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शर्मनाक! दबंग ने आदिवासी पर पेशाब कर वीडियो बनाया; बीजेपी निशाने पर क्यों?

क्या कोई इस हद तक गिर सकता है कि किसी व्यक्ति पर न सिर्फ़ पेशाब करे, बल्कि उसका वीडियो भी बनवाए? सोशल मीडिया पर मंगलवार को एक ऐसा ही वीडियो वायरल हुआ है। उसमें कहा जा रहा है कि उच्च जाति का शख्स एक आदिवासी पर पेशाब कर रहा है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि आरोपी बीजेपी से जुड़ा है। सोशल मीडिया यूज़र आरोपी के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त सजा देने की मांग कर रहे हैं। 

ट्विटर यूज़रों ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टैग कर मांग की है कि आरोपी के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। हालाँकि कुछ लोग संदेह जता रहे हैं कि ऐसी कुछ कार्रवाई होगी। ट्विटर पर वीडियो के वायरल होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा है कि उनके संज्ञान में एक वीडियो सामने आया है और इस मामले में सख्त कार्रवाई की जाएगी। 

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है, 'एक आदिवासी लड़के पर पेशाब करने वाला यह दरिंदा मध्यप्रदेश में सीधी के भाजपा विधायक केदार शुक्ला का प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला है। यह राक्षस एक दूसरे मनुष्य को अपने से कमतर समझता है - पीड़ित कितना असहाय और सहमा हुआ है। सत्ता का यह नशा उतरेगा ज़रूर।' उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी इस मामले का संज्ञान लेने की अपील की है। 

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है, 'आदिवासी समाज के व्यक्ति पर पूर्व भाजपा विधायक का प्रतिनिधि, प्रवेश शुक्ला पेशाब करते हुए, क्या यही है हिन्दू राष्ट्र का नंगा सच? लव जेहाद के नाम पर नफरत का बीज बोने वाले जरा अपने दामन में झाँक कर देखो, तुम कहाँ खड़े हो और कितना नीचे गिरोगे?'

यूथ कांग्रेस के नेता श्रीनिवास बीवी ने कहा है, 'ये अमानवीय वीडियो मप्र बीजेपी एमएलए केदार शुक्ला के विधायक प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला का है। इस वीडियो को देखने के बाद शब्दों में आक्रोश को बयां कर पाना संभव नहीं। मुख्यमंत्री शिवराज जी, थोड़ी भी शर्म और इंसानियत बाकी है तो गरीबों पर चलने वाले बुलडोजर को इस भाजपाई पर चलवाइये।'
हालाँकि, सोशल मीडिया पर यूजरों द्वारा और विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा किए जा रहे दावों को केदारनाथ शुक्ला ने खारिज किया है और कहा है कि आरोपी व्यक्ति न तो उनका प्रतिनिधि है और न ही बीजेपी का कोई पदाधिकारी।

सोशल मीडिया पर यूजर आरोपी के ख़िलाफ़ एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। यह एक्ट दलित-आदिवासियों के उत्पीड़न को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है। इसके प्रावधान बेहद सख्त हैं। ऐसा इसलिए है कि देश में दलित और आदिवासियों के उत्पीड़न के मामले लगातार आते रहे हैं। 

इसी साल आईआईटी बॉम्बे के छात्र ने आत्महत्या कर ली थी और इस मामले में जातिवादी भेदभाव का आरोप लगा। मध्य प्रदेश में फरवरी महीने में शिवरात्रि पर दलित को मंदिर जाने से रोका गया था।

दलितों को मंदिर में नहीं घुसने देने के मामले जब तब देश के अलग-अलग हिस्सों से और दलितों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न के भी अजीबोगरीब मामले आते रहे हैं। एक चर्चित मामला राजस्थान का था। पिछले साल अगस्त में 9 साल के एक दलित छात्र को इसलिए पीटकर मार डाला गया था कि उसने उस मटके से पानी पी लिया था जो कथित तौर पर शिक्षक के लिए अलग रखा गया था। आरोपी शिक्षक को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

पिछले साल यूपी के रायबरेली में एक दलित उत्पीड़न का मामला आया था। तब वायरल हुए एक वीडियो में दिखा था कि कुछ युवक दलित युवक की पिटाई कर रहे थे।

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वीडियो में दिखा था कि युवक हाथ जोड़े खड़ा था और एक युवक उसे बेल्ट जैसी किसी चीज से पिट रहा था। पीड़ित जमीन पर दोनों हाथों से कान पकड़े हुए बैठा था। आरोपी मोटरसाइकिल पर बैठा हुआ दिखा था। पीड़ित जमीन पर डर के मारे कांप रहा था। और फिर मोटरसाइकिल पर बैठा आरोपी पीड़ित को पैर चाटने के लिए मजबूर किया था।

इससे पहले बिहार में भी ऐसी ही एक ख़बर आई थी। राज्य के औरंगाबाद ज़िले में दिसंबर महीने में दबंग जाति के एक उम्मीदवार को मुखिया चुनाव में वोट नहीं देने की वजह से दो दलितों को कथित तौर पर कान पकड़ कर उठक-बैठक करने को मजबूर किया गया। इतना ही नहीं, उन्हें थूक चाटने को मजबूर किया गया।

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पिछले साल जनवरी में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के एक गांव में एक दलित व्यक्ति की बारात पुलिस सुरक्षा में निकाली गई थी। दूल्हे ने अपने हाथ में संविधान की प्रति ले रखी थी। दूल्हे के परिवार ने कुछ प्रभावशाली लोगों पर बारात में बाधा डालने की आशंका जताई थी। 

हालाँकि, इस पक्षपात का दलित समुदाय अब खुलकर विरोध भी करने लगा है। हाल ही में तमिलनाडु में क़रीब 200 दलितों ने 'प्रतिबंध' को तोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश किया था। मंदिर में दलितों के प्रवेश को एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा गया। अनुसूचित जाति के एक समुदाय के लोगों को लगभग आठ दशकों तक उस मंदिर में प्रवेश से वंचित रखा गया था।

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क़मर वहीद नक़वी
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