बीजेपी को इस चुनाव में अपने मार्गदर्शकों की आवश्यकता नहीं है। लौह पुरूष के नाम से मशहूर लाल कृष्ण आडवाणी के बाद मार्ग दर्शक मंडल के एक और सदस्य मुरली मनोहर जोशी का टिकट कटना तय है। चुनावों में स्टार प्रचारक रहीं सुषमा स्वराज, उमा भारती और अरुण जेटली जैसे कई नेताओं ने उम्र और स्वास्थ्य के कारण ख़ुद चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला किया है। पेश है चुनाव मैदान से बाहर दिग्गज नेताओं पर एक रिपोर्ट -
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लाल कृष्ण आडवाणी
लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे हैं। लंबे समय तक गुजरात की गाँधीनगर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ते और जीतते रहे आडवाणी को पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया है। इस सीट पर इस बार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ताल ठोकेंगे। आडवाणी बीजेपी अध्यक्ष से लेकर, देश के गृह मंत्री, उप प्रधानमंत्री जैसे पदों पर रह चुके हैं। पार्टी को खड़ा करने में आडवाणी का अहम योगदान रहा है। ख़बरों के मुताबिक़, आडवाणी टिकट काटे जाने से बेहद नाराज हैं।![bjp veterans will not fight 2019 loksabha election - Satya Hindi bjp veterans will not fight 2019 loksabha election - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.digitaloceanspaces.com/app/uploads/26-03-19/5c9a0d4a5c30a.jpg)
मुरली मनोहर जोशी
मुरली मनोहर जोशी भी आडवाणी की तरह ही इस बार चुनावी मैदान में नहीं दिखेंगे। माना जा रहा है कि कानपुर से उन्हें टिकट न मिलना लगभग तय हो गया है। इससे नाराज जोशी ने अपने संसदीय क्षेत्र के वोटरों के नाम एक खत लिखा है। इस खत में जोशी ने लिखा है, ‘भारतीय जनता पार्टी के महासचिव रामलाल ने मुझसे कहा है कि मुझे कानपुर या कहीं से भी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहिए।’ ख़बरों के मुताबिक़, जोशी भी टिकट काटे जाने को लेकर नाराज़ हैं और उन्होंने नाराजगी ज़ाहिर करने के लिए ही अपने संसदीय क्षेत्र के वोटरों को खत लिखा है। हैरान करने वाली बात यह भी है कि जोशी का नाम बीजेपी की स्टार प्रचारकों की लिस्ट में भी नहीं है। जोशी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर केंद्र में मानव संसाधन विकास मंत्री जैसे बड़े पदों पर रह चुके हैं।
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सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री और प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज ने भी इस बार चुनाव न लड़ने का एलान किया है। सुषमा ने कई महीने पहले ही आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने के बारे में पार्टी नेतृत्व को सूचित किया था। सुषमा ने कहा था कि वह ख़राब सेहत के चलते चुनाव नहीं लड़ेंगी। सुषमा मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से कई बार लोकसभा की सांसद रह चुकी हैं और वाजपेयी सरकार में भी अहम ओहदों पर रही हैं। सुषमा देश भर में बीजेपी का जाना-माना चेहरा हैं।
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अरुण जेटली
वित्तमंत्री अरुण जेटली भी इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। जेटली को 2014 में अमृतसर सीट से हार का सामना करना पड़ा था। बाद में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया था। जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता रह चुके हैं।
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कलराज मिश्र
कलराज मिश्र बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। कलराज मिश्र घोषणा कर चुके हैं कि वह आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। कलराज उत्तर प्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष से लेकर केंद्र में मंत्री जैसे बड़े पदों पर रहे हैं। 77 वर्षीय कलराज मिश्र को उम्र ज़्यादा होने के कारण मोदी सरकार की कैबिनेट से हटना पड़ा था।
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शाहनवाज़ हुसैन
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन को इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में हुसैन को भागलपुर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था। बिहार में समझौते के मुताबिक़, भागलपुर सीट अब जेडीयू के खाते में चली गई है। शाहनवाज़ बीजेपी का मुसलिम चेहरा माने जाते हैं। टिकट कटने के बाद शाहनवाज़ ने कहा था कि बिहार में एनडीए के साथी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने उनकी सीट ले ली है लेकिन फिर भी वे पार्टी की जीत के लिए मेहनत करेंगे। शाहनवाज़ केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
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उमा भारती
केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी। उमा 2014 में झाँसी से लोकसभा का चुनाव जीती थीं। उमा ने कुछ समय पहले घोषणा थी कि वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी। उमा केंद्रीय मंत्री होने के साथ ही पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।
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बी. सी. खंडूड़ी
पूर्व मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी भी इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरेंगे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रह चुके खंडूड़ी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। खंडूड़ी ने उम्र का हवाला देकर बीजेपी आलाकमान को पहले ही बता दिया था कि वह इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे। जनरल बीसी खंडूड़ी को रक्षा मामलों की संसदीय समिति के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया था।
इन सभी नेताओं का बीजेपी को शीर्ष तक पहुँचाने में अहम योगदान रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी को चुनाव में इनका पूरा साथ नहीं मिलेगा। हालाँकि इनमें से कुछ नेता पार्टी के लिए प्रचार ज़रूर करेंगे लेकिन फिर भी इन नेताओं के चुनाव न लड़ने या पूरी तरह चुनाव मैदान से बाहर रहने पर पार्टी को इनकी कमी ज़रूर खलेगी।
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