महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के बेटे से जुड़ी पुणे लैंड डील में कथित गड़बड़ियों की जांच के आदेश दिए हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार इस जाँच के घटनाक्रम से कैसे निपटेंगे?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को एनसीपी अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़े एक कथित लैंड डील में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी है। समिति का नेतृत्व राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास खड़गे करेंगे। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि राजस्व विभाग ने संबंधित तहसीलदार सूर्यकांत येवाले को निलंबित कर दिया है।
यह डील पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में 40 एकड़ महार वतन भूमि से जुड़ी है। यह वंशानुगत भूमि-स्वामित्व से जुड़ा है जहाँ अनुसूचित जाति के महार समुदाय को ग्राम प्रशासन के लिए श्रम प्रदान करने के लिए बाध्य किया जाता था और भूमि (वतन भूमि) उन्हें दे दी जाती थी। ऐसी ज़मीन राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना बेची नहीं जा सकती है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि जमीन की कुल कीमत 1800 करोड़ रुपये थी, लेकिन इसे पवार की कंपनी को मात्र 300 करोड़ रुपये में बेच दिया गया, जिसमें स्टांप शुल्क में छूट भी शामिल है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने इस डील में गड़बड़ी के सवालों पर नागपुर में पत्रकारों से कहा, 'मैंने इस मुद्दे पर सभी जानकारी मांगी है। राजस्व विभाग, आईजीआर और भूमि रिकॉर्ड से सभी दस्तावेज मंगाए गए हैं। मैंने उचित जांच के निर्देश दिए हैं। शुरुआती स्तर पर गंभीर मुद्दे सामने आ रहे हैं। इसलिए, ज़रूरी जानकारी मिलने के बाद ही मैं कुछ कहूंगा।' द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार फडणवीस ने जोर देकर कहा, 'मुझे विश्वास है कि उपमुख्यमंत्री भी ऐसी डील का समर्थन नहीं करेंगे। सरकार में हमारी एकमत है कि जहाँ भी अनियमितता हुई है, वहां कार्रवाई होनी चाहिए। हम जांच करेंगे कि अनियमितता हुई या नहीं, और उसके अनुसार कदम उठाएंगे।'
आरोप क्या हैं?
आरोप लगाया जा रहा है कि यह डील अमेडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी से जुड़ी है। इस कंपनी में पार्थ पवार और दिग्विजय पाटिल पार्टनर हैं। आरोप है कि इस भूमि को 300 करोड़ रुपये में खरीदा गया, जबकि उसकी वास्तविक क़ीमत 1800 करोड़ रुपये है। इसके अलावा, 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी को माफ़ कर दिया गया। कहा जा रहा है कि यह भूमि 'महार वतन भूमि' है जिसको आसानी से बेचा नहीं जा सकता है। इसको बेचने के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति ज़रूरी है।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, 'मुझे जांच करनी होगी कि स्टांप ड्यूटी छूट कानून के अनुसार दी गई या नहीं। महार वतन भूमि के लिए विशेष कानून है। स्टांप ड्यूटी छूट विशिष्ट उद्देश्यों के लिए है। मैंने जांच के आदेश दिए हैं कि महार वतन भूमि से संबंधित कानून का पालन हुआ या नहीं।'
विपक्ष का आरोप
विपक्षी दलों ने इस डील को 'भूमि घोटाला' क़रार देते हुए सरकार पर निशाना साधा है। आरोप है कि 22 अप्रैल 2025 को कंपनी ने आईटी पार्क और डेटा सेंटर बनाने का प्रस्ताव पास किया और 48 घंटों के अंदर उद्योग निदेशालय ने स्टांप ड्यूटी माफ़ कर दी। शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे ने कहा, 'पवार की कंपनी का शेयर कैपिटल केवल 1 लाख रुपये है, फिर भी 1800 करोड़ की भूमि 300 करोड़ में खरीद ली। 40 एकड़ भूमि के लेन-देन की स्टांप ड्यूटी केवल 500 रुपये! बिना अनुभव वाली कंपनी के प्रस्ताव को निदेशालय ने मंजूरी कैसे दे दी?'
महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख हर्षवर्धन सपकल ने अजित पवार का इस्तीफा मांगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विजय वडेट्टीवार ने भी पारदर्शी जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि पार्थ पवार की कंपनी द्वारा भूमि खरीद एकदम गैरकानूनी है। राजस्व विभाग की सहमति के बिना सरकारी भूमि बेची गई।
सुप्रिया सुले की मांग
बारामती से सांसद सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी) ने सरकार से स्पष्टता मांगी। उन्होंने कहा, 'सबसे पहले सरकार बताए कि डील हुई या नहीं। पहले कहा गया कि 21 करोड़ की स्टांप ड्यूटी माफ हुई, अब कह रहे हैं 6 करोड़। स्टांप ड्यूटी भरी गई या नहीं?' सुले ने सरकार के भ्रमित संकेतों पर सवाल उठाए, 'पहले कहा डील नहीं हुई, फिर स्टांप ड्यूटी कैसे भरी? महाराष्ट्र सरकार हमें भ्रमित करने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री को रिकॉर्ड साफ करना चाहिए। तहसीलदार कह रहे हैं कि उन्होंने डील पर हस्ताक्षर नहीं किए, तो डील हुई या नहीं? कैसे निलंबित कर सकते हैं?' सुले ने पार्थ पवार का बचाव किया, 'अगर लोग कहें कि मैं पार्थ का समर्थन कर रही हूं, तो कोई समस्या नहीं। मैंने आज सुबह उनसे बात की। उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया।'
महायुति में दरार की आशंका?
यह विवाद महायुति गठबंधन (बीजेपी, अजित पवार की एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना) के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। विपक्ष का कहना है कि यह डील 27 दिनों में पूरी हुई, जो संदिग्ध है। फडणवीस ने कहा, 'प्राइमा फेसी मुद्दा गंभीर लग रहा है। जांच से सच्चाई सामने आएगी।' फडणवीस द्वारा जाँच के आदेश दिए जाने और समिति गठित करने को क्या अजित पवार हल्के में लेंगे? सीधे उनके बेटे तक जाँच पहुँचने से क्या अजित पवार नाराज़ नहीं होंगे और ऐसे में क्या गठबंधन में सबकुछ सही ही रहेगा?