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शिवराज जी, उर्दू, अरबी व फारसी के शब्दों को हटाने से बदल जाएगी पुलिस?

मुगलकालीन दौर के शब्दों को बदलने भर से मध्य प्रदेश पुलिस की सूरत और सीरत क्या बदल जायेगी? यह सवाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से किया जा रहा है। दरअसल, नाम बदलने की राजनीति के तेज़ दौर के बीच मुगलिया दौर के शब्दों को पुलिसिया प्रचलन से पूरी तरह से हटाने का फैसला मध्य प्रदेश सरकार ने लिया है। फैसले के बाद से इस मुद्दे पर राजनीति तेज है। 

बता दें, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो दिन पहले कलेक्टर-कमिश्नर्स के संग वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग की थी। चौहान इस तरह की बैठक नियमित लेते हैं। मैदानी अधिकारी बैठक में रहते हैं। बैठक का हिस्सा मैदान में तैनात आईजी-डीआईजी और एसपी भी होते हैं।

कलेक्टर्स-कमिश्नर कॉन्फ़्रेंस में कानून और व्यवस्था के साथ तमाम विषयों की खुली समीक्षा होती है। अच्छा काम करने वाले अफसरों की पीठ थपथापने के साथ काम के हिसाब से उम्मीदों पर खरे नहीं उतरने वाले अफसरों को सार्वजनिक तौर पर फटकार भी पड़ती है।

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‘दस्तयाब’ को बताया मुगलकालीन 

कोविड प्रोटोकॉल की वजह से सोमवार को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित की गई बैठक में पुलिस के एक अधिकारी ने ‘दस्तयाब’ शब्द का प्रयोग किया था। इस शब्द पर मुख्यमंत्री चौहान ने नाइत्तेफ़ाकी जताई। उन्होंने शब्द को मुगलकालीन बताया। 

सीएम की नाइत्तेफ़ाकी और शब्द को मुगलकालीन बताए जाने से बैठक में कुछ देर के लिये सन्नाटा खिंच गया था। 

‘शब्दावली’ को छांटा गया 

मुख्यमंत्री चौहान ने निर्देश दिए थे कि उर्दू, अरबी और फारसी के चलन में आ रहे शब्दों को पुलिसिया भाषावली से बाहर कर दिया जाए। सीएम के निर्देश के बाद ‘शब्दावली’ को छांटा गया। करीब 350 शब्द ऐसे निकले जो उर्दू, अरबी और फारसी के हैं एवं बरसों-बरस से मध्य प्रदेश की पुलिसिया प्रचलन का ये हिस्सा हैं।

चिन्हित किए गए 350 शब्दों को मुख्यमंत्री ने पुलिसिया भाषावली के चलन-प्रचलन से बाहर करने के निर्देश दिए हैं। सीएम की मंशा के मद्देनज़र बहुत शीघ्र सभी शब्द मध्य प्रदेश पुलिस की शब्दावली से बाहर कर दिए जायेंगे।

नई पीढ़ी को होती है कठिनाई

मध्य प्रदेश की सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का नजरिया पहली नज़र में ठीक माना गया। दरअसल ज्यादातर शब्द बेहद क्लिष्ट हैं। मौजूदा दौर हिंग्लिश का है। नई पीढ़ी ठीक से हिन्दी नहीं समझती, ऐसे में उर्दू, फारसी और अरबी शब्दों वाली पुलिस की एफआईआर अथवा लिखित-मौखिक कार्रवाई को समझना नई पीढ़ी के अधिकांश युवाओं के बस की बात कतई नहीं है!

कांग्रेस ने उठाये सवाल

मुख्यमंत्री का फैसला भले ही पहली नज़र में ठीक माना गया,  लेकिन प्रतिपक्ष कांग्रेस ने सवाल खड़े करने आरंभ कर दिए हैं। 

मध्य प्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी सरकार को सबसे पहले पुलिस के रवैये को पटरी पर लाने की मजबूत कवायद करना चाहिए। राज्य की पुलिस में भ्रष्टाचार चरम पर है। कुछेक अधिकारियों और उंगलियों पर गिने जा सकने वाले मैदानी अमले को छोड़कर राज्य पुलिस का पूरा चेहरा स्याह है।’

गुप्ता कहते हैं, ‘आम आदमी पुलिस के नाम से खौफजदा रहता है। सीधे उससे पाला पड़ जाये तो पुलिस की असलियत कुछ ही देर में सामने आ जाती है। डंडा और गालियां आम बात है। गलती ना होने पर भी जेब गर्म करने को मजबूर किया जाना मध्य प्रदेश पुलिस की भी हकीकत भरी कहानी है।’

गुप्ता के आरोप फौरी नहीं हैं। आये दिन गरीब, लाचार, बेसहारा एवं मजबूर लोगों पर पुलिस के कहर और अपराधियों से गठजोड़ के किस्से-कहानियां मीडिया की सुर्खियां बनते हैं। 

रेप में नंबर वन है एमपी 

मध्य प्रदेश रेप में देश भर में नंबर वन है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अत्याचार, महिला वर्ग पर जुल्म और संगठित अपराधों की श्रेणी में भी मध्य प्रदेश की गिनती देश के ऊपरी पायदान वाले सूबों में हो रही है।

इन हालातों में केवल और केवल शब्दों को पुलिस के चलन-प्रचलन से बाहर करने भर से बात न बन पाने की दलीलें बहुत हद तक उचित हैं, प्रेक्षक ऐसा मानते हैं।

