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मध्य प्रदेश में क्यों दाँव पर लगी है कमलनाथ की प्रतिष्ठा?

लोकसभा चुनाव के लिए मध्य प्रदेश में भी चौसर सज गई है। बीजेपी ने पहली लिस्ट में 15 उम्मीदवारों का एलान कर दिया है। उधर, कांग्रेस ने अभी 9 उम्मीदवार घोषित किए हैं। मध्य प्रदेश में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं। हेवीवेट उम्मीदवार वाली इंदौर सीट को बीजेपी ने होल्ड किया है। इस सीट से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ताई चुनाव लड़ती आ रही हैं। उधर, कांग्रेस ने भोपाल से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाकर मुक़ाबला रोचक बना दिया है।

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बीजेपी ने मध्य प्रदेश को लेकर जारी की गई पहली लिस्ट में 5 मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिये हैं। केन्द्रीय मंत्री और बीजेपी की प्रदेश इकाई के वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर की सीट बदल दी गई है।

तोमर ने साल 2014 का चुनाव ग्वालियर सीट से लड़ा था, अब उन्हें मुरैना शिफ़्ट कर दिया गया है। इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाँजे अनूप मिश्रा सांसद थे।

2014 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 27 सीटें जीती थीं। कांग्रेस गुना-शिवपुरी और छिंदवाड़ा सीट ही जीत सकी थी। बीजेपी सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया ने रतलाम-झाबुआ सीट जीती थी।

बीजेपी जहाँ, ‘मिशन - 29’ का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है तो मध्य प्रदेश कांग्रेस ने भी इस बार ‘टारगेट 29’ को निशाने पर रखा है। 

कांग्रेस के सामने ज़्यादा हैं चुनौतियाँ

बीजेपी के मुक़ाबले कांग्रेस के समक्ष चुनौतियाँ कहीं ज़्यादा हैं। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस बामुश्किल 114 सीटें जीत सकी और बीजेपी 109 सीटों पर रूक गई थी। कुल 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर 116 से दो सीटें कम रहने वाली कांग्रेस ने बीएसपी के दो, एसपी के एक और चार निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार बनाई थी। विधानसभा चुनाव में कर्जमाफ़ी का नारा कांग्रेस के लिये संजीवनी बना था। कांग्रेस के पन्द्रह सालों के सत्ता के सूखे की समाप्ति में किसानों ने ही बड़ा रोल प्ले किया था। मुख्यमंत्री पद संभालने के कुछ ही घंटों बाद किसानों के दो लाख रुपये तक की कर्जमाफ़ी का आदेश जारी करने वाले कमलनाथ के सामने कठिनाई प्रदेश का खस्ता हाल खजाना है। कर्जमाफ़ी की गाड़ी को वे कर्ज लेकर ही आगे बढ़ा रहे हैं। बीजेपी कर्जमाफ़ी को छलावा बताते हुए किसानों को उकसा रही है। यह सही भी है क्योंकि कुल 55 लाख किसानों का कर्ज माफ़ करना है। 

आचार संहिता लगने के पूर्व 80-85 दिनों में कमलनाथ सरकार महज 15-17 लाख किसानों को ही कर्जमाफ़ी का प्रमाण पत्र थमा पायी है। जिन्हें प्रमाण पत्र दिए गए हैं उनमें ज़्यादातर किसान 1000 रुपये से लेकर 20-25 हज़ार तक के कर्जमाफ़ी वाले ही हैं।

कमलनाथ के सामने अकेले किसान ही नहीं अनेक ऐसे वादे हैं जिन्हें लेकर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं। इसके अलावा पार्टी की भीतरी खींचतान भी कमलनाथ को हलकान किए हुए है। मंत्री ना बन पाने वाले कांग्रेस के कई वरिष्ठ विधायक लोकसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार करने की बात कर रहे हैं। 

बीएसपी-एसपी के सुर भी बग़ावती बने होने के चलते चुनाव के बाद इन दलों के विधायकों का कितना और कब तक साथ कमलनाथ सरकार को मिल पायेगा, इसे लेकर भी कानाफूसी तेज़ हो चली है। मंत्री ना बन पाने वाले निर्दलीय विधायक भी कमलनाथ और कांग्रेस को आँखें दिखाने में पीछे नहीं रह रहे हैं।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कुल 12 संसदीय क्षेत्रों में आगे रही थी। सयाने कांग्रेसी कह रहे हैं, ‘मप्र में कांग्रेस इन 12 सीटों को भी निकाल लेती है तो कमलनाथ और उनकी टीम के लिए यह बड़ी कामयाबी होगी।’

मप्र में कांग्रेस इस बार सीटें जीतने का इतिहास बनायेगी। मोदी की जुमलेबाज़ी से जनता आजिज आ गई है। 5 सालों में मोदी ने देश को गर्त में ले जाकर खड़ा कर दिया है और विकास नारा भर साबित हुआ है। अब बारी जनता की है और वह इन तत्वों को सरकार से बाहर कर सबक सिखाने को आतुर बैठी है।


