बीजेपी ने केरल से अपनी पहली लोकसभा सीट जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन उसे इस बार भी सफलता नहीं मिली। देशभर में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी केरल से लोकसभा सीट जीतने का अपना सपना इस बार भी पूरा नहीं कर पायी है, लेकिन उसने केरल में अपनी मज़बूत ज़मीन तैयार कर ली है।
राहुल गाँधी और कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों को शायद पहले ही आभास हो गया था कि इस बार अमेठी में स्मृति ईरानी जीत सकती हैं। इसी वजह से राहुल गाँधी के लिए सुरक्षित सीट की तलाश शुरू हुई और यह तलाश केरल की वायनाड सीट पर आकर ख़त्म हुई। रणनीतिकारों का आकलन सही साबित हुआ।
वायनाड सीट न सिर्फ़ 'सुरक्षित' सीट साबित हुई बल्कि राहुल गाँधी के इस सीट से लड़ने का फायदा कांग्रेस को पूरे केरल में मिला। अलाप्पुझा सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारों की जीत हुई।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि केरल में वामपंथी सरकार के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर, सबरीमला आंदोलन और अल्पसंख्यकों की कांग्रेस के पक्ष में लामबंदी की वजह से कांग्रेस को फायदा हुआ।
सबरीमला आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश के अदालती आदेश का समर्थन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश की इजाज़त दी थी, जबकि परंपरा और मंदिर के नियमों के मुताबिक़, सबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। शुरू में तो कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया था लेकिन केरल के हिंदुओं की भावनाओं, उनके विरोध को ध्यान में रखकर फ़ैसले का विरोध करना शुरू कर दिया था।
बीजेपी ने किया था फ़ैसले का विरोध
बीजेपी और उसके साथी संगठनों ने शुरू से ही सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का विरोध किया था। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, एबीवीपी जैसे भगवा संगठनों ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के फ़ैसले का विरोध करते हुए आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन को व्यापक समर्थन भी मिलना शुरू हुआ था। सूत्रों की मानें तो सबरीमला आंदोलन के ज़रिए बीजेपी ने हिंदुओं को अपनी तरफ़ खींचने की योजना बनाई थी। लेकिन कांग्रेस ने भी इस आंदोलन का समर्थन करते हुए बीजेपी को अपनी चाल में कामयाब होने नहीं दिया।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अदालती अनुमति का समर्थन करने की वजह से हिंदुओं का एक बहुत बड़ा वर्ग वामपंथी पार्टियों से अलग हो गया। इस वर्ग के कई लोग बीजेपी की तरफ़ गये तो कई कांगेस की ओर।
राहुल गाँधी के वायनाड से लड़ने की वजह से मुसलमान और ईसाई समुदायों के मतदाता भी कांग्रेस के पक्ष में लामबंद हो गये। यानी सबरीमला आंदोलन की वजह से कई सारे हिन्दू मतदाता वामपंथियों से अलग हुए तो कई सारे अल्पसंख्यक बीजेपी को रोकने के मक़सद से कांग्रेस के पक्ष में जा खड़े हुए। बीजेपी इसी में अपना भविष्य देख रही है।
सूत्र बताते हैं कि अल्पसंख्यकों की कांग्रेस के पक्ष में लामबंदी का फायदा उठाते हुए बीजेपी हिंदुओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश करेगी। वैसे भी बीजेपी की नज़र केरल में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है।
सूत्रों के अनुसार, बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगले विधानसभा चुनाव में जहाँ वामपंथी सरकार विरोधी लहर चरम पर होगी वहीं हिन्दू कांग्रेस की 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' की नीति से परेशान होकर उसके पक्ष में लामबंद हो जाएँगे। कांग्रेस की कोशिश हिंदुओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के साथ-साथ ईसाई मतदाताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करने की होगी।