मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार की क्यूरेटिव
याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में केंद्र ने 1984 के भोपाल गैस त्रासदी
के पीड़ितों के लिए अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड से 7,400 करोड़ रुपये का
अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि गैस त्रासदी में पीड़ितों के मुआवजे
में घोर लापरवाही बरती गई, कोर्ट ने इस लापरवाही पर केंद्र को फटकार लगाई। कोर्ट
ने कहा कि गैस त्रासदी के लंबित दावों को पूरा करने के लिए भारत सरकार RBI के पास पड़े 50 करोड़
रुपये की राशि का इस्तेमाल करे।
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बैंच ने शीर्ष अदालत के समक्ष घटना से
संबंधित पिछली कार्यवाहियों का उल्लेख किया। इनमें स्पष्ट रूप से
कहा गया था कि 470 मिलियन डॉलर की मुआवजा राशि पीड़ितों के वर्तमान और भविष्य के
दावों को पूरा करने के लिए पर्याप्त थी। बैंच ने कहा कि इस मामले को दो दशक बाद
फिर से दोबारा नहीं खोला जा सकता है।
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जस्टिस संजीव खन्ना जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जे के माहेश्वरी की पांच सदस्यीय बैंच ने कहा कि
सरकार की तरफ से 1991 में अदालत को एक अंडरटेकिंग दी गई थी। उस अंडरटेकिंग के
अनुसार पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी तैयार नहीं की गई, कोर्ट ने बीमा पॉलिसी तैयार
न करने के लिए सरकार को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने इसे सरकार की लापरवाही माना और कहा कि यदि कोई
वित्तीय कमी है भी तो उन्हें निपटाना सरकार का काम है।
2010 में दायर क्यूरेटिव पिटीशन के जरिए सरकार ने कोर्ट से 1989 और 1991 के
आदेशों पर पुनर्विचार की मांग की थी। याचिका दायर करते हुए सरकार का तर्क था कि 1989
में किया गया 470 मिलियन मुआवजे का समझौता पूरी तरह से अपर्याप्त था। इसलिए यूनियन
कार्बाइड को अधिक भुगतान करने के लिए कहा जाना चाहिए। सरकार ने कंपनी से 7,400 करोड़ रुपये से
अधिक अतिरिक्त मुआवजे की मांग की थी।
2 दिसंबर 1984 में भोपाल में यूनियन कार्बाईड के संयंत्र से जहरीली मिथाइल
आइसोसिनेट गैस के रिसाव के दौरान 5,000 से अधिक लोगों की जाने गई थीं। अदालत में पेश ताजा आधिकारिक अनुमान के
अनुसार मृतकों की संख्या 5,295 आंकी गई है और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या 40,399 बताई गई है।
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भोपाल गैस त्रासदी अब तक की सबसे बड़ी मैन मेड त्रासदी मानी जाती है। जिसके चलते 16000 हजार
से ज्यादा लोगों की जान चली गई, इसमें आठ हजार से ज्यादा लोगों की मौत तो दो गैस
रिसाव के दो हफ्तों के भीतर ही हो गई थी।
केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका के जवाब में कोर्ट नें कहा कि ‘उसे पीड़ितों के साथ पूरी हमदर्दी
है लेकिन वह तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकती। 1989 में जब समझौता किया जा रहा था तब
सरकार कोर्ट में उपस्थित थी। उस समय सरकार ने आदेश को रिव्यू कराना भी जरूरी नहीं
समझा। सरकार को यह समझने में 25 साल लग गये कि मुआवजे की राशि कम है। आप सौ साल
बाद भी केस को रिओपेन करने के लिए कहोगे। आप समझौत के बाद कोर्ट से बाहर चले गए थे’।
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