एमपी के दमोह में जातिगत उत्पीड़न की शर्मनाक घटना घटी। एक ओबीसी युवक को कथित तौर पर ब्राह्मण के पैर धोकर पानी पीने को मजबूर किया गया। वीडियो वायरल होने पर सामाजिक न्याय पर बहस छिड़ी।
मध्य प्रदेश के एक गांव में पैर धोने के लिए मजबूर करने का विवाद
मध्य प्रदेश के दमोह में एक बेहद शर्मनाक घटना सामने आई है! इंस्टाग्राम पोस्ट से तंज कसने के लिए एक ओबीसी युवक को कथित तौर पर ब्राह्मण युवक का पैर धोकर पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ा। बैठक में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी पड़ी। इसी दौरान युवक को एक वीडियो में यह कहते सुना गया कि 'हम इसी तरह ब्राह्मणों की पूजा करते रहेंगे'। यह सब करते हुए वीडियो बनाया गया। जिस ब्राह्मण युवक का पैर धुलवाया गया उस पर ग्राम पंचायत द्वारा गाँव में लगाई गई शराबबंदी में भी शराब बेचने का आरोप है। इसी को लेकर इंस्टाग्राम पोस्ट में तंज कसा गया था।
वीडियो के वायरल होने और इस पर बवाल बढ़ने के बाद अब पुलिस ने इस मामले में एफ़आईआर दर्ज की है।
इंस्टाग्राम पोस्ट में क्या था?
मामला दमोह जिले के सतारिया गाँव का है। रिपोर्टों के अनुसार सतारिया का निवासी और पिछड़ा वर्ग से आने वाले पुरुषोत्तम कुशवाहा नाम के एक युवक ने इंस्टाग्राम पर एक AI-जनरेटेड इमेज पोस्ट की। इसमें ब्राह्मण समुदाय के अनुज पांडे को जूतों की माला पहने हुए दिखाया गया था। यह इमेज पांडे पर गांव के सामूहिक शराबबंदी फैसले का उल्लंघन करने का व्यंग्य थी। अनुज पांडे पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के गांव के सामूहिक निर्णय का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। कुशवाहा ने पोस्ट को 15 मिनट के अंदर ही डिलीट कर लिया और माफी मांग ली, लेकिन इसके बावजूद गांव में आक्रोश नहीं रुका। बाद में गांव में बैठक की गई और कुशवाहा को 'सजा' दी गई। इस पूरे घटनाक्रम के वीडियो बनाए गए।
सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके एक वीडियो में कुशवाहा को पांडे के पैर धोते हुए देखा जा सकता है। वीडियो में वह कहते सुनाई देते हैं, 'मैं ब्राह्मण समुदाय से माफी मांग रहा हूं। ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी। हम ब्राह्मणों की ऐसी ही पूजा करते रहेंगे।' सोशल मीडिया पर दावा किया गया है कि कुशवाहा को पैर धोने के बाद उस पानी को पीने के लिए भी मजबूर किया गया। एनडीटीवी की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई है। हालाँकि, सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में पानी पीते हुए नहीं दिखता है और न ही पुलिस की ओर से इस पर कुछ कहा गया है। यह पूरी घटना ब्राह्मण समुदाय के सदस्यों और कुछ कुशवाहा समुदाय के लोगों की मौजूदगी में हुई।
सतारिया गांव ने सामूहिक रूप से शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अनुज पांडे पर इस प्रतिबंध का उल्लंघन कर शराब बेचने का आरोप लगा। इसके बाद गांव पंचायत ने पांडे को गांव भर में घूमकर सार्वजनिक माफी मांगने और 2100 रुपये का जुर्माना देने का आदेश दिया। इसी संदर्भ में कुशवाहा ने AI इमेज बनाकर पांडे का मजाक उड़ाया। पोस्ट आने के बाद तनाव बढ़ गया। पांडे ने कथित तौर पर कुशवाहा और उनके परिवार को गाली-गलौज की। इसके बाद सतारिया और आसपास के गांवों से ब्राह्मण समुदाय के सदस्य इकट्ठा हो गए, जिन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट को न केवल पांडे का अपमान बल्कि पूरे समुदाय का अपमान बताया। यह व्यक्तिगत झगड़ा जल्द ही सामुदायिक टकराव में बदल गया।
पुलिस की कार्रवाई