सुरेश पचौरी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री

अकेले झोंकनी होगी ताक़त  

कमलनाथ के सामने चुनौती एक नहीं अनेक हैं। दिग्विजय सिंह को उन्होंने भोपाल से प्रत्याशी बनवा दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास वेस्ट यूपी की कमान है। सिंधिया को स्वयं भी चुनाव लड़ना है। इससे इन दोनों नेताओं के अनुभव का लाभ और ज़्यादा साथ मिलने के आसार बहुत कम हो गये हैं। 

छिंदवाड़ा से कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ की पॉलिटिकल लाँचिंग करने जा रहे हैं। छिंदवाड़ा का अपना गढ़ बचाने के साथ ही बेटे को जिताने के लिए भरी गर्मी में कमलनाथ को जमकर पसीना बहाना ही होगा। इसके अलावा मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा चुनाव जीतने की चुनौती भी नाथ के सामने मुँह बाँये खड़ी है। 

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  • लोकसभा चुनाव के साथ ही छिंदवाड़ा में दीपक सक्सेना द्वारा रिक्त की गई विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है। कमलनाथ यहाँ से प्रत्याशी हैं। बीजेपी ने अभी छिंदवाड़ा लोकसभा और छिंदवाड़ा विधानसभा सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। दोनों ही सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशियों की घोषणा अभी होनी बाक़ी है। कुल मिलाकर छिंदवाड़ा विधानसभा, छिंदवाड़ा लोकसभा और मप्र की शेष 28 लोकसभा सीटों को भी मुख्यमंत्री कमलनाथ को पीसीसी चीफ़ होने के नाते ‘साधना’ है।
कमलनाथ को इंदौर और विदिशा के लिये भी ‘हेवीवेट’ चेहरे तलाशने हैं। बीजेपी से कांग्रेस में आये टिकट के दावेदारों को साधने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है। चुनाव में भारी-भरकम फ़ंड का मैनेजमेंट भी कमलनाथ को करना है।

कमलनाथ ने आगे आकर सभी 29 सीटें जीतने का लक्ष्य कांग्रेसियों के सामने रखा है। ऐसे में उन 12 सीटों को बचाना नाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती है जिनमें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की थी। 

कमलनाथ हमेशा केन्द्र की राजनीति करते रहे। मध्य प्रदेश में उनकी अपनी टीम या बेहद चमकीले और विश्वासपात्र चेहरे नहीं हैं। कमलनाथ यदि किसी पर पूरी तरह से निर्भर हैं तो वे हैं टीम छिंदवाड़ा के अहम हिस्से, ‘आर.के. मिगलानी और संजय श्रीवास्तव पर।’

बीजेपी के सामने मुश्किलों का अंबार 

मध्य प्रदेश बीजेपी के सामने भी मुश्किलों का अंबार है। प्रदेश बीजेपी के ‘चेहरा नंबर वन’ शिवराज सिंह चौहान को मोदी-शाह की जोड़ी ने ‘पीछे’ कर दिया है। मुख्यमंत्री रहते हुए कई-कई बार मध्य प्रदेश नाप देने वाले शिवराज सिंह चौहान को विधानसभा चुनाव 2018 हार जाने के बाद मध्य प्रदेश में मनमाफिक ‘आभार रैली’ नहीं करने दी गई है। 

नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी चाहने के बावजूद पार्टी आलाकमान ने शिवराज की बजाय गोपाल भार्गव को यह कुर्सी सौंप दी। शिवराज तमाम ‘अपमानों’ पर खून का घूँट पीये बैठे हैं।

बीजेपी के कई बड़े चेहरे पार्टी से खफ़ा हैं। कई सांसदों के टिकट कटने के बाद उनकी नाराजगी और बढ़ गई है। उधर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उसके द्वारा दिये गये नामों पर विधानसभा चुनाव में विचार नहीं किये जाने से नाराज रहा और अब लोकसभा चुनाव में भी संघ की बात कम चलने की वजह से उठापटक का दौर तेज़ है। 

बीजेपी ने मुरैना से अनूप मिश्रा, भिंड से डॉ. भागीरथ प्रसाद, उज्जैन से चिंतामण मालवीय, शहडोल से ज्ञान सिंह और बैतुल से ज्योति धुर्वे का टिकट काट दिया है। 

बता दें कि बीजेपी ने नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना से, संध्या राय को भिंड से, वीरेंद्र कुमार खटीक को टीकमगढ़ से, प्रहलाद पटेल को दमोह से, गणेश सिंह को सतना से, जनार्दन मिश्रा को रीवा से, रीति पाठक सीधी से, हिमाद्री सिंह को शहडोल से, राकेश सिंह को जबलपुर से, फग्गन सिंह कुलस्ते को मंडला से, राव उदयप्रताप सिंह को होशंगाबाद से, अनिल फिरोजिया को उज्जैन से, नंदकुमार सिंह चौहान को खंडवा से, दुर्गादास उइके को बैतूल से और सुधीर गुप्ता को मंदसौर से उम्मीदवार बनाया है। 

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दूसरी ओर कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को रतलाम से, मीनाक्षी नटराजन को मंदसौर से, किरण अहिरवार को टीकमगढ़ से, कविता सिंह को खजुराहो से, प्रमिला सिंह को शहडोल से, मधु भगत को बालाघाट से, शैलेन्द्र दीवान को होशंगाबाद से, दिग्विजय सिंह को भोपाल से, रामू टेकाम को बैतूल से उम्मीदवार बनाया है। 

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संजीव श्रीवास्तव
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