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चुनाव आचार संहिता की धज्जियाँ क्यों उड़ा रहे हैं नेता?

2014 के लोकसभा चुनाव में मतदान के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ शेल्फी और 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मतदान के बाद निकाला गया रोड शो, क्या ये महज़ इत्तिफ़ाक था? महाराष्ट्र में सांगली की महापौर जब मतदान करने जाती हैं तो पार्टी के चुनाव चिन्ह के छापे वाली साड़ी पहनकर जाती हैं और बाहर निकलकर फ़ोटो भी खिंचवाती हैं। क्या यह भी इत्तिफ़ाक था? भारत की पहली उपग्रहभेदी मिसाइल के सफल परीक्षण की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा करना, नमो टीवी चैनल की शुरुआत, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा भारतीय वायु सेना को मोदी की वायु सेना कहना, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भारतीय सेना को मोदी सेना बताना, आतंकवाद की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह द्वारा चुनाव को धर्म युद्ध बोलना, क्या ये सब भी महज़ इत्तिफ़ाक हैं?

चुनावी सभाओं में किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के लोगों से वोट या एकजुटता की अपील को ज़ुबान फिसलना भले ही कह सकते हैं लेकिन 'मुसलिमों की नस्लों को बर्बाद करने के लिए नरेंद्र मोदी को चुनें’ यह महज इत्तिफ़ाक नहीं हो सकता। लेकिन यह हो क्यों रहा है? इस पर नियंत्रण क्यों नहीं हो रहा? इसको लेकर चर्चाओं और बहसों का दौर शुरू है।

आदर्श आचार संहिता का आज का दौर और उसे लागू कराने में अक्षम-सा नज़र आता चुनाव आयोग कहीं लोकतंत्र के कमज़ोर होने में सहभागी तो नहीं हो रहा? ऐसे दौर में जब विपक्षी दल ‘संविधान की रक्षा’ को चुनावी मुद्दा बनाए हुए हैं, यह शक और गहराता जा रहा है।

टी. एन. शेषन जैसी सख्ती क्यों नहीं?

इस देश ने मुख्य चुनाव आयुक्त का वह दौर भी देखा है जब टी. एन. शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। पी. वी. नरसिंह राव की सरकार में मुखर्जी मंत्री थे और शेषन ने 2 अगस्त, 1993 को 17 पेज का आदेश जारी किया कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा। 

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शेषन ने अपने आदेश में लिखा, था ‘जब तक वर्तमान गतिरोध दूर नहीं होता, जो कि सिर्फ़ भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, चुनाव आयोग अपने-आप को अपने संवैधानिक कर्तव्य निभा पाने में असमर्थ पाता है। उसने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव, जिसमें हर दो साल पर होने वाले राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उप-चुनाव भी, जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक स्थगित रहेंगे।’ और एक आज का दौर है कि चुनाव आयोग को उसकी शक्तियों की याद सुप्रीम कोर्ट को दिलानी पड़ रही है। 
चुनाव आयोग ने कुछ दिनों पहले एक आदेश निकाला था कि चुनाव प्रचार में सेना के शौर्य और उसकी बहादुरी का इस्तेमाल कोई नहीं करेगा, लेकिन क्या कोई उसका पालन कर रहा है?
आम आदमी ही नहीं, देश के साठ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और कामकाज के तरीक़ों पर सवाल उठाये हैं और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस सन्दर्भ में पत्र लिख कर अपनी शिकायत दर्ज करायी है। लेकिन क्या हुआ? महज कुछ नोटिस जारी हुए। लेकिन क्या महज नोटिस जारी करके चुनाव आयोग अपना पल्ला झाड़ सकता है? 

मिलिंद देवड़ा और सिद्धू के विवादित बोल

दक्षिण मुंबई से कांग्रेस के प्रत्याशी मिलिंद देवड़ा जैन समाज से आते हैं और उन्होंने एक सभा में जैन समाज के लोगों से अपील कर डाली कि वे शिवसेना को वोट न दें। मामला बीजेपी शासित मीरा भायंदर महानगरपालिका ने एक आदेश जारी किया कि शहर में पर्युषण पर्व के 10 दिन तक मांस की बिक्री पर प्रतिबन्ध है इसलिये इस क़ारोबार से जुड़े लोग अपनी दुकानें बंद रखें। यह वह दौर था जब शिवसेना-बीजेपी में टकराव चलता था। शिवसेना ने इसका विरोध किया और जैन मंदिरों के सामने मुर्गी और मछली के ठेले लगाकर प्रदर्शन भी किया। इसी को लेकर मिलिंद प्रचार अभियान में वोट नहीं करने की ऐसी अपील कर रहे हैं। मिलिंद के ख़िलाफ़ जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 125 और भारतीय दंड संहिता की धारा 171 के तहत मामला दर्ज किया गया है। ऐसी ही एक अपील कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने बिहार के कटिहार क्षेत्र में जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुसलिम समाज के मतदाताओं से की जिसपर चुनाव आयोग ने उनके प्रचार करने पर 72 घंटे की रोक लगा दी।

इन नेताओं ने भी लांघी सीमा

आज़म ख़ान ने भी अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया था और कहा था कि मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है। 
योगी आदित्यनाथ ने कहा था, 'जब गठबंधन के नेताओं को अली पर विश्वास है और वह अली-अली कर रहे हैं, तो हम भी बजरंगबली के अनुयायी हैं और हमें बजरंगबली पर विश्वास है।’
मायावती ने सहारनपुर के देवबंद की संयुक्त रैली में मायावती ने मुसलिमों को सचेत करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में अपने वोट को बँटने नहीं देना।
मेनका गाँधी ने धमकी भरे लहज़े में मुसलिम मतदाताओं से कहा था कि यदि वे लोकसभा चुनाव में उनके पक्ष में मतदान नहीं करेंगे तो वह भी देख लेंगी।
हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने तो राहुल गाँधी के लिए गाली का प्रयोग किया था।
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चुनाव आयोग स्वायत्त संवैधानिक संस्था है और देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए उसे संविधान के अनुच्छेद 324 से पर्याप्त अधिकार मिला हुआ है। लोगों को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का कार्यकाल याद होगा, जब उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका को काफ़ी प्रभावशाली बना दिया था। उन्होंने राजनीतिक दलों के बाहुबली नेताओं को आचार संहिता के दायरे में रहने के लिए मजबूर कर दिया था। शेषन को जो संवैधानिक अधिकार मिले थे, वे वर्तमान के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी प्राप्त हैं। पर उस तरह की सक्रियता नहीं दिख रही है। ऐसे में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल क्यों ना खड़े हों? सांगली की महापौर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हो चुकी है लेकिन बाक़ी का क्या?
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संजय राय
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