SIR Kerala P Vijayan: केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने ईसीआई से कहा है कि चुनाव आयोग केंद्र की "कठपुतली" की तरह काम नहीं करे। केरल विधानसभा ने इस लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए एसआईआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया।
केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने मंगलवार को निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के विशेष गहन संशोधन (SIR) कार्यक्रम को लेकर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची के इस संशोधन को लेकर जल्दबाजी भरा रवैया अपनाना लोकतंत्र को चुनौती है। विजय ने ईसीआई को सलाह देते हुए कहा कि आयोग को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का कठपुतली बनने से बचना चाहिए।
पिछले महीने केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने ईसीआई से राज्य में SIR प्रक्रिया को स्थगित करने की अपील की थी। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद यह पत्र लिखा गया था, जिसमें सत्ताधारी और विपक्षी दलों ने स्थानीय निकाय चुनावों का हवाला देकर विलंब की मांग की थी। इसके अलावा, केरल विधानसभा ने पिछले महीने SIR के खिलाफ आमराय से प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में कहा गया कि ईसीआई का यह कदम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अप्रत्यक्ष रूप से लागू करने का प्रयास प्रतीत होता है।
विजयन ने आयोग के सोमवार के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य के सीईओ द्वारा स्थगन की मांग के बावजूद SIR को तुरंत लागू करने पर अड़े रहना आयोग पर संदेह के बादल मंडराता है। उन्होंने बिहार में SIR की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं का हवाला देते हुए कहा कि अन्य राज्यों में इसे लागू करना निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता। "यह स्पष्ट है कि मतदाता सूची का संशोधन, जो लंबी तैयारी और परामर्श की जरूरत रखता है, केवल लोगों की इच्छा को कमजोर करने के लिए जल्दबाजी में किया जा रहा है। आयोग को अपनी विश्वसनीयता प्रभावित करने वाले ऐसे फैसलों से बचना चाहिए।"
केरल सरकार का यह रुख तमिलनाडु में डीएमके शासित सरकार के समान है, जहां इस मुद्दे पर 2 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है। आलोचकों का मानना है कि SIR प्रक्रिया कुछ समुदायों को मताधिकार से वंचित करने का माध्यम बन सकती है, खासकर भाषाई अल्पसंख्यकों के संदर्भ में।
विजयन सरकार ने पहले भी केंद्र की नीतियों पर सवाल उठाए हैं, लेकिन SIR को लेकर यह बयान आयोग की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। राज्य में राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर इस प्रक्रिया का विरोध किया है, जो आगामी चुनावों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।