Shivraj government removed Mughal era words from police circulation - Satya Hindi

नामों की राजनीति उफान पर

मध्य प्रदेश में पुलिसिया शब्दावली के अलावा नाम बदलने की राजनीति भी पूरे उफान पर है। पिछले पखवाड़े भर में राज्य की सरकार ने नामी-गिरामी भवनों, रेल और बस अड्डों के नाम बदले हैं।

भोपाल के बरसों पुराने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन किया गया है। पीएम मोदी ने पीपीपी मोड से फिर से विकसित किए गए भारत के इस पहले सबसे आधुनिकतम सुविधाओं से सुसज्जित स्टेशन को देश को समर्पित किया है।

मिंटो हाल का नाम बदला 

शिवराज सिंह सरकार ने सवा सौ साल पुराने भोपाल की हैरिटेज इमारत मिंटो हाल (मध्य प्रदेश विधानसभा के पुराने भवन) को गुलामी का प्रतीक करार देते हुए भवन का नाम स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर घोषित कर दिया है। 

आदिवासियों को साधने की जुगत में लगी राज्य की सरकार और सत्तारूढ़ दल भाजपा यहीं नहीं रूकी है, इंदौर के पातालपानी रेलवे स्टेशन और इंदौर में एक चौराहे एवं 100 करोड़ की लागत से फिर से विकसित हो रहे बस स्टैंड का नाम टंट्या भील के नाम से रखा है। उसकी कुछ अन्य स्थानों और भवनों के नाम बदलने की भी तैयारियां है। 

‘अविवेकपूर्ण और अनावश्यक कार्रवाई’

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सुधीर सक्सेना कहते हैं, ‘नाम और शब्दों को बदले जाने की कार्रवाई अविवेकपूर्ण और अनावश्यक है। इसका कोई औचित्य नहीं है। नाम परिवर्तन गैर-जरूरी और खर्चीला उपक्रम है। यह शुचितावादी एजेंडे का हिस्सा है।’

वे कहते हैं, ‘मुझे ज्ञात हुआ है कि नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में बड़ी संख्या में यूकेलिप्टिस के वृक्ष इसलिये काटे गये, क्योंकि वह विदेशी प्रजाति है, तो क्या सरकार विदेशी परिधान, विदेशी खान-पान और विदेशी संबोधनों को भी बैन करेगी?’ 

सक्सेना कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश और देश के कई भाजपा शासित राज्यों में जिस तरह से जगहों के नाम और शब्दावली बदली जा रही है, ऐसा किसी काल में नहीं हुआ है।’  

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अहम दस्तावेज का नाम ‘मुगलिया’

मुगलकालीन भाषा और शब्दावली का पहला हिस्सा रोजनामचा है। पुलिस में कामकाज की शुरुआत रोजनामचे से होती है। रोजनामचा एक रजिस्टर होता है, जिसमें पुलिसकर्मियों की दैनिक गतिविधियों के साथ ही अपराधों का जिक्र भी रहता है। सबसे ज्यादा प्रचलन में देहाती नालसी, हवाले साना, परवाना जैसे शब्द हैं। 

ये शब्द बदले जाएंगे

देहाती नालसी (किसी थाना क्षेत्र में जब कोई अपराध होता है तब घटनास्थल पर पहुंच कर जांच अधिकारी द्वारा अपराध के संबंध में तथ्यों को प्रथम पत्र में दर्ज किया जाना), हवाले साना (कार्रवाई के लिए पुलिस की रवानगी), माल वाजयाफ्ता (माल की जब्ती), मुचलका (बंधपत्र), जमानत (अंग्रेजी में बेल), परवाना (नोटिस/समंस), हवालाती (पुलिस अभिरक्षा में होना), तहरीर (लिखित कार्रवाई), मुल्जिम (अपराध का आरोपी), मुज़रिम (दोषसिद्ध घोषित व्यक्ति), इस्तगासा (परिवाद पत्र), तफ्तीश (सूचना की जांच-पड़ताल), दस्तयाब (गुम हुई वस्तु का मिल जाना), पतारसी (अपराध की तह तक जाने से लेकर चालान पेश करने के पूर्व की प्रक्रिया) माल मसरुगा (लूटा या चोरी गया माल), माल मसरुटा (डकैती में लूटा माल), खात्मा, खारिजी और ऐसे 350 शब्द अब बदलाव प्रक्रिया के दायरे में हैं। 

ऐसा भी कहा जा सकता है कि फैसले पर अमल के बाद मध्य प्रदेश पुलिस के पन्नों में उपरोक्त शब्द एवं भाषावली इतिहास में दर्ज हो जाएगी। 

मध्य प्रदेश की इस पहल के पूर्व दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पुलिस की भाषावली से ऐसे अनेक शब्दों को बदला जा चुका है।

इस तरह लिखी जाती हैं रिपोर्ट्स

‘जरिए मुखबिर इत्तिला मिली कि रेलवे पटरी के पास एक संदिग्ध युवक घूम रहा है...मौके पर पहुंचकर हिकमतअमली से पूछताछ की गई। दौराने तफ्तीश मसरूफ वह दर्ज गुम इंसान निकला...दस्तयाब की कार्रवाई कर खात्मा लगाया गया!’

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संजीव श्रीवास्तव
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