भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर भी 80 करोड़ लोग सरकारी राशन पर निर्भर हैं। विश्व बैंक की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 75 मिलियन लोग अत्यंत गरीबी ($3 प्रति दिन से कम) में जी रहे हैं। लेकिन इस बीच, केरल ने चमत्कार कर दिखाया है – वह भारत का पहला राज्य बन गया है, जिसने अत्यंत गरीबी को पूरी तरह खत्म कर दिया। यह उपलब्धि केरल मॉडल की ताकत को दर्शाती है, जिस पर दुनिया भर में चर्चा हो रही है।केरल: अत्यंत गरीबी का खात्मा।
केरल 1 नवंबर 2025 को तिरुवनंतपुरम के सेंट्रल स्टेडियम में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व में अत्यंत गरीबी-मुक्त राज्य की घोषणा करेगा। नीति आयोग ने इसकी पुष्टि की है कि केरल ने चरम गरीबी ($2.15 प्रति दिन से कम, लगभग ₹180) को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। यह उपलब्धि विश्व स्तर पर चीन के बाद दूसरी है। नीति आयोग के 2021 के आंकड़ों में केरल की गरीबी दर पहले ही 0.7% थी – देश में सबसे कम। इसके बाद विजयन सरकार ने एक्सट्रीम पॉवर्टी एराडिकेशन प्रोजेक्ट (EPEP) शुरू किया, जिसके तहत:
- 64,006 परिवारों को अत्यंत गरीब के रूप में चिन्हित किया गया।
- प्रत्येक परिवार के लिए व्यक्तिगत योजनाएँ बनाई गईं – भोजन, स्वास्थ्य, आजीविका, और आवास पर ध्यान।
- 21,263 लोगों को राशन कार्ड, आधार, वोटर ID जैसे दस्तावेज दिए गए।
- 3,913 परिवारों को घर, 1,338 को भूमि, और 5,651 घरों की मरम्मत के लिए ₹2 लाख तक की सहायता।
- जियो-टैगिंग से पारदर्शिता सुनिश्चित की गई।
यह कोई एक दिन की उपलब्धि नहीं थी। केरल में वामपंथी (LDF) और कांग्रेस-नेतृत्व वाली (UDF) सरकारों ने दशकों से शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास को प्राथमिकता दी। स्थानीय निकायों (पंचायत, नगरपालिका) और कुडुंबश्री जैसे महिला सशक्तिकरण मिशनों ने एकजुट होकर इसे संभव बनाया।
विकास का मानव-केंद्रित दृष्टिकोण
केरल मॉडल की ताकत इसके इंसान-केंद्रित विकास में है। नीति आयोग की SDG इंडिया इंडेक्स 2023-24 के अनुसार, केरल 79 अंकों के साथ मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत का शीर्ष राज्य है। तुलना करें:- बिहार: 57 अंक, सबसे निचला।
- तमिलनाडु: 78 अंक, दूसरा स्थान।
प्रमुख मानक:
- साक्षरता दर: केरल की 96.2% (राष्ट्रीय: 77.7%, वैश्विक: 86.5%) – विश्व औसत से 10% अधिक।
- जीवन प्रत्याशा: 78.26 वर्ष (भारत: 72, विश्व: 73.1) – यूपी/बिहार से 8 वर्ष ज्यादा।
- स्वास्थ्य: प्रति व्यक्ति ₹1,000 स्वास्थ्य पर खर्च (राष्ट्रीय: ₹250 से कम)। प्रति 1,000 लोगों पर 1 डॉक्टर (WHO मानक)।
- शिशु मृत्यु दर: 5 प्रति 1,000 (भारत: 25, अमेरिका: 5.6)।
- शिक्षा बजट: GDP का 3.46% (भारत: 1.9% से कम)।
- मजदूरी: औसत ₹700/दिन (राष्ट्रीय औसत का 4 गुना, मध्य प्रदेश: ₹292)।
- केरल का HDI (0.775) कई विकसित देशों (जैसे अमेरिका, यूरोप) के बराबर है। यह उपलब्धि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समानता में दशकों के निवेश का नतीजा है।
सद्भावना का भी मॉडल
