मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जबरदस्त हलचल मची हुई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार एक ओर जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संरक्षण में खुद को स्थिर और सशक्त दिखाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर उनके मंत्रिमंडल में भीतर ही भीतर असंतोष की ज्वाला सुलग रही है। वरिष्ठ मंत्रियों और विधायकों के बीच नाराजगी और टकराव के स्वर अब सतह पर आने लगे हैं।

कैबिनेट में विरोध के सुर 

हाल ही में वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में आयोजित ‘एक पेड़ मां के नाम’ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में ही वन विभाग के प्रति नाराजगी जाहिर की। वन विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास है, फिर भी विजयवर्गीय ने सार्वजनिक रूप से कहा, “वन विभाग सहयोग नहीं कर रहा है, पौधे नहीं दे रहा है।” उन्होंने साफ तौर पर आग्रह किया कि विदेश दौरे से पहले मुख्यमंत्री विभाग को निर्देश दें, मगर मोहन यादव ने इस टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। यह मौन कई सवाल खड़े करता है।

निराशा की वजह: अफसरों की तैनाती  

विजयवर्गीय की नाराजगी सिर्फ वन विभाग तक सीमित नहीं है। हाल ही में हुए प्रशासनिक फेरबदल में उनके पसंदीदा एसीएस संजय शुक्ला को हटा दिया गया और उनकी जगह संजय दुबे को नियुक्त किया गया, जिनसे उनका तालमेल नहीं बैठता। यह नियुक्ति भी उनकी नाराजगी की अहम वजह बनी।
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दिग्गज मंत्रियों की नाराजगी 

कैलाश विजयवर्गीय अकेले नहीं हैं। मंत्रिमंडल के अन्य वरिष्ठ सदस्य जैसे प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और नरेन्द्र सिंह तोमर भी अंदरखाने नाराज हैं। ये सभी कभी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन संघ के दबाव और जातीय समीकरणों के चलते एक अपेक्षाकृत युवा और तीसरी बार के विधायक मोहन यादव को शीर्ष पद सौंप दिया गया।

सिंहस्थ की तैयारियों पर विवाद 

 मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन में आगामी सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर हैं। हजारों करोड़ के टेंडर जारी हो चुके हैं। इसी संदर्भ में कैबिनेट की बैठक में सड़कों की योजना और लागत को लेकर प्रहलाद पटेल और विजयवर्गीय ने खुलकर विरोध दर्ज किया। यह विवाद मीडिया की सुर्खियों में भी छाया रहा।

काम में अड़चन: अफसर नहीं सुनते 

मंत्री प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह को भी अपने-अपने विभागों में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। राकेश सिंह, जो लोक निर्माण मंत्री हैं, बार-बार मुख्यमंत्री कार्यालय के चक्कर काटने को मजबूर हैं। यह असंतोष मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों में भी देखने को मिल रहा है जो ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ अफसरशाही से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं।

मुख्यमंत्री के पास दर्जनों विभाग क्यों

 मोहन यादव ने एक दर्जन से अधिक विभाग अपने पास रखे हैं, जिनमें सामान्य प्रशासन, गृह, जेल, वन, खनिज, जनसंपर्क, उद्योग, विमानन, लोक सेवा प्रबंधन और प्रवासी भारतीय जैसे महत्वपूर्ण विभाग शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने सबसे ज्यादा राजनीतिक दबाव वाले इंदौर जिले का प्रभार भी खुद के पास रखा है — जो कि पहले कभी किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया।

इंदौर को लेकर विजयवर्गीय की नाखुशी 

इंदौर विजयवर्गीय का गढ़ माना जाता है। वे वहां के निर्विवाद नेता रहे हैं। मुख्यमंत्री द्वारा इंदौर का प्रभार स्वयं रखने से विजयवर्गीय की नाराजगी और गहराई है, जो पूर्व में ‘ताई’ सुमित्रा महाजन से भी टकराव के लिए बदनाम रहे हैं।

कैबिनेट विस्तार और सियासी समीकरण 

मोहन यादव ने दिसंबर 2023 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अब 19 महीने पूरे हो चुके हैं। अब तक दो बार मंत्रिमंडल विस्तार हो चुका है। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए रामनिवास रावत को भी मंत्री बनाया गया, हालांकि वह उपचुनाव में हार गए थे। इसके बावजूद उन्हें वन एवं पर्यावरण विभाग सौंपा गया, जिससे पूर्व मंत्री नागर सिंह चौहान और उनकी सांसद पत्नी अनिता सिंह चौहान नाराज हो गए। यहां तक कि उन्होंने इस्तीफे की धमकी दी थी।

खबरें हैं कि मोहन यादव कैबिनेट का तीसरा विस्तार वर्षाकालीन सत्र से पहले कर सकते हैं। कई मौजूदा मंत्रियों की छुट्टी तय मानी जा रही है। यह वे मंत्री हैं जो या तो संघ के समर्थन से वंचित हैं, या फिर कार्य के प्रदर्शन में कमजोर माने जा रहे हैं।

जिले और जातीय संतुलन की चुनौती 

प्रदेश में 55 जिले हैं लेकिन केवल 25 जिलों का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में है। कई प्रमुख जिलों जैसे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर से दो-दो मंत्री हैं, जबकि अन्य उपेक्षित हैं। जातीय संतुलन की कमी भी महसूस की जा रही है, जिससे असंतोष और बढ़ सकता है।
मोहन यादव अब जल्द ही 1200 से अधिक राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। यह कदम उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को उपकृत करने के लिए उठाया जाएगा, जिन्होंने पार्टी के लिए मेहनत की है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समय ये पद वर्षों तक खाली पड़े रहे।
मोहन यादव को संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी का पूरा समर्थन प्राप्त है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की नियुक्ति को भी इसी दिशा में देखा जा रहा है। खंडेलवाल यादव से काफी जूनियर हैं और पूर्व सीएम शिवराज के करीबी माने जाते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की चेतावनी 

वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा कि मोहन यादव खरगोश की तरह तेज जरूर दौड़ रहे हैं, लेकिन मगरमच्छों (वरिष्ठ नेताओं) से बैर मोल ले रहे हैं। दीक्षित ने व्यंग्य में चेतावनी दी, “रेस हमेशा कछुआ जीतता है, समय बदलेगा तो मगरमच्छ उन्हें निगल जाएगा।”
मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार भीतर से सशक्त दिखाई देने की कोशिश कर रही है, पर हकीकत यह है कि उनकी टीम में भारी खींचतान और असंतोष पनप रहा है। यदि समय रहते सामंजस्य नहीं बना, तो यह अंतर्विरोध 2028 के चुनाव से पहले भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।