बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे में विवादास्पद ₹300 करोड़ के भूमि सौदे की पुलिस जांच पर गंभीर चिंता जताते हुए बुधवार (10 दिसंबर 2025) को पूछा कि क्या पुलिस "उपमुख्यमंत्री के बेटे को संरक्षण दे रही है और सिर्फ दूसरों की जांच कर रही है?"

जस्टिस माधव जामदार की सिंगल पीठ ने यह टिप्पणी व्यवसायी महिला शीतल किसनचंद तेजवानी की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान की। तेजवानी एफआईआर में नामजद हैं, लेकिन उनका दावा है कि वे केवल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के रूप में काम कर रही थीं। जज ने पूछा, "क्या पुलिस उपमुख्यमंत्री के बेटे को संरक्षण दे रही है और केवल दूसरों की जांच कर रही है?" यह टिप्पणी पार्थ पवार के संदर्भ में थी, जो अमादिया एंटरप्राइजेज एलएलपी के भागीदार हैं। इसी फर्म ने मुंधवा में 40 एकड़ भूमि खरीदी थी।

सरकारी वकील मनकुंवर देशमुख ने जवाब दिया कि जांच एजेंसी "कानून के अनुसार" कार्रवाई करेगी।

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यह भूमि 'महार वतन' संपत्ति की श्रेणी में आती है, जिसे सरकार की पूर्व अनुमति के बिना बेचा नहीं जा सकता। एफआईआर में आरोप है कि फर्म को ₹21 करोड़ की स्टांप ड्यूटी में छूट भी दी गई। संयुक्त रजिस्ट्रार महानिरीक्षक के नेतृत्व वाली समिति ने पार्थ पवार के चचेरे भाई दिग्विजय पाटिल, तेजवानी और सब-रजिस्ट्रार रवींद्र तारू को दोषी ठहराया, लेकिन पार्थ का नाम नहीं लिया गया क्योंकि किसी दस्तावेज पर उनके हस्ताक्षर नहीं थे।

तेजवानी को 3 दिसंबर को पुणे पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने गिरफ्तार किया था और वे 11 दिसंबर तक हिरासत में हैं। बावधन पुलिस स्टेशन में दूसरी एफआईआर दर्ज होने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत मांगी थी।

बेंच ने याचिका पर विचार करने की इच्छा न जताने पर तेजवानी के वकीलों राजीव चव्हाण और अजय भिसे ने आवेदन वापस ले लिया।

तेजवानी की याचिका में कहा गया कि आरोप "स्पष्ट रूप से सिविल-राजस्व प्रकृति के हैं, जिनमें आपराधिक मंशा का अभाव है" और हिरासत में पूछताछ "पूरी तरह अनावश्यक" है।

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भूमि की वास्तविक कीमत ₹300 करोड़ से कहीं अधिक है। राजनीतिक हंगामे के बीच उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि सौदा रद्द कर दिया गया है और उनके बेटे तथा पार्टनर को भूमि की स्थिति की जानकारी नहीं थी।

बाद में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पत्रकारों से कहा, "शुरू से ही सरकार का रुख स्पष्ट है कि किसी को संरक्षण नहीं दिया जाएगा। दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी।"

अजित पवार से जुड़े प्रमुख विवाद

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं और कई विवादों में घिरे रहे हैं। यहां उनके कुछ प्रमुख विवादों को जानिए-
सिंचाई घोटाला:
2012 के आसपास का सबसे बड़ा विवाद। आरोप था कि अजित पवार के जल संसाधन मंत्री रहते ₹70,000 करोड़ से अधिक के सिंचाई प्रोजेक्ट्स में अनियमितताएं हुईं, लागत बढ़ाई गई और ठेकों में गड़बड़ी की गई। विजय पंधारे जैसे अधिकारियों ने आरोप लगाए। बाद में जांच में क्लीन चिट मिली, लेकिन यह विवाद लंबे समय तक चला।
वोट फॉर फंड्स बयान (2025):
नवंबर 2025 में स्थानीय निकाय चुनाव प्रचार के दौरान अजित पवार ने कहा, "आपके पास वोट हैं, मेरे पास फंड हैं" और वोट न देने पर फंड रोकने की धमकी दी। विपक्ष ने इसे मतदाताओं को धमकाने का आरोप लगाया। बाद में उन्होंने कहा कि बयान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया।
महिला आईपीएस अधिकारी को फोन पर फटकार (2025):
सितंबर 2025 में सोलापुर में अवैध रेत खनन पर कार्रवाई रोकने के लिए अजित पवार ने महिला आईपीएस अधिकारी अंजना कृष्णा को फोन पर कथित तौर पर धमकाया। वीडियो वायरल होने पर बड़ा विवाद हुआ। अजित पवार ने सफाई दी कि उनका इरादा शांति बनाए रखना था, न कि हस्तक्षेप करना।
एनसीपी में विद्रोह और परिवारिक विभाजन:
2023 में अजित पवार ने चाचा शरद पवार से बगावत कर भाजपा-शिवसेना गठबंधन में शामिल होकर उपमुख्यमंत्री बने। इससे पवार परिवार में गहरी दरार आई। शरद पवार गुट और अजित गुट के बीच चुनाव चिन्ह व पार्टी नाम को लेकर कानूनी लड़ाई हुई।
अन्य आरोप: 
सहकारी बैंक घोटाले (MSCB) में जांच। परिवारिक सदस्यों और सहयोगियों पर ईडी/एसीबी जांच। हाल में बीएमसी अस्पताल आवंटन में रिश्तेदारों को फायदा देने के आरोप।



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अजित पवार अक्सर इन आरोपों से इनकार करते हैं और कहते रहे हैं कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते हैं। कई मामलों में जांच पूरी नहीं हुई या क्लीन चिट मिली। वे महाराष्ट्र की राजनीति में अवसरवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं।