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भोपाल गैस कांड: ‘संजीवनी’ भी साबित हुई थी रिसी हुई गैस एमआईसी

विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड की आज 38वीं बरसी है। मिथाइल आइसो साइनाइड (एमआईसी) के संपर्क में आकर हजारों लोगों ने 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात को दम तोड़ दिया था। जहरीली गैस के संपर्क में आने वाले लाखों लोग ऐसे बीमार पड़े थे कि आज तक उबर नहीं पाये हैं। गैस पीड़ितों के तिल-तिल कर दम तोड़ने की कहानियां आज भी आये दिन सामने आती हैं। आज तो चौथी पीढ़ी भी हत्यारी गैस के उस दंश को झेलने और भोगने को मजबूर है। 

हादसे के वक्त पुराने भोपाल के जेपी नगर क्षेत्र में संचालित की जाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का स्ट्रक्चर आज भी मौके पर खड़ा हुआ है। बहुत बड़ी तादाद में जहरीली गैस से जुड़ा केमिकल वेस्ट इस फैक्ट्री के ‘सीने’ के नीचे दफन है। 

38 साल बाद भी वेस्ट को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सका है। केमिकल वेस्ट की वजह से पूरे क्षेत्र के जलस्रोत अपमिश्रित हैं। 

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इन जलस्रोतों के पानी को पीने और रोजमर्रा के उपयोग में नहीं लेने की चेतावनियां हैं। चूंकि विकल्प नहीं है, लिहाजा क्षेत्रवासी जलस्रोतों का उपयोग करने को मजबूर हैं।
गैस का दंश झेलकर दम तोड़ने, बीमार होकर अस्पतालों के चक्कर लगाने और लंबे समय तक हास्पिटलाइज रहने को मजबूर होने वालों की दर्दनाक कहानियों के बीच ‘सत्य हिन्दी’ का सामना ऐसी कहानी से हुआ है, जिसमें एमआईसी गंभीर रूप से बीमार एक शख्स के लिए ‘वरदान’ बन गई थी।

इस हैरत अंगेज कहानी को गैस कांड का मंजर याद करते हुए राजीव लोचन ब्यौहार ने ‘सत्य हिन्दी’ से साझा किया है। राजीव ओएनजीसी में सीजीएम हैं। इन दिनों वे दिल्ली में पदस्थ हैं।

राजीव के अनुसार उनके चाचाजी श्याम स्वरूप ब्यौहार गैस कांड के वक्त 49 वर्ष के थे। गैस कांड के दो माह पहले उन्हें लीवर में सिवियर इन्फेक्शन हुआ था। भोपाल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल (प्रायवेट हास्पिटल/नर्सिंग होम नहीं होते थे) में वे भर्ती थे। 

Shyam Swaroop Byohar of the Bhopal gas tragedy 1984 - Satya Hindi
श्याम स्वरूप ब्यौहार

लीवर इंफेक्शन के साथ अन्य बीमारियों ने भी उन्हें जकड़ लिया था। मल्टी आर्गन फेल हो जाने की स्थितियां बन गई थीं। गैस कांड के तीन-चार दिन पहले डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। सेवा में लगे परिजनों से कह दिया था, ‘श्याम स्वरूप जी अब चंद घंटों के मेहमान हैं। घर ले जायें। ईश्वर से मुक्ति प्रदान करने के लिये प्रार्थना करें।’

श्याम स्वरूप ब्यौहार को मोती मसजिद के निकट स्थित घर ले आया गया था। भोपाल से बाहर रहने वाली तीनों बहनें और उनके परिवारजनों के साथ-साथ अन्य करीबी रिश्तेदार भी भोपाल में जुट गये थे।

गैस रिसी। भगदड़ मची। मोती मसजिद भी गैस से अत्याधिक प्रभावित हुए क्षेत्रों में शामिल रहा था। लोग घरों से भाग खड़े हुए थे। श्याम स्वरूप के अग्रज और राजीव लोचन के पिता श्याम सुंदर ब्यौहार (दैनिक भास्कर में संपादक थे) अपने भाई (उन्हें ले जाने की हालात नहीं थे) को घर छोड़कर भागने के लिए राजी नहीं हुए थे। घर में बंद रहकर ही समूचे परिवार ने गैस का दंश झेला था। 

