कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि पार्टी के कुछ अहम फ़ैसले 'हाईकमान' के हाथ में हैं। खड़गे के इस बयान को बीजेपी ने लपक लिया। इसने पूछा है कि आखिर यह 'हाईकमान' कौन है? बीजेपी ने इसे कांग्रेस की आंतरिक कमजोरी और नेतृत्व की कमी क़रार दिया। 

दरअसल, कर्नाटक में संभावित नेतृत्व बदलाव को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'यह सब हाईकमान के हाथ में है। हाईकमान में क्या चल रहा है, यह कोई भी नहीं कह सकता है।' हालाँकि, खड़गे ने यह साफ़ नहीं किया कि यह 'हाईकमान' कौन है। इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी, क्योंकि विरोधी नेता कांग्रेस में 'हाईकमान' शब्द का इस्तेमाल अक्सर गांधी परिवार, खासकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के संदर्भ में करते रहे हैं।
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खड़गे का यह बयान कर्नाटक में चल रही सियासी उथल-पुथल के बीच आया है, जहाँ कांग्रेस सरकार के भीतर नेतृत्व और नीतिगत मुद्दों पर चर्चा चल रही है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच तनातनी की ख़बरें भी सामने आ रही हैं। इसके चलते खड़गे का यह बयान और भी अहम हो जाता है।

बीजेपी की तीखी प्रतिक्रिया

खड़गे के बयान पर बीजेपी ने तुरंत हमला किया। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने मौके का फायदा उठाते हुए सवाल पूछा कि यह 'अनदेखा, अनसुना हाईकमान आखिर है कौन? खड़गे पर निशाना साधते हुए सूर्या ने सवाल किया कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष नहीं तो यह हाईकमान कौन है, जो 'हमेशा महसूस किया जाता है'।
एक्स पर एक पोस्ट में सूर्या ने खड़गे पर तीखा कटाक्ष करते हुए लिखा, 'कांग्रेस का हाईकमान भूत की तरह है। यह अनदेखा, अनसुना है, लेकिन हमेशा महसूस किया जाता है। यहाँ तक कि कांग्रेस अध्यक्ष, जिसे लोग हाईकमान समझते थे, इसका नाम फुसफुसाते हैं और कहते हैं कि यह वे नहीं हैं। कितना रहस्यमयी!'

कांग्रेस में हाईकमान का इतिहास

कांग्रेस पार्टी में 'हाईकमान' शब्द का इस्तेमाल दशकों से होता आ रहा है। यह शब्द पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के संदर्भ में इस्तेमाल होता रहा है। बीजेपी जैसे विरोधी दल इसे गांधी परिवार के संदर्भ में इस्तेमाल करते हैं। स्वतंत्रता के बाद से जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा इस हाईकमान का हिस्सा रहे हैं। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर कई सवाल उठे हैं, खासकर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद।

राहुल गांधी ने 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभाली। 2022 में मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी अध्यक्ष चुना गया, लेकिन विरोधी नेता कहते हैं कि गांधी परिवार का प्रभाव अब भी पार्टी के फ़ैसलों पर हावी है।

क्या है विवाद का असली कारण?

खड़गे के बयान ने कांग्रेस के भीतर और बाहर कई सवाल खड़े किए हैं। कुछ जानकारों का मानना है कि खड़गे का यह बयान कर्नाटक में चल रहे सियासी संकट को टालने की कोशिश हो सकती है। कर्नाटक में सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच नेतृत्व को लेकर तनाव की ख़बरें हैं, और खड़गे का बयान इस संकट को हाईकमान के पाले में डालने का प्रयास हो सकता है।

यह विवाद एक दिन पहले रविवार को तब और बढ़ गया जब कर्नाटक कांग्रेस के विधायक एच.ए. इक़बाल हुसैन ने कहा था कि उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को आने वाले दो-तीन महीनों में राज्य के मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मिल सकता है। उन्होंने कहा था, 'यब सबको पता है कि चुनाव जीतने के लिए किसने सबसे ज़्यादा मेहनत की, योजना किसने बनाई और रुचि किसने दिखाई। शिवकुमार की रणनीति और कार्यक्रम अब मिसाल बन चुके हैं। मैं अफवाहों पर विश्वास नहीं करता, लेकिन हमें भरोसा है कि हाईकमान हालात को अच्छी तरह समझता है और सही समय पर शिवकुमार को मौक़ा देने का निर्णय लेगा।'
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सितबंर में हो सकता है बड़ा बदलाव

मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस विधायक इकबाल हुसैन ने कहा, 'हम सभी उस वक्त दिल्ली में साथ थे, जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने मिलकर सरकार बनाने का फ़ैसला लिया था। यह बात सभी को पता है। अगला फ़ैसला भी वही लोग लेंगे, हमें सिर्फ़ इंतज़ार करना होगा और देखना होगा। इसी तरह, सहकारिता मंत्री के. एन. राजन्ना ने भी हाल ही में इशारा किया है कि सितंबर के बाद राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। कर्नाटक कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएँ काफी समय से चल रही हैं, जिनका संबंध सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच कथित सत्ता साझेदारी समझोते से है। हालांकि पार्टी हाईकमान के सख्त निर्देशों के बाद इन अटकलों पर कुछ समय के लिए विराम लग गया था।

मई 2023 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों नेताओं के बीच तीखी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली थी। आखिरकार कांग्रेस नेतृत्व ने शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया था। उस समय की रिपोर्टों में रोटेशनल सीएम फॉर्मूला का सुझाव दिया गया था, जिसमें शिवकुमार को ढाई साल बाद पदभार संभालना था। हालाँकि इसकी आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं हुई।