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मोदी बनाम राहुल नहीं है यह चुनाव

बीजेपी यह साबित करने की कोशिश करती रहती है कि चुनाव तो मोदी और राहुल के बीच करना है, पर क्या राजनीतिक वास्तविकता यह नहीं है कि इस चुनाव में बीजेपी के लिए ममता, तेजस्वी, मायावती, अखिलेश, स्टालिन, नवीन पटनायक, चन्द्रबाबू नायडू और के. चन्द्रशेखर राव के साथ-साथ शरद पवार भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं?
शैलेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प राहुल गाँधी नहीं हो सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को प्रमुखता से उछाला जा रहा है। इसलिए बीजेपी के ज़्यादातर बड़े नेता राहुल गाँधी को नाकारा साबित करने की कोशिश में जुटे हुए दिखाई दे रहे हैं। फिर सवाल खड़ा होता है कि क्या यह चुनाव सचमुच मोदी बनाम राहुल ही है? इस बीच अगर देश की राजनीतिक स्थिति पर नज़र डालें तो एक अलग ही तसवीर सामने आती है।
इसमें कोई भी दो राय नहीं है कि कांग्रेस कुछ गिने-चुने राज्यों में सिमट कर रह गई है। इसके बावजूद राहुल गाँधी को बीजेपी अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी क्यों बता रही है? चुनावों के पूर्व सारे सर्वेक्षण घोषित कर चुके हैं कि कांग्रेस किसी भी हाल में 140 से ज़्यादा सीटें लाने की स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सबसे ज़्यादा हमला राहुल गाँधी पर ही करते रहे हैं। यह सब अनजाने में है या फिर किसी सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है, इसे समझने के लिए कुछ राज्यों की राजनीतिक खेमेबंदी पर नज़र डालने की ज़रूरत है।
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बंगाल में दीदी बनाम मोदी

सबसे पहले पश्चिम बंगाल को लेते हैं जहाँ बीजेपी की मुख्य लड़ाई तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी से है। लंबे समय तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ रहे इस राज्य में तो कांग्रेस नब्बे के दशक में ही हाशिये पर चली गयी थी। कांग्रेस से टूट कर निकली ममता बनर्जी ने सी.पी.एम के गढ़ को भी तोड़ दिया।
यहाँ लोकसभा की 42 सीटें हैं। शुरू में अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस और सी.पी.एम के बीच चुनावी गठबंधन हो सकता है। ऐसी स्थिति में तृणमूल कांग्रेस को बड़ी चुनौती मिल सकती थी।
अब यहाँ चौकोना मुक़ाबला तृणमूल-कांग्रेस, कांग्रेस, सी.पी.एम और बीजेपी के बीच है। जाहिर है यहाँ चुनाव तो मोदी बनाम ममता ही है।

कई राज्यों में क्षत्रपों की भूमिका

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और यहाँ मुख्य मुक़ाबला बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच है। कांग्रेस महागठबंधन की दूसरी पार्टी है। ठीक उसी तरह जिस तरह बीजेपी को यहाँ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करना पड़ा है। हालाँकि नीतीश से अलग होने के बाद भी 2014 के चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा था और सहयोगी दलों के साथ मिल कर बीजेपी ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी।
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बिहार के साथ लगे उड़ीसा में भी बीजेपी की लड़ाई बीजू जनता दल और नवीन पटनायक से है। यहाँ कुल 21 सीटे हैं। कांग्रेस यहाँ भी तिकोनी लड़ाई में फँसी हुई है। वहीं, महाराष्ट्र की 48 सीटों पर बीजेपी विरोधी मोर्चा के असली अगुआ अब शरद पवार हैं।
दक्षिण के राज्यों में तमिलनाडु की बात करें तो यहाँ लड़ाई में न तो बीजेपी है और न ही कांग्रेस। यहाँ संघर्ष डीएमके और एआईएडीएमके में है।
यह पहला लोकसभा चुनाव है जब कई दशकों से यहाँ की राजनीति को नियंत्रित करने वाले करुणानिधि (डीएमके) और जयललिता (एआईएडीएमके) दोनों की मृत्यु हो चुकी है। राज्य की कमान करुणानिधि के बेटे एम.के स्टालिन के हाथों में रहेगी या फिर एआईएडीएमके के नेता पलानी सामी बनेंगे नया सितारा। बहरहाल, कांग्रेस  और बीजेपी दोनों को ही यहाँ हाशिये पर रहना है।
वहीं, आंध्रप्रदेश की 25 सीटों की मुख्य लड़ाई तेलुगू देशम के नेता और मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू लड़ेंगे। जहाँ तक गठबंधन की बात करें तो अब तक कांग्रेस उनके साथ रही है। इसके अलावा तेलंगाना की 17 सीटों के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों को तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर का सामना करना होगा।