केरल, जिसे ‘ईश्वर का अपना देश’ कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। यह अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच बसा है, जिसका क्षेत्रफल 38,863 वर्ग किमी (भारत का 1.18%) है। यहाँ 44 नदियाँ, बैकवाटर्स, और 580 किमी लंबा समुद्री तट है। मसाले (काली मिर्च, इलायची), रबर और नारियल इसकी अर्थव्यवस्था का आधार हैं। ‘God’s Own Country’ टैगलाइन 1989 में पर्यटन विभाग ने गढ़ी थी।
जनसंख्या (2025): 3.61 करोड़।
धार्मिक संरचना (2011): हिंदू (54.7%), मुस्लिम (26.6%), ईसाई (18.4%)।
केरल में सांप्रदायिक सद्भाव अनुकरणीय है। ऐसा नहीं है कि सद्भाव बिगाड़ने के प्रयास नहीं होते लेकिन पुलिस प्रशासन की सजगता से किसी चिंगारी को आग बनने से पहले बुझा लिया जाता है। केरल ने साबित किया है कि समृद्धि के लिए शांति ज़रूरी है। केरल मॉडल नफरती राजनीति को खारिज करता है, जो सांप्रदायिकता भड़काकर वोट लेने की कोशिश करती है।
कम्युनिस्ट आंदोलन: केरल मॉडल की नींव
केरल की प्रगति में कम्युनिस्ट आंदोलन का बड़ा योगदान है। 1930 के दशक में शुरू हुआ यह आंदोलन जातिगत दमन और जमींदारी के खिलाफ था। 1956 में स्टेट्स रीऑर्गनाइजेशन एक्ट के तहत केरल बना, और 1957 में ई.एम.एस. नंबूदिरीपाद के नेतृत्व में दुनिया की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार बनी। भूमि सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर ने केरल को बदला। LDF और UDF की प्रतिस्पर्धा ने विकास को केंद्र में रखा, न कि मंदिर-मस्जिद जैसे विमर्श को।
बिहार बनाम केरलः जहाँ केरल ने शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता पर निवेश कर चरम गरीबी खत्म की, वहीं बिहार में 20 साल के NDA के बीस साल के शासन के बावजूद बिहार देश क सबसे ग़रीब राज्य बना हुआ है। बहुआयामी ग़रीबी (MPI) के लिहाज़ से।
- भारत: 14.96% लोग गरीब हैं।
- गुजरात: 11.66%, यूपी: 22.93%, बिहार: 33.76% ग़रीब हैं।
- केरल: 0% (2025 में अत्यंत गरीबी खत्म)।
हद तो ये है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भी ग़रीबी, शिक्षा या रोज़गार का मुद्दा न बने, इसकी कोशिश हो रही है। ‘सुशासन बाबू’ नीतीश कुमार और PM मोदी के जुमले ‘लठबंधन’ या ‘रील बनाओ’ जैसे सतही नारे दे रहे हैं।
केरल से निराश बीजेपी
2021 में केरल के इकलौते बीजेपी विधायक ओ. राजगोपाल ने कहा, “केरल में 90% साक्षरता है, लोग सोचते-बहस करते हैं। यही बीजेपी की असफलता का कारण है।” यह बयान दर्शाता है कि केरल की शिक्षित जनता सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता देती है।
केरल मॉडल सिखाता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समानता पर निवेश से गरीबी मिटाई जा सकती है। बिहार जैसे राज्यों को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। लेकिन जब तक राजनीति ‘झटका-हलाल’ जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहेगी, गरीबी और पिछड़ापन बना रहेगा। केरल ने साबित किया कि विकास का रास्ता इंसान-केंद्रित नीतियों से होकर गुजरता है, न कि सांप्रदायिक विद्वेष से।