मध्य प्रदेश में अडानी समूह की धीरौली कोयला खदान परियोजना के लिए सिंगरौली में लगभग 6 लाख पेड़ों की कटाई हो रही है। कांग्रेस विधायकों ने शुक्रवार को विरोध में विधानसभा में हंगामा किया और सदन का बहिष्कार किया। बीजेपी सरकार इस पर सफाई दे रही है।
मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र की अंतिम बैठक के दौरान शुक्रवार को सदन में जबरदस्त हंगामा हुआ। अडानी समूह की धीरौली कोयला खदान परियोजना के तहत लगभग 6 लाख पेड़ काटे जाने के खिलाफ कांग्रेस विधायकों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। विधायक विक्रांत भूरिया के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर हंगामा मचने के बाद विपक्षी दल के सदस्यों ने सदन से वाकआउट कर दिया। उन्होंने इस मामले की न्यायिक जांच और सदन की संयुक्त समिति गठित करने की मांग की है।
झबुआ से आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधायक विक्रांत भूरिया ने विधानसभा में उठाए गए मुद्दे पर कहा, "धीरौली, अमरेली और बिरकुनिया जैसे गांवों में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हो रही है। आदिवासी आबादी को उनके अधिकारों से वंचित कर पूंजीपतियों और कोयला खनन को फायदा पहुंचाया जा रहा है। ग्राम सभाओं से अनुमति जबरदस्ती और धमकी देकर ली जा रही है। इस मामले की न्यायिक जांच जरूरी है। पेसा (पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम), वनाधिकार अधिनियम (एफआरए) और अन्य कानूनों का जिले भर में उल्लंघन हो रहा है। धरौली ब्लॉक में 1,398 हेक्टेयर वन भूमि का विनाश हो रहा है। लगभग 6 लाख पेड़ काटे जाने हैं।" भूरिया ने कहा कि सिंगरौली में पेड़ काटकर अन्य जिलों में पौधे लगाने से स्थानीय आबादी और पर्यावरण को कोई लाभ नहीं होगा।
कांग्रेस विधायकों ने आरोप लगाया कि कोयला ब्लॉक क्षेत्र 2023 तक पेसा अधिनियम के तहत संरक्षित था, लेकिन 2023 से 2025 के बीच इसकी स्थिति बदल दी गई। उन्होंने दावा किया कि पेड़ काटने के दौरान क्षेत्र में 1,500 पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए तैनात थे। विपक्ष ने केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों पर अडानी समूह को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया।
बीजेपी सरकार ने पेड़ काटने को सही ठहराया
इसके जवाब में वन मंत्री राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि पेड़ों की कटाई केंद्र और राज्य के नियमों के अनुसार हो रही है। उन्होंने स्पष्ट किया, "धीरौली कोयला ब्लॉक 3 मार्च 2021 को खनिज और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों के तहत सराई तहसील के विभिन्न गांवों में 2,672 हेक्टेयर क्षेत्र में कोयला खनन के लिए स्ट्राटाटेक मिनरल प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित किया गया था।
मई में मोदी सरकार ने दी थी अनुमति
मंत्री अहिरवार ने बताया कि आवंटन के बाद, वन (संरक्षण और विकास) अधिनियम, 1980 के तहत 1,397.54 हेक्टेयर वन भूमि के हस्तांतरण का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया, जिसकी अंतिम मंजूरी 9 मई 2025 को मिली। कोयला ब्लॉक क्षेत्र पेसा अधिनियम के अधिसूचित क्षेत्र में नहीं आता।" अहिरवार ने बताया कि 1,397.54 हेक्टेयर क्षेत्र में 5,70,667 पेड़ काटने की अनुमति दी गई है, जिसमें से अब तक 33,000 पेड़ काटे जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र की शर्तों का पालन करते हुए अन्य जिलों जैसे आगर मालवा, रायसेन, शिवपुरी और सागर में 13.97 लाख से अधिक पौधे लगाए जाएंगे। उन्होंने धमकी या स्थानीय अधिकारों पर असर के आरोपों को भी गलत ठहराया।