यूपी में कांग्रेस लड़ेगी अस्तित्व की लड़ाई

देश में सबसे ज़्यादा 80 सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश की लड़ाई बीजेपी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा मायावती के गठबंधन के बीच है। कांग्रेस यहाँ अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। हालाँकि 2009 के चुनावों में कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 22 सीटों पर जीती थी और बीजेपी करीब 10 सीटों पर सिमटी हुई थी।
सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के चुनाव क्षेत्रों वाले इस प्रदेश में कांग्रेस आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही है। इसका बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस यहाँ बदलते जातीय समीकरण से तालमेल नहीं बैठा पाई।

यहाँ कांग्रेस-बीजेपी हैं आमने-सामने

कांग्रेस और बीजेपी के बीच जिन राज्यों में सीधी लड़ाई है उनमें मध्यप्रदेश (29 सीट), कर्नाटक (28 सीट), गुजरात (26 सीट), राजस्थान (25 सीट) केरल (20 सीट), असम (14 सीट) झारखंड (14 सीट), पंजाब (13 सीट) छत्तीसगढ़ (11 सीट) हरियाणा (10 सीट) उत्तराखंड (5 सीट) हिमाचल (5 सीट), दिल्ली (7 सीट) के अलावा कुछ छोटे राज्य हैं जहाँ एक या दो सीटें हैं। इन राज्यों में कुल मिलाकर 207 सीटें बनती हैं। अरुणाचल और अंडमान जैसे छोटे राज्यों को मिला लें तो कांग्रेस और बीजेपी का सीधा मुक़ाबला करीब 210 सीटों पर ही दिखाई देता है।
इसके अलावा महाराष्ट्र की 48, बिहार की 40 आंध्र प्रदेश की 25, जम्मू- कश्मीर की 6 सीटों पर सहयोगियों के साथ मिल कांग्रेस कुल 119 सीटों पर बीजेपी को चुनौती देती नज़र आ रही है।
इस चुनाव में कांग्रेस की सबसे बड़ी असफलता यही है कि वह अभी तक बड़े स्तर पर गठबंधन नहीं कर पाई है। दूसरी तरफ़ बीजेपी ने छोटे छोटे दलों के साथ समझौता करके अपने आप को और ताक़तवर बना लिया है।
कुल मिलाकर तसवीर यही बन रही है कि यह चुनाव मोदी बनाम राहुल, ममता, अखिलेश, मायावती, बीजू पटनायक, चन्द्रबाबू नायडू, के.चन्द्र शेखर राव, एम के स्टालिन है।

कांग्रेस को हल्के में नहीं आँक रही बीजेपी

बीजेपी अच्छी तरह समझती है कि कांग्रेस अब भी एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मौजूद है। कई राज्यों में कांग्रेस कमजोर स्थिति में तो है लेकिन उसका जनाधार बिल्कुल ख़त्म नहीं हुआ है और पार्टी के पुनर्जीवन की संभावना अब भी बनी हुई है। 2004 के चुनाव में कांग्रेस को 145 और 2009 के चुनावों में 206 सीटें मिली थीं। इसके बूते पर कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 10 सालों तक शासन किया।
2014 में मोदी लहर ने कांग्रेस को हाशिये पर पटक दिया। 2014 के बाद कांग्रेस विधानसभा के चुनाव भी हारती रही लेकिन बाद में हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार वापसी की। इसके पहले कर्नाटक और गुजरात में भी कांग्रेस ने बीजेपी को अच्छी चुनौती दी। बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार अच्छी तरह समझते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती कांग्रेस ही है।  हालाँकि अभी कांग्रेस पूर्ण बहुमत तक पहुँचती दिखाई नहीं देती है।
पिछले 5 सालों के विपक्ष के अनुभव के बाद राहुल गाँधी राजनीतिक तौर पर ज़्यादा परिपक्व हुए हैं। परिवारवाद के आरोपों के बावजूद आम जनता में उनकी स्वीकारोक्ति बढ़ी है।
बीजेपी अगर 2014 के नतीजों को दोहराने में सफल नहीं होती है तो अगली सरकार के गठन में कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी।

राहुल गाँधी ही रहते हैं निशाने पर?

राहुल गाँधी को ग़ैर हिंदू बताने की बार-बार कोशिश की गई ताकि हिंदू उनसे कट जाएँ। उनके पारसी दादा फिरोज गाँधी को मुसलमान बताकर भी उन्हें धार्मिक आधार पर अलग-थलग करने की कोशिश की गई। यहाँ तक जवाहर लाल नेहरू और उनके पिता को भी मुसलमान बताने की लगातार कोशिश हो रही है। ग़ौरतलब है कि मोदी और शाह अच्छी तरह समझते हैं कि राहुल गाँधी उनके लिए बड़ी चुनौती हैं। इसलिए बीजेपी के राजनीतिक हमलों के केंद्र में हमेशा राहुल गाँधी ही होते हैं।
बीजेपी यह साबित करने की कोशिश करती रहती है कि चुनाव तो मोदी और राहुल के बीच करना है, पर राजनीतिक वास्तविकता यह है कि इस चुनाव में बीजेपी के लिए ममता, तेजस्वी, मायावती, अखिलेश, स्टालिन, नवीन पटनायक, चन्द्रबाबू नायडू और के. चन्द्रशेखर राव के साथ-साथ शरद पवार भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
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