुमार की नज़र अब भी सीएम की कुर्सी पर है। यह उनके समर्थकों की गतिविधियों से भी लगता है। उनके पास पैसा और साधन है, इसलिए वो अपनी मुहिम को रोक देंगे, इसमें संदेह है। अभी तो आलाकमान के आदेश पर वो चुप हो गए हैं।
दोनों में विवाद कैसे शुरू हुआ
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कर्नाटक में शानदार जीत हासिल की थी, जिसमें डीके शिवकुमार की मेहनत को बड़ा श्रेय दिया गया। इसके बावजूद, सिद्धारमैया को विधायकों के बहुमत समर्थन के कारण मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) का अध्यक्ष बनाया गया। शिवकुमार के समर्थकों का मानना है कि उनकी मेहनत को उचित सम्मान नहीं मिला। दूसरी ओर, सिद्धारमैया के समर्थकों का कहना है कि उनकी छवि एक जननेता के रूप में और कुर्मी समुदाय से आने वाले नेता के रूप में पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है।
कैबिनेट फेरबदल की संभावना
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, सिद्धारमैया को हटाने के बजाय कैबिनेट में फेरबदल या पार्टी की राज्य इकाई में बदलाव किए जा सकते हैं ताकि शिवकुमार के समर्थकों को संतुष्ट किया जाए। हालांकि, शिवकुमार ने कैबिनेट फेरबदल की इच्छा से इनकार किया है।
कांग्रेस की कर्नाटक रणनीति
कांग्रेस आलाकमान इस पूरे विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश में है, क्योंकि कर्नाटक उन दो राज्यों में से एक है जहां पार्टी सत्ता में है। पार्टी नहीं चाहती कि आंतरिक कलह से उसकी छवि को नुकसान पहुंचे। रणदीप सुरजेवाला ने विधायकों के साथ अपनी बैठकों को संगठनात्मक समीक्षा का हिस्सा बताया और कहा कि इसका उद्देश्य शासन और पार्टी संगठन को मजबूत करना है।
फिलहाल, सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री बने रहने की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन शिवकुमार और उनके समर्थकों की नाराजगी को पूरी तरह शांत करना कांग्रेस के लिए चुनौती बना हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर पार्टी इस मुद्दे को पूरी तरह हल नहीं करती, तो यह 2028 के चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।