अजीबोगरीब तर्कः संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने पेसा अधिनियम पर सफाई देते हुए कहा कि सिंगरौली जिले में आदिवासी आबादी कम होने के कारण यह कानून कभी लागू ही नहीं हुआ।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस घटना को "पर्यावरणीय त्रासदी और स्थानीय आदिवासी समुदायों के लिए आपदा" करार दिया। उन्होंने परियोजना के लिए कानूनी और पर्यावरणीय मंजूरियों में कई उल्लंघनों का आरोप लगाया तथा केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों पर अडानी समूह को लाभ पहुंचाने का इल्जाम लगाया। कांग्रेस ने धीरौली कोयला खनन परियोजना का मुद्दा कई बार उठाया है।
पर्यावरणीय चिंताओं के बीच यह विरोध प्रदर्शन मध्य प्रदेश की राजनीति में आदानी समूह की परियोजनाओं को लेकर बढ़ते विवाद को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से जल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं और ग्रामीण विस्थापित हो रहे हैं। सरकार ने हालांकि मुआवजा और पुनर्वास योजनाओं का दावा किया है, लेकिन विपक्ष इसे पर्याप्त नहीं मान रहा। यह मुद्दा आगामी दिनों में और तेज हो सकता है।
अडानी समूह और उससे जुड़े विवाद
भारत में गौतम अडानी के नेतृत्व वाला अडानी समूह बिजली, बंदरगाह, हवाई अड्डे और कोयला खनन जैसे क्षेत्रों में तेजी से विस्तार कर रहा है, लेकिन इसके साथ ही कई गंभीर विवाद भी जुड़े हुए हैं। 2023 में अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग ने अडानी पर शेयर बाजार में हेराफेरी, फर्जी कंपनियों के जरिए धन हस्तांतरण और अरबों डॉलर की धोखाधड़ी का आरोप लगाया था, जिससे कुछ ही दिनों में समूह की कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 150 अरब डॉलर से ज्यादा घट गया। पिछले दिनों अमेरिकी न्याय विभाग ने गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देकर सौर ऊर्जा ठेके हासिल करने का मुकदमा दर्ज किया है। भारत में भी विपक्ष ने जांच की मांग कई बार की लेकिन मोदी सरकार ने उसे ठुकरा दिया। संसद में इस मुद्दे को उठाने की अनुमति नहीं मिली।
कोयला खनन के क्षेत्र में भी अडानी पर कम विवाद नहीं हैं। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य और रायगढ़ के परसा-गारे पेल्मा क्षेत्रों में लाखों पेड़ कटाई, आदिवासी ग्राम सभाओं की जबरन सहमति और पेसा-वन अधिकार कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगे हैं। इसी तरह सिंगरौली के मामले का ऊपर जिक्र हो ही चुका है। इसके अलावा इंडोनेशिया से कोयला आयात में अरबों रुपये की ओवर-इनवॉयसिंग, कम गुणवत्ता वाला कोयला ऊंचे दाम पर बेचने और सरकारी कोयला को निजी प्लांट में डायवर्ट करने के भी गंभीर आरोप हैं।
तीसरा बड़ा विवाद हवाई अड्डों और बंदरगाहों के ठेकों से जुड़ा है। मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव कर अडानी को मुंबई, लखनऊ, अहमदाबाद सहित छह बड़े हवाई अड्डे सौंपे। विपक्ष ने इसे क्रोनी कैपिटलिज्म का सबसे बड़ा उदाहरण बताया है। गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह में मैंग्रोव वनों का विनाश और पर्यावरण नियमों की अनदेखी भी लंबे समय से विवाद का विषय रही है। इन सबके बावजूद अडानी समूह इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करता है और कहता है कि उसकी सभी परियोजनाएँ कानूनी हैं तथा देश के विकास में योगदान दे रही हैं। फिर भी ये विवाद भारत में कॉर्पोरेट पावर, पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों को लेकर चल रही बड़ी बहस का हिस्सा बने हुए हैं।