दमोह पुलिस ने शनिवार को बयान जारी कर कहा कि वायरल वीडियो का संज्ञान लिया गया है और एफआईआर दर्ज की गई है। बयान में कहा गया है, 'थाना पटेरा अन्तर्गत ग्राम सतरिया में हुई घटना पर पुलिस द्वारा संज्ञान लेते हुए FIR दर्ज की है। इस घटना में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस दोनों पक्षों पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही भी कर रही है। क्षेत्र में पुलिस लगातार गश्त कर रही है। वरिष्ठ अधिकारियों और सुधी-संभ्रांत नागरिकों को भी क्षेत्र में संवाद कर शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए तत्पर किया गया है।'
अनुज पांडे ने दावा किया है कि वह और कुशवाहा के बीच 'गुरु-शिष्य संबंध' है और पैर धोना स्वेच्छा से हुआ। उन्होंने कहा, 'उसने अपनी गलती के लिए माफी मांगी। यदि कुशवाहा समुदाय को ठेस पहुंची है तो मैं उनसे माफी मांगता हूं। यह वीडियो ओबीसी पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है।' पांडे का यह बयान घटना को सामुदायिक अपमान से हटाकर व्यक्तिगत मामला बताने का प्रयास लगता है। कुशवाहा और उनका परिवार कथित तौर पर डर के साये में है।
कुशवाहा और उनके परिवार ने बदले के डर का हवाला देते हुए मामले पर बोलने या औपचारिक शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया है।
दलित उत्पीड़न का विवाद भी चर्चा में
इधर, भारत में जातिगत भेदभाव का काला साया आज भी उच्च पदों पर बैठे दलित अधिकारियों तक फैल चुका है। हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर जूता फेंकने का प्रयास और हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी पुरन कुमार की आत्महत्या ने दलित उत्पीड़न के गंभीर आरोपों को फिर से उजागर कर दिया है।
सीजेआई पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट में 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने सीजेआई गवई की ओर जूता फेंका। हालाँकि, उनको वह लगा नहीं। गवई दलित समुदाय से आते हैं। इसको लेकर भारी विवाद हुआ। सोशल मीडिया पर सीजेआई के पक्ष में लोग आए तो दक्षिणपंथियों ने सीजेआई गवई के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं और भद्दे भद्दे मीम्स बनाए। विपक्षी दलों ने इसे दलित उत्पीड़न बताया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'दलितों का अपमान उनकी स्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ता– चाहे वह सीजेआई हों या साधारण नागरिक।' केजरीवाल ने इसे 'सिस्टमैटिक साजिश' करार दिया।
हरियाणा कैडर के 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी वाई. पुरन कुमार ने 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ के अपने सेक्टर-11 आवास पर खुद को गोली मार ली। आठ पेज की 'फाइनल नोट' में उन्होंने 'जातिगत भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न, सार्वजनिक अपमान और अत्याचार' का जिक्र किया। कुमार ने हरियाणा डीजीपी शत्रुजीत कपूर, रोहतक एसपी नरेंद्र बिजरनिया समेत 9 वर्तमान आईपीएस, एक रिटायर्ड आईपीएस और 3 रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों का नाम लिया।
चंडीगढ़ पुलिस ने 9 अक्टूबर को आत्महत्या के लिए उकसाने और एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की। एक 6 सदस्यीय एसआईटी का गठन किया गया, जिसका नेतृत्व आईजी पुष्पेंद्र कुमार कर रहे हैं।
दलित उत्पीड़न का बढ़ता सिलसिला
ये मामले हाल के अन्य घटनाक्रमों से जुड़े हैं। 2024-25 में एनसीआरबी डेटा के अनुसार, दलितों के खिलाफ अपराधों में 13% वृद्धि हुई और इसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश शीर्ष पर हैं। जुलाई 2024 से यूपी के श्रावस्ती में दलित लड़के को मूत्र पिलाना, मध्य प्रदेश में पुलिस यातना जैसे मामले सामने आए। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्टों में कहा गया कि दलितों पर हमले होते रहते हैं।