राजीव आगे बताते हैं, ‘तीन-चार दिनों से अन्न का एक भी दाना और जल की बूंद न पीने वाले अचेतावस्था में पड़े उनके चाचा, चमात्कारिक ढंग से गैस कांड की अगली सुबह चेतन्य हो उठे थे। चाचा ने चेतन्य होते ही सबसे पहले अपनी भाभी और मेरी माताजी से चाय मांगी थी। उनकी आवाज सुनकर सब स्तब्ध रह गये थे। कुछ देर बाद नाश्ता भी उन्होंने किया था। 

राजीव कहते हैं, ‘भले ही मिथाइल आइसो साइनाइड (एमआईसी) ने हजारों लोगों की जान ले ली। लाखों लोगों को बीमार किया, लेकिन उनके चाचाजी के लिए एमआईसी संजीवनी साबित हुई। चाचाजी धीरे-धीरे पूरी तरह से न केवल ठीक हो गये, बल्कि 30 साल जीवित रहे। उनकी डेथ 31 दिसंबर 2014 को दिल्ली में हुई।’

Shyam Swaroop Byohar of the Bhopal gas tragedy 1984 - Satya Hindi
राजीव बताते हैं कि उनके पिता ने अपने भाई के केस को डॉक्टरों से साझा किया। पिता चाहते थे कि इस पर रिसर्च हो। मगर पापा की पत्रकारिता की व्यस्तताओं और डॉक्टरों के पास समय-संसाधनों की कमी के चलते ऐसा हो नहीं पाया।’

पीड़ितों को हैं ये शिकायतें 

जिन्हें भी गैस लगी, उनमें ज्यादातर को अनेक तरह की बीमारियां हैं। आंखें कमजोर हो चुकी हैं। फेफड़े प्रभावित हैं। गुर्दे बेकार हैं। अनेक अंगों ने काम करना बंद कर दिया। थोड़ा सा चलने पर दम फूल जाता है। दवाएं खाने तक भर आराम रहता है। अनेक लोगों पर तो दवाओं का असर भी समाप्त हो चुका है। 

दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बाद अब तो चौथी पीढ़ी में बच्चों पर गैस का असर बरकरार है। अनेक तरह की बीमारियां जन्म से उनमें हो रही है। चौथी पीढ़ी के नवजातों में मानसिक मंदता की शिकायतें बनी हुई हैं। दिव्यांग पैदा हो रहे हैं। कोई रिसर्च इस दिशा में नहीं किये जाने का आरोप गैस पीड़ित संगठन बार-बार लगाते हैं। 

Shyam Swaroop Byohar of the Bhopal gas tragedy 1984 - Satya Hindi

रस्म अदायगी भर होती है

गैस कांड के बाद पीड़ितों की दो-ढाई दशक तक जबरस्त सुध ली गई। मीडिया भी गैस कांड से जुड़ी कहानियों को लगातार कवरेज देता रहा। गैस कांड की बरसी पर दुनिया भर के पत्रकार भोपाल आते रहे। कवरेज मिलती रही। कहानियां होती रहीं। राज्य के साथ-साथ केन्द्र की सरकार भी सुध लेती रही।

आज गैस कांड की बरसी को मनाना ‘रस्म’ तक सीमित हो गया है। राज्य में सत्तारूढ़ रहने वाली सरकार 3 दिसंबर के दिन सर्वधर्म प्रार्थना सभा करके उस काली रात को याद करती है। इसके बाद गैस से बुरी तरह प्रभावितों और अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी, दवा-संसाधनों के टोटे की कोई बात नहीं करता। प्रतिपक्ष भी चुप्पी साधे रहता है। 

बीएमएचआरसी के हाल-बेहाल

सुप्रीम कोर्ट की पहल पर स्थापित किया गया भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। अस्पताल में एक्सपर्ट डॉक्टरों की भारी कमी है। दवाएं और समुचित उपचार नहीं मिलने की शिकायतें आम हैं। 

आरोप है कि राज्य के साथ केन्द्र की सरकार भी गैस कांड और इसके पीड़ितों के मर्म को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है।

बीएमएचआरसी के अलावा भी भोपाल में राज्य की सरकार ने गैस प्रभावित क्षेत्रों में आधा दर्जन से ज्यादा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल खड़े किये। डिस्पेंसरियां बनाईं। इनमें भी आज डॉक्टरों और दवाओं के साथ-साथ अन्य संसाधनों की भारी कमी की शिकायतें आम हैं।

Shyam Swaroop Byohar of the Bhopal gas tragedy 1984 - Satya Hindi
गैस कांड के पीड़ितों की याद में बनाया गया स्मारक।

6 लाख के मुआवजे की लड़ाई जारी

गैस कांड एवं उसके पीड़ितों के दर्द को शिद्धत और पूरी लगन से जिंदा रखकर कुछ संजीदा गैस पीड़ित संगठन अलबत्ता लड़ाई लड़ रहे हैं। भोपाल गैस कांड पीडितों का एक जत्था शनिवार 3 दिसंबर को दिल्ली पहुंचा है। अपनी तमाम मांगों को लेकर इस जत्थे ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया है। धरना दिया है। 

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा की मांग है, ‘केन्द्र और मध्य प्रदेश की सरकार गैस पीड़ितों को समुचित मुआवजा दिलाने का वादा पूरा करे।’ ढींगरा के अनुसार 10 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट अतिरिक्त मुआवजे की सुनवाई करने वाली है। 

ढींगरा कहती हैं, ‘एमपी की सरकार पीएम को चिट्ठी लिखे ताकि 5 लाख 21 हजार गैस पीड़ितों को सही मुआवजा मिल सके।’ वे यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल से हर पीड़ित को 6 लाख रुपये का मुआवजा मिलने की वकालत करती हैं। 

पीड़ितों को मिले महज 25-25 हजार 

न्याय नहीं मिलने पर गैस कांड पीड़ितों को सम्मानजनक और समुचित मुआवजा दिलाने/हासिल करने की सीधी लड़ाई लड़ने के लिये प्रयासरत लोगों से 1989 में यह हक (सीधे लड़ें) छीन लिया गया था। एक कानूनी फरमान जारी हुआ था।  जिसमें कहा गया था, ‘गैस पीड़ित सीधे कारखाने के खिलाफ कोई कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकेंगे।’

बता दें, कांड के बाद सरकार ने तय कर दिया था, ‘यूनियन कार्बाइड 470 मिलियन डालर मुआवजा देगी। मुआवजा राशि देने पर कार्बाइड के खिलाफ लापरवाही से हत्या का मामला समाप्त कर दिया जायेगा। अदालती मोहर भी लग गई थी।’  

डाउ केमिकल ने जब यह मुआवजा दिया था तब डालर की कीमत महज 16 रुपए (भारतीय मुद्रा में) थी। मुआवजा वितरण में बहुत वक्त लगा। जब मिला तो 5 लाख के लगभग गैस प्रभावितों के खाते में औसतन 25 हजार रुपए प्रति गैस पीड़ित भर आ पाया था। 

बरसों-बरस आपराधिक मुकदमा चला। यूनियन कार्बाइड कारखाने और डाउ केमिकल के जिम्मेदारों में ज्यादातर मर गये। वारेन एंडरसन भी अब दुनिया में नहीं रहा है। केस में आरोपी बनाये गये अधिकांश आरोपी दोषमुक्त करार दिये जा चुके हैं।

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गैस कांड की फैक्ट फाइल

  • गैस कांड की तारीख- 2 और 3 दिसंबर 1984
  • कौन सी गैस रिसी- मिथाइल आइसो साइनाइड
  • 24 घंटे के भीतर हुई मौत- 3887 
  • अब तक मौतें- 37 हजार के लगभग
  • मुआवजा मिला- करीब 6 लाख प्रभावितों को
  • प्रभावित वार्डों की संख्या- 36 

भोपालवासी ही भूल गये हैं कांड को!

गैस कांड को कवर करने वाले सीनियर फोटो जर्नलिस्ट संजीव गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘प्रभावितों और उनके नाते-रिश्तेदारों को छोड़कर 98 प्रतिशत भोपालवासी इस त्रासदी को भूल गये हैं, तब सरकारें इस दर्द-मर्म को क्यों याद रखेगी?’

संजीव आगे बताते हैं, ‘गैस कांड की बरसी को कवर करना अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण होता था। दुनिया भर के पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्टों के बीच ऐसी तस्वीरें वे अपने कैमरे में कैद किया करते थे, जिन्हें दुनिया भर की मीडिया में जगह मिलती थी। आज गैस कांड की बरसी महज और महज ऐसी रस्म अदायगी हो गई, जिसमें न तो खबर निकलती है और ना ही झकझोर कर रख देने वाली तस्वीरें!’

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संजीव श्रीवास्